अल्लामा इक़बाल के लतीफ़े - One-liners by Poet Allama Iqbal

  One Liner You are here
Views: 955
अल्लामा इक़बाल के ऐसे लतीफ़े जिन्हे पढ़ कर आज भी हर कोई मज़ा लेता हैं।
poet

Image Credit: unsplash


अल्लामा इक़बाल की शायरी और लतीफ़े आज भी हम सभी को ख़ूब पसंद हैं। उर्दू शायरी के सबसे बड़े महारथियों में से एक है अल्लामा इक़बाल जिनकी किताबों के एक-एक लफ़्ज़ में जादू है। अल्लामा इक़बाल की शायरी ही है जो उन्हें दुनियाभर में आज भी लोगों की मोहब्बत हासिल हैं। यही नहीं अल्लामा इक़बाल के लतीफ़े और बज़्ला-संजी भी लोगों में ख़ूब मशहूर है। कुछ लतीफ़े अल्लामा इक़बाल के ऐसे हैं जिन्हे पढ़ कर आज भी हर कोई मज़ा लेता हैं। यहाँ पढ़िए अल्लामा इक़बाल के मशहूर लतीफ़े - 

 मोटर में कुत्ते आए हैं


फ़क़ीर सय्यद वहीद उद्दीन के एक जानने वाले को कुत्ते पालने का बेहद शौक़ था। एक रोज़ वो लोग कुत्तों को लेकर अल्लामा से मिलने चले आए। ये लोग उतर-उतर कर अंदर जा बैठे और कुत्ते गाड़ी ही में रहे। इतने में अल्लामा की नन्ही बच्ची मुनीरा भागती हुई आई और बाप से कहने लगी, “अब्बा-अब्बा मोटरगाड़ी में कुत्ते आए हैं।” अल्लामा ने अहबाब की तरफ़ देखा और कहा, “नहीं बेटा, ये तो आदमी हैं।” 

इक़बाल हमेशा देर ही से आता है 


अल्लामा इक़बाल बचपन ही से बज़्ला-संज और शोख़ तबीयत वाक़े हुए थे। जब वो ग्यारह साल के थे, तब एक रोज़ उन्हें स्कूल पहुँचने में देर हो गई। तो उनके उस्ताद ने पूछा, “इक़बाल तुम देर से आए हो?”  इक़बाल ने बिना सोचे जवाब दिया, “जी हाँ, इक़बाल हमेशा देर ही से आता है।” 

मैं तो क़ौम का क़व्वाल हूँ


ख़िलाफ़त-ए-तहरीक के ज़माने में मौलाना मुहम्मद अली, इक़बाल के पास आए और लानत-मलामत करते हुए बोले, “ज़ालिम तुमने लोगों को गर्मा कर उनकी ज़िंदगी में हैजान बरपा कर दिया है। ख़ुद किसी काम में हिस्सा नहीं लेते।” इस पर इक़बाल ने जवाब दिया, “तुम बिल्कुल बे-समझ हो। तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं तो क़ौम का क़व्वाल हूँ। अगर क़व्वाल ख़ुद वज्द में आकर झूमने लगे तो क़व्वाली ही ख़त्म हो जाएगी।” 

चौधरी साहब का कारगर साबुन 


अल्लामा इक़बाल चौधरी शहाब उद्दीन से हमेशा मज़ाक़ करते थे। चौधरी साहब बहुत काले थे। एक दिन अल्लामा चौधरी साहब से मिलने उनके घर गए। बताया गया कि चौधरी जी ग़ुस्लख़ाने में हैं। इक़बाल कुछ देर इंतज़ार में बैठे रहे। जब चौधरी साहब बाहर आए तो इक़बाल ने कहा, “पहले आप एक बात बताइए। आप कौन सा साबुन इस्तेमाल करते हैं?” चौधरी साहब ने कहा, “ये क्यों पूछ रहे हैं?” अल्लामा ने जवाब दिया, “नाली में बहुत सा काला पानी बह कर आरहा है। बहुत कारगर साबुन मालूम होता है।” 

