99 प्रतिशत दुःख की जड़ें हमारी अंदर ही हैं, दुःख के विभिन्न पहलुओं पर एक विचार

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एक ऐसे दुनिया में जहां व्यक्तिगत दुख राजनीतिक परिणामों, खेल की हारों, और सामाजिक तुलनाओं के साथ जुड़ा होता है, दुख की सारी आयामिकता उजागर हो जाती है।

राजनीतिक हार से लेकर खेल के दिल दुखाने, सामग्री स्वामित्व की तुलना से सामाजिक निर्णयों तक, मानव पीड़ा का विस्तार है। इस पैराग्राफ में व्यक्तिगत दुखों के अंतरजाल की गहरीयों में जाया जाता है, जिसमें हमारे अनुभूत किए जाने वाले चुनौतियों की अक्सर कृत्रिम प्रकृति को हाइलाइट किया जाता है। यह चिंतन उन जड़ों को महसूस कराता है जो व्यक्तिगत दुःखों की अपेक्षित स्विभावितता पर बल देता है।

आइए "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-

Siddharth Tabish Writer

Image Credit: @SiddhartTabish FB

The roots of 99 percent of our suffering lie within us, a contemplation on the various facets of sorrow.

Image Credit: representational

99% दुःख हमारे स्वयं के जनित होते हैं.. लाखों और करोड़ों कल से बहुत दुखी हैं क्यूंकि कांग्रेस हार गयी.. करोड़ों उस दिन बहुत दुखी थे जिस दिन इंडिया विश्व कप हार गयी थी ऑस्ट्रेलिया से.. लाखों करोड़ों दुखी रहते हैं कि उनके पडोसी ने गाड़ी ले ली.. तो कोई किसी की अच्छी शादी से दुखी रहता है तो कोई किसी के अधिक कमाने से.. लोग कहते हैं.. आप नहीं समझते.. खेल भावना है, इसलिए हम दुखी हैं हारने पर.. लोकतंत्र की भावना है इसलिए दुखी हैं हम चुनाव के रिजल्ट से.. देश बर्बाद हुआ जा रहा है इसलिए हम दुखी हैं.. इंसानियत के समर्थक हैं हम और फिलिस्तीन को कोई सपोर्ट नहीं कर रहा है इसलिए हम दुखी हैं.. दरअसल करने धरने को कुछ है नहीं, इसलिए सोचते हैं कि चलो दुखी हुआ जाए.. इनमे से एक भी दुखियारे या दुखियारी को ये पता अगर ये पता चल जाए कि कल उसकी मृत्यु हो जायेगी, तो ये सारे दुःख एक सेकंड में छू मंतर हो जायेंगे

इंसान, जो कि किसी असल समस्या की वजह से दुखी होता है, उसका प्रतिशत नगण्य है इस दौर में.. सारे दुःख बनावटी हैं, सारी पीड़ाएं ओढ़ी गयी पीड़ाएं हैं

~सिद्धार्थ ताबिश

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