मानव प्रयासों का परिणाम: खेल से व्यापार, नृत्य से दर्शनीयता, और शिक्षा से उद्योग तक की बदलती दुनिया
प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, हमने देखा है कि खेल, कला, और शिक्षा ने मानव समाज को कैसे बदला है। खेल से उद्योग, नृत्य से दृश्यकला, और शिक्षा से व्यापार - ये सभी क्षेत्र मानव समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं।
आधुनिकीकरण और आगे बढ़ने की चाह ने मानव समाज को कई तरह से प्रभावित किया है।
आइए "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-
make headline and title - इंसानों ने खेल बनाये और उन्हें खेलना सीखा.. ताकि मन शांत हो सके, शरीर स्वस्थ रह सके और दिमाग़ अच्छा सोच सके.. इंसान इसीलिए खेल खेलता था.. मगर कुछ दिन खेलने के बाद कुछ समझदार और चालाक लोगों ने, जो कि स्वयं खेलने में असमर्थ थे और आलसी थे, उन्होंने खेल में “प्रतिस्पर्धा” का इजाद कर दिया.. और वो बैठ कर खेल का आनंद लेने लगे और खेल को उन्होंने बिज़नस बना दिया.. अब वर्तमान के किसी भी खेल का कोई मोल नहीं है.. ये वैसे ही है जैसे शिक्षा और अन्य चीज़ें.. वहां जीतना और हारना और पैसा कमाना ही मुख्य है.. खेल अब खेल नहीं है.. जिस कारण से मानव ने खेल बनाया था अब वो मूल्य ही नहीं बचा है खेल का.. अब दूसरे खेलते हैं और लोग देखते हैं
इंसान ने नृत्य बनाया.. ताकि वो आनादित हो सके.. नृत्य में अपनी भावनाएं दूसरों को दिखा सके.. मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रह सके.. फिर वही हाल इस कला का भी हुआ जैसा खेल का हुआ.. वो लोग जो मानसिक रूप से कुरूप थे, अक्षम थे और आलसी थे.. उन्होंने नृत्य को भी देखने वाली चीज़ बना दिया.. पेट का पानी नहीं हिलाने वाले अमीर लोगों ने इसे बाज़ारू कला बना दिया और वो बैठ कर मुजरा देखने लगे.. नृत्य हर किसी के करने वाली चीज़ थी और इसे “देखने” वाली बना दिया और फिर इसमें बाज़ार आ गया
इंसान ने शिक्षा बनायी.. ताकि जानकारी आने वाली नस्लों तक पहुँच सके.. ताकि वो स्वस्थ रह सकें और स्वयं को निरोगी रख सकें.. ताकि वो स्वावलंबी हो सकें.. अपना खाना स्वयं ढंग से पा सकें.. वो कहीं जाएँ तो उन्हें देश विदेश की जानकारी हो.. शिक्षा स्वयं के लिए थी.. न कि किसी और के लिए.. शिक्षा पाने के बाद व्यक्ति ठीक से जीवन को समझ सके.. मगर जो आलसी और अक्षम लोग शिक्षा को एक बोझ समझते थे वो अपने काम के लिए दूसरे शिक्षित लोगों को पैसे देकर अपना काम करवाने लगे.. और फिर शिक्षा का मूल “नौकरी” हो गया.. अब मौजूदा शिक्षा का आपके जीवन, आपके जीवन की समस्याओं, आपके जीवित रहने से कोई सम्बन्ध नहीं है
इंसानों ने प्रेम किया.. प्रेम साधा और प्रेम महसूस किया दूसरे के लिए.. इंसानों के दो जोड़े प्रेम करके साथ रहने लगे.. इंसानों के जोड़े जो प्रेम करते थे वो साथ रहते थे.. फिर उनकी संताने होती थीं.. एक दूसरे की देखभाल करते थे.. फिर अक्षम और कुरूप लोग आये.. जो मानसिक रूप से कुरूप और धूर्त थे और जिन्हें प्रेम के बदले प्रेम देना नहीं आता था.. उन्होंने प्रेम को शादी में बदल दिया.. और इस सम्बन्ध से उपजे तमाम रिश्तों को सामजिक कसौटी बना दिया.. ताकि किसी कुरूप को कोई स्त्री छोड़ के भाग न सके.. बिना प्रेम के भी दो कुरूप लोग संताने पैदा कर सकें.. भीड़ भाड़ के साथ शादी हो ताकि जोड़ों पर दबाव रहे बिना प्रेम के साथ जीने का.. वो व्यक्ति सबसे धूर्त रहा होगा जिसने बिना प्रेम शादी बनायी होगी.. और ऐसे प्रेम का अर्थ शादी हो गया
अब हमारा समाज उस दौर में है जहाँ आप किसी भी परंपरा और किसी भी बड़ी बड़ी अच्छी संस्कृति को उठा कर देख लीजिये, वो सब अब कुरूपता की चरम पर हैं.. रिश्ते, नाते, शिक्षा, कला, तीज, त्योहार.. ये सब कुछ अब ख़त्म किये जाने लायक है.. क्यूंकि जिस बात के लिए इन चीज़ों का निर्माण हुआ था अब उनका वो अर्थ बचा ही नहीं है.. और इसीलिए इतना दुःख है.. इतनी समस्या है.. इतना अवसाद है.. इतनी दवाएं हैं... इतने डॉक्टर हैं.. इतने अस्पताल हैं
इसीलिए कुछ सौ वर्षों में सारे समाज और सारी सभ्यताओं का विनाश ज़रूरी होता है.. और प्रकृति यही करती है.. चाहे वो मिस्र की सभ्यता रही हो या फिर हड़प्पा की.. प्रकृति इसीलिए सारी सभ्यताओं को कुछ सौ या हज़ार वर्षों में पूरी तरह से मिटा देती है.. क्यूंकि समय बीतने के साथ ये सभ्ताएं मनुष्यों का “कैदखाना” बन चुकी होती हैं
आपमें अगर थोड़ी भी समझ है और आप परम्पराओं और समाज को तोड़ने की हिम्मत रखते हैं.. तो आपकी नस्लें आम नस्लों से कहीं ज़्यादा दिनों तक इस पृथ्वी पर जियेंगी और राज करेंगी.. प्रकृति उन्हें संरक्षित करेगी और उनका जल्दी विनाश नहीं होगा
~सिद्धार्थ ताबिश
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