सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को राहत दी, क्या 2024 में भाजपा का खेल बदल जाएगा?

Views: 247

2019 में राहुल ने कर्नाटक में नीरव मोदी का नाम लेते हुए कहा था, 'सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है?'

Rahul Gandhi

Image Credit: PTI

"..इन सभी चोरों के नाम कैसे मोदी-मोदी-मोदी हैं?" इस वक्तव्य के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को मानहानि की सजा सुनाई गई थी। इस मामले को ट्रायल कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक अपील की गई, लेकिन हर स्तर पर खारिज कर दिया गया। चार महीने के बाद, 4 अगस्त को, सुप्रीम कोर्ट ने इस मानहानि के मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी। अब जब दोषसिद्धि पर रोक लग गई है, तो राहुल के सांसद बनने के रास्ते भी खुल गए हैं।

"भारत की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या, विलंब, और टालमटोल के संदर्भ में, आपको यह धारणा हो सकती है कि मानहानि का मामला गंभीर नहीं होता। हालांकि, राहुल गांधी से पूछिए, जिन्होंने न केवल दो साल की सजा का सामना किया, बल्कि उनकी सांसदी भी छीन ली गई। इस परिस्थिति में, यह महत्वपूर्ण है कि...

  • दोषसिद्धि पर रोक लगने के बाद, अब राहुल को क्या करना चाहिए?
  • सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों पर क्या टिप्पणी की?
  • राहुल को किस प्रकार की मार्गदर्शन दी गई?
  • और बार-बार 'अधिकतम सजा' का उल्लेख करते हुए, अदालत ने क्या कहा?

सबसे पहले, चलिए आज की अदालती प्रक्रिया से शुरू करें। गुजरात हाई कोर्ट से राहत प्राप्त नहीं करने के बाद, राहुल ने सुप्रीम कोर्ट की ओर अपना कदम बढ़ाया। बैंच में न्यायाधीश बी.आर. गवाई, न्यायाधीश पी.एस. नरसिम्हा, और न्यायाधीश संजय कुमार शामिल थे। लाइव कवरेज के अनुसार, सुनवाई दोपहर के करीब आरंभ हुई। राहुल की पक्षधर के रूप में अभिषेक मनु सिंघवी उनकी ओर से बयान देने में लगे थे। उनका पहला तर्क यह था कि 'मोदी' समुदाय को विशेष रूप से परिभाषित करने वाली कोई एक रूप, पहचान या रेखा नहीं है। दूसरे तर्क में: पुरुषोत्तम मोदी खुद मानते हैं कि उनका उपनाम असल में 'मोदी' नहीं है। वे 'मोध वणिक' समुदाय से हैं, जिसमें कई जातियां और उपनाम वाले लोग शामिल होते हैं।

इसके बाद, सिंघवी ने एक दिलचस्प तर्क प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने बताया कि राहुल गांधी ने अपने भाषण में उन व्यक्तियों का नाम लिया, जिनमें से किसी ने भी मुकदमा नहीं किया। केवल एक भाजपा के कार्यकर्ता को समस्या आई थी। अब तक, दर्शकों को यह पता चल गया होगा कि राहुल गांधी के भाषण से जिस व्यक्ति को प्रभावित किया गया था और जिसने मुकदमा करवाया, वह एक भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री हैं - पुरुषोत्तम मोदी।"

दूसरी पक्ष के वकील महेश जेठमलानी थे। उन्होंने पॉइंट-आउट किया कि राहुल का उद्देश्य मोदी उपनाम वाले सभी व्यक्तियों का नामर्थक करना था, सिर्फ इसलिए कि वे प्रधानमंत्री के उपनाम से जुड़े हुए हैं।

सुनवाई के दौरान जस्टिस गवाई ने पूछा कि उन निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व जिनमें राहुल कार्यरत है, क्या है? क्या वे संदर्भिक फैक्टर नहीं हैं? उन्होंने कहा, "यहां एक व्यक्ति का हक़ नहीं, बल्कि एक मतदाता का हक़ प्रभावित हो रहा है। ट्रायल कोर्ट ने उच्चतम सजा आपूर्ति की है। इसका कारण बतलाना आवश्यक होगा।" जेठमलानी ने इसके साथ ही दावा किया कि सांसदों का स्तर ऊंचा होना चाहिए। और साथ ही, उन्होंने बताया कि राहुल गांधी ने अपने बयान के लिए किसी प्रकार की क्षमा नहीं मांगी।

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, बेंच ने अंत में फैसला सुनाया -

"ट्रायल जज ने अपने निर्णय में अधिकतम सजा लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें केवल अपमान के मामले में चेतावनी दी है, बाकी के कारणों के अलावा ट्रायल जज ने कोई और कारण प्रस्तुत नहीं किए हैं। इसके अलावा, यह केवल दो साल की अधिकतम सजा की वजह से है कि विशेष रूप से जब अपराध ज़मानती और समझौते से लाया जा सकता था, तो जनप्रतिनिधि क़ानून की धारा 8 (3) के प्रावधान का प्रयोग किया गया है। कम से कम इससे तो उम्मीद की जा सकती थी कि ट्रायल जज किसी अधिकतम सजा की प्रलोभने के कारण बताएंगे।"

बेंच ने अपनी टिप्पणी में राहुल को बिना किसी संदेह के यह कहकर सुझाया कि सार्वजनिक जीवन में एक व्यक्ति को भाषण देते समय अधिक सतर्क रहना चाहिए.

आर्ग्यूमेंट ऑफ़ द डे की दिशा में बदलते हुए, हम पहले इस मामले की टाइमलाइन को फिर से जाएं, इससे पहले कि हम इस पर विचार करें। वर्ष था 2019, और महीना अप्रैल. राजनीतिक दलें लोकसभा चुनावों के लिए वातावरण तैयार कर रही थीं। रैलियों और सभाओं का संचालन जारी था। इसी समय, 13 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार जिले में एक जनसभा आयोजित की गई थी, जिसमें राहुल गांधी भाग लेने की योजना बना रहे थे। इस जनसभा में, वे 'चौकीदार चोर है' के नारे उठा रहे थे और उन्होंने इस नारे को पूरे उत्साह के साथ प्रस्तुत किया। उन्होंने इसी मनोबल से अपने भाषण में भी नीरव मोदी और अन्यों के नामों का जिक्र किया,

'सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों है