प्यार, रिश्तों और संतुलन! क्या हम आप इसे समझते हैं ? या समझने का भ्रम है?

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प्यार, रिश्तों और संतुलन! क्या हम आप इसे समझते हैं ? या समझने का भ्रम है?

ऐसे जटिल प्रश्नों को सही ढंग से समझने के लिए चलिए हम सिद्धार्थ ताबिश की FB वॉल से कुछ प्रकाश डालते हैं।

संक्षेप में:

  • रिश्तों में संतुलन सत्य या भ्रम?
  • प्यार, रिश्तों और संतुलन के दायरे को समझना: वास्तविक मानव संबंध की खोज
  • रिश्तों में संतुलन की उम्मीद से मुक्त होकर आगे बढ़ें

Siddharth Tabish Writer

Image Credit: @SiddhartTabish FB

रिश्तों में "संतुलन" जैसा कुछ नहीं होता है.. दरअसल रिश्ते कोई प्राकृतिक चीज तो होते नहीं हैं, इसलिए हम इंसान समझौते, संतुलन इत्यादि का वास्ता देकर कर उन कृत्रिम रिश्तों को निभाते का प्रयास करते हैं.. आप करते सब कुछ अपनी परिस्थिति और वातावरण के अनुसार हैं.. मगर आपसे जब कोई फालतू का "रिश्ते में संतुलन" बनाने की बात करता है तो इसका मतलब ये होता है कि आप "अगले को झेलिए".. ध्यान रखिए कि इस दुनिया में आप इन कृत्रिम रिश्तों का संतुलन बनाने के लिए नहीं पैदा होते हैं.. आप इंसान हैं रोबोट नहीं.. कोई भी कभी भी रिश्ते में संतुलन नहीं बना पाया है क्योंकि ये असंभव है मानव मस्तिष्क के लिए.. आप या तो प्रेम करते हैं या नहीं करते हैं..  संतुलन जैसी बातें बस कागज़ी बातें है जिसका कोई अर्थ नहीं होता है.. आप क़ानून या समाज के डर से चुप रह जाते हैं और बेवकूफ़ लोग इसे "संतुलन" बोलते हैं

एक समय में वयस्क होने पर अगर आप अपनी पत्नी को अधिक प्रेम करते हैं और फिर संतुलन बना कर माँ को भी उतना ही प्रेम देने की कोशिश करते हैं तो दरअसल आप माँ को प्रेम नहीं कर रहे होते हैं.. घड़ी भर के लिए माँ को लेकर आप भावुक हो जाते हैं और उसे आप प्रेम समझ लेते हैं.. आख़िर क्यों माँ और पत्नी के प्रेम बीच बेटा संतुलन बनाए? आख़िर क्यों औरत अपने सास ससुर और अपने माँ बाप के प्रेम के बीच संतुलन बनाए? ये किस तरह की बकवास बातें हैं आखिर?

हर एक उम्र का प्रेम अलग होता है.. वयस्क होने पर लड़कों को मां के प्रेम की नहीं, एक पार्टनर के प्रेम की आवश्यकता होती है.. और अगर उस उम्र में माँ उसे अपने प्रेम में घसीटती है तो ये पूरी तरह से अप्राकृतिक प्रेम होता है.. बच्चा हो जाने पर औरत का पूरी तरह से अपने बच्चे को लेकर प्रेम उमड़ता है, फिर पति को वो मजबूरी के तहत प्रेम दिखाती है क्योंकि वो उसका खर्चा चला रहा होता है.. जो प्रेम उस समय उसका अपने बच्चे को लेकर रहता है वो पति को लेकर नहीं रहता है.. जाने कितने रिश्ते इस वजह से टूट जाते हैं क्योंकि लड़के बच्चा होने के बाद भी पत्नी से वैसे ही बाबू और शोना वाला प्यार ढूंढा करते हैं जबकि पत्नी के लिए बाबू और शोना उसका बच्चा हो जाता है.. पत्नी वयस्क हो जाती है और मर्द वहीं अटका रह जाता है.. लड़कों की माँ अपने लड़कों को ये ज्ञान कभी दे ही नहीं पाती है क्योंकि वो ख़ुद बूढ़ी होते तक भी अपने वयस्क बेटे में प्यार ढूंढती रहती है

प्रेम का ये भ्रमजाल बनता ही इसीलिए है क्योंकि जिस समय और जिस उम्र में आपको जिससे प्रेम मिलना या करना होता है उस उम्र में दूसरे आपसे चिपके रहते हैं और प्रेम पाने के लिए लार टपकाया करते हैं

ये आपकी ज़िम्मेदारी है कि उम्र के हर पड़ाव पर रिश्तों को छोड़ते जाइए.. ताकि लोग भी आज़ाद हो सकें और आप भी आज़ाद हों जाएं.. रिश्ते छोड़ने से प्रेम नहीं ख़त्म हों जाता है.. मगर माँ अगर सारी उम्र आपकी वही माँ बनी रहे जो वो आपके 5 साल की उम्र में थी, तो आपका जीवन नर्क ज़रूर हो जाता है

~सिद्धार्थ ताबिश

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