इश्क़ की इंतिहा


एक दफ़ा अल्लामा से सवाल किया गया कि अक़्ल की इंतिहा क्या है? जवाब दिया, “हैरत” फिर सवाल हुआ, “इश्क़ की इंतिहा क्या है?” फ़रमाया, “इश्क़ की कोई इंतिहा नहीं है।” सवाल करने वाले ने फिर पूछा, “तो आपने ये कैसे लिखा। तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ।” अल्लामा ने मुस्कुराकर जवाब दिया, “दूसरा मिसरा भी तो पढ़िए जिसमें अपनी हिमाक़त का एतिराफ़ किया है कि “मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ।” 

मौलाना मीर हसन की तस्नीफ़ ख़ुद मैं हूँ


अल्लामा इक़बाल को हुकूमत की तरफ़ से “सर” का ख़िताब मिला तो उन्होंने उसे कुबूल करने की ये शर्त रखी कि उनके उस्ताद मौलाना मीर हसन को भी “शम्स-उल-उलमा” के ख़िताब से नवाज़ा जाए। प्रशासक ने ये सवाल उठाया कि उनकी कोई तस्नीफ़ नहीं, उन्हें कैसे ख़िताब दिया जा सकता है! अल्लामा ने फ़रमाया, “उनकी (यानी मौलाना की) सबसे बड़ी तस्नीफ़ ख़ुद मैं हूँ, चुनांचे हुकूमत को उनके उस्ताद को “शम्स-उल-उलमा” का ख़िताब देना पड़ा।’’ 

इक़बाल की डिग्रियों का इजरा 


अल्लामा इक़बाल ने जब कैंब्रिज यूनीवर्सिटी से बी.ए. कर लिया तो उनके बड़े भाई ने उन्हें लिखा कि “अब बैरिस्ट्री का कोर्स पूरा करके वापस आ जाओ।” लेकिन अल्लामा इक़बाल का इरादा पी.एच.डी. करने का था। इसलिए उन्होंने भाई को लिखा कि “कुछ रक़म भेजिए ताकि जर्मनी जाकर डाक्टरी की डिग्री ले लूं।” 
उन्हीं दिनों में वो एक रोज़ स्यालकोट में अपने बे-तकल्लुफ़ दोस्तों की सोहबत में बैठे हुए थे। किसी ने उनसे दरियाफ्त किया, “क्यों शेख़-साहब! सुना है इक़बाल ने एक और डिग्री ली है?” उनके भाई ने जवाब दिया, “भई क्या बतलाऊं, अभी तो वो डिग्रियों पर डिग्रियाँ लिये जा रहा है। ख़ुदा जाने उन डिग्रियों का इजरा कब होगा?”

ज़िंदा सलामत बाहर जा सकूँगा या नहीं


जून 1907 ई. में एक मुअज़्ज़िज़ ख़ातून लेडी ने एक पार्टी दी जिसमें इक़बाल भी मदऊ थे। दफ़अतन मिस सरोजनी नायडू निहायत पुर-तकल्लुफ़ लिबास और झिलमिलाते हुए ज़ेवरात पहने हुए झमझम करती सामने आन मौजूद हुईं और आते ही इक़बाल का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “मैं तो सिर्फ़ आपसे मिलने यहाँ आ गयी हूँ।” इक़बाल की ज़राफ़त का शोला चमका और उन्होंने तुरंत कहा, “तो ये सदमा इस क़दर नागहानी है कि मैं नहीं समझता कि यहाँ से ज़िंदा सलामत बाहर जा सकूँगा या नहीं।” 


Author Social Profile:


Latest Posts

Start Discussion!
(Will not be published)
(First time user can put any password, and use same password onwards)
(If you have any question related to this post/category then you can start a new topic and people can participate by answering your question in a separate thread)
(55 Chars. Maximum)

(No HTML / URL Allowed)
Characters left

(If you cannot see the verification code, then refresh here)