पिता: एक खामोश रिश्ते की कहानी!

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पिता, एक खामोश रिश्ता!!

Father, A Story of a Silent Relationship!

Image Credit: fulldhamaal

उज्ज्वल, एक ऐसा नाम जो मोहल्ले के हर बच्चे के ज़बान पर लिखा था, हर एक के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने वाला एक प्यारा सा उज्ज्वल। वैसे तो दीपक ने अपने बेटे का नाम कुछ और सोचा था, लेकिन कहते हैं ना कि ऊपरवाले की मर्ज़ी कुछ होती है। जन्म से पहले कितने ख्वाब सजाए जब दीपिका ने विकलांग नवजात शिशु को देखा तो वह इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर सकी और दीपक का साथ हमेशा के लिए छोड़ के चली गई, शायद ऊपरवाले की यही मर्ज़ी थी।

दीपक को लगा जैसे उसकी सारी दुनिया ही किसी ने छीन ली हो।

लेकिन जब उसने नन्हे से बच्चे को देखा तो लगा जैसे बिना पैर के ज़िंदगी उसे बुला रही हो "पापा मुझे भी इस धरती पर खेलना है"। फिर तो जैसे मेरे अंदर कहां से इतनी सारी हिम्मत आ गई और पलक झपकते ही मैंने उसे ऐसे उठाया कि फिर कभी उसे अकेला न छोड़ा। वह मेरी जिंदगी बन गया।

छोटे से नन्हे हाथ मुझे हमेशा ऐसे पकड़े रहते और उसे मैं हमेशा ऐसे गले लगाए रखता जैसे वह मेरी एक उम्मीद हो, मेरी जीने की।

मैं एक मां तो नहीं था लेकिन मुझे ऐसा लगता था जैसे मैंने उसे जन्म दिया हो। मैं कहीं भी रहूँ मुझे उसकी ही फिक्र लगी रहती थी।

माँ शब्द ही ऐसा लगता है जैसे कोई औरत किसी बच्चे के साथ लिपटी हो और प्यार कर रही हो, लेकिन बाप की ऐसी तस्वीर आपके दिमाग में कभी नहीं बनती। बाप शब्द ही एक शरीर है जो सख्त और कठोर सा दूर खड़ा हो, लेकिन ये बिल्कुल सच नहीं है। बाप को समाज ने बहुत ही ओछी नज़रों से देखा हमेशा।

बाप धूप में खड़ा हुआ एक पेड़ जैसा है जिसके नीचे बैठ कर आपको हर सुख मिलता है, खाने को फल, सर पर एक साया, सुकून की ताज़ी हवा, एक भरोसा कभी न साथ छोड़ने का, लेकिन कभी कोई सर उठा कर ये कहता क्यों नहीं इतना जीने के लिए काफ़ी है? 

बाप को माँ का दर्जा कभी नहीं मिलता चाहे वो कितना ही कर ले वो चुपचाप सा साया बस ऐसे ही खड़ा रहता है बिना किसी के कहे।

जब उज्ज्वल धीरे-धीरे संभलना और उस एक पैर पर चलना सीख रहा था, उसके सभी दोस्त तेज़ी से दौड़ सकते थे, खेल सकते थे, और वह हर काम कर सकते थे जो उज्ज्वल को करने में थोड़ा समय लग रहा था। लेकिन कहते हैं ना कि नाम हमेशा सोच कर रखना चाहिए, जैसा नाम वैसा काम, तो उज्ज्वल ने कभी हार नहीं मानी और तेज़ चलना तो क्या, आज उसके तो जैसे पंख लग गए हों।

उसके खेल के अध्यापक ने खुद आकर मुझसे कहा, "बस थोड़ा समय दीजिए और देखिएगा हमारा उज्ज्वल कैसे हमारे और आपके मन को उज्ज्वल करता है।"

उज्ज्वल मेरी जिंदगी का वो हर एक पल है जो रोशनी से भरा है। उसके सारे दोस्त कितना भी अपने दोनों पैरों पे खड़े होकर दौड़ लें लेकिन मेरा उज्ज्वल सिर्फ़ एक ही पैर पर हवा से तेज़ दौड़ना सीख गया है!!

फुलधमाल प्रेरणा-स्रोत -

विकलांगता केवल शरीर से ही नहीं बल्कि मन से भी होती है, और सच मानिए वो दिन दूर नहीं जब आप अपने ही बनाए हुए जालों से बाहर आ जाएंगे और खुद को आजाद महसूस करेंगे।

लेखक की कलम से...

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