- आज की दुनिया में सुबह को जल्दी उठने की सोच क्या यह सही है या गलत?
- क्या ब्रह्ममहूर्त में उठना सही है?
- हमारे मन और मस्तिष्क को कितनी नींद की आवश्यकता होती है?
आपके मन में ऐसे कितने सवाल हो सकते हैं जिनके उत्तर कभी-कभी समझ में नहीं आता?
जानिए कैसे अल्पनिद्रा का असर हो सकता है आपके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर!
इन सभी सवालों के उत्तर हम "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-
अब सुबह “जल्दी उठने” की “सोच” भारतीय समाज में गर्व, चिंता, कुढ़न, एक दूसरे को नीचा दिखाने और तमाम तरह की कुंठा को पोषित करने की अवधारणा मात्र है... मध्यम वर्गीय भारतीय इस तरह की छोटी छोटी और बेमतलब “धारणाओं” से अपने घर, पड़ोस, रिश्तेदार और यहाँ तक कि फेसबुक पर भी “टेरर” फैलाते मिलेंगे आपको.. इस तरह की बात खासकर वो लोग आपको करते मिलते हैं जिन्होंने अपने जीवन में कोई “ख़ास उपलब्धि” नहीं पायी होती है.. फिर सुबह जल्दी उठाना, सर्दी में ठन्डे पानी से नहाना, AC में न बैठना, उकडू बैठ के शौष करना, जैसी तमाम बातें उनकी उपलब्धि होती है.. ये इसी के फायदे गिना गिना कर इस दुनिया से चले जाते हैं
ब्रह्ममहूर्त में उठाना उस दौर में सही था जब व्यक्ति शाम 6 या हद से हद 7 बजे तक सो जाता था.. अब एक आम ऑफिस की टाइमिंग ही सुबह दस से शाम छः बजे की होती है.. जो लोग आईटी या अन्य ऐसी कंपनियों में होते हैं वो तो रात 9 बजे तक काम करते रहते हैं.. इन लोगों को घर पहुँचते पहुँचते और खाना खा कर बिस्तर तक जाने में ही 11 या 12 बज जाते हैं.. अगर आप औसत ये माने कि ज़्यादातर शहरों के लोग आज 12 तक सो जाते हैं तो उनका 5 बजे सुबह उठने का मतलब है सिर्फ़ 5 घंटे की नींद लेना.. और अगर कोई भी इंसान लगातार कुछ हफ़्ते ही 5 घंटे की नीद लेता है तो ये तो तय है कि भविष्य में उसके शरीर और मन के साथ कुछ बहुत भयंकर होने वाला है.. इस से वो बच ही नहीं पायेगा
मेरे एक मित्र एक गुरु के आश्रम गए.. वहां उन्होंने देखा कि गुरूजी सुबह 4 बजे उठ जाते हैं.. वापस आ कर वो भी 4 बजे उठने लगे.. 12 बजे तक सोते थे और 4 बजे उठते थे और फिर पूरे दिन ऑफिस में बैठ के उंघते थे.. धीरे धीरे उनके शरीर में इतने भयंकर बदलाव होने लगे कि वो सबको दिखने लगे.. उनका पेट खराब हो गया.. शरीर में विटामिन और मिनरल्स की भयंकर कमी होने लगी.. चेहरा ऐसे लगने लगा जैसे कोई बहुत बूढा व्यक्ति.. अंत में लोगों के समझाने पर उन्होंने नींद लेना शुरू किया ठीक से, फिर जाके सब अपने आप ठीक हो गया
मेरे मित्र ने गुरु का 4 बजे उठाना देख लिया मगर गुरु की अन्य दिनचर्या उसने नहीं देखी.. गुरु के पास कोई मानसिक दबाव, कोई काम, कोई धंधा नहीं था, सिवाए ध्यान करने और पूजा करने के.. और गुरु 6 या 7 बजे ध्यान के लिए चले जाते थे फिर ध्यान के बाद सो जाते थे.. और मेरे ये मित्र रात 12 बजे तक मोबाइल पर लोगों से ऑफिस और धंधे की बातें करते रहते थे.. ये अगर 6 बजे ध्यान में चले जाएँ तो इनका ऑफिस एक महीने बाद बंद हो जाएगा
अब दुनिया का हर देश ये समझ चुका है कि कम से कम एक व्यक्ति के लिए 9 घंटे की नींद लेना कितना ज़रूरी है.. खासकर बच्चों के लिए तो और अधिक नीद ज़रूरी होती है.. बच्चों का स्कूल जितना लेट खुले उनकी सेहत के लिए उतना अच्छा होता है.. बच्चे जितना अधिक और अच्छी नींद लेते हैं उनका शारीरिक और मानसिक विकास उतना अच्छा होता है.. तमाम तरह के मनोविकार सिर्फ़ अच्छी नींद लेने से ही ठीक हो जाते हैं.. मनोचिकित्सक भी जो दवाएं देते हैं वो आपको सिर्फ़ सुलाती और रिलैक्स करती हैं.. क्यूंकि आपना “सोना” सबसे पहले डिस्टर्ब होता है उसके बाद आप “मानसिक रोगी” होते हैं
अब दुनिया के तमाम देशों में “सिएस्ता” यानि दोपहर में खाने के बाद छोटी सी नींद लेने का प्रचलन बढ़ रहा है.. खासकर गर्म देशों में.. अरब में इसे “कैलूला” के नाम से जानते हैं.. जापान और अन्य कई देशों में अब स्कूल में बच्चों को दोपहर में खाने के बाद एक घंटे के लिए सुला दिया जाता है.. ये उनके स्कूल रूटीन का हिस्सा होता है.. इस से बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास बहुत अच्छा होता है.. इसलिए आप भी अगर दोपहर में खाने के बाद कभी भी एक छोटी सी नींद ले सकते हैं तो ज़रूर लीजिये.. स्पेन वगैरह में ये उनके जीवन का हिस्सा होता है
इस दौर में ब्रह्ममहूर्त में उठने वाले आपको अधिकतर भीतर से बीमार मिलेंगे.. वो बेचैन, चिड़चिड़े और तमाम पेट की बीमारियाँ साथ ले कर चलते मिलेंगे.. वो वेद और ग्रन्थ का हवाला आपको देंगे मगर वो ये नहीं जान पाते हैं कि हमारे पूर्वज रात 12 बजे तक मोबाइल पर बैठ कर रील नहीं देखते थे और उनके पास आज के मुकाबले “मानसिक” कार्य का एक प्रतिशत भी “दबाव” नहीं होता था.. कोई भी ब्रह्ममहूर्त में उठने वाला आपको 100 साल जीता नहीं मिलेगा.. यहाँ तक कि ये आपको जल्दी मरते हुवे मिलेंगे बनिस्बत उसके जो अच्छी नींद लेता है
~सिद्धार्थ ताबिश
नोट: फोटो में क्यूबा के एक स्कूल में बच्चे खाने के बाद दोपहर की नींद लेते हुवे
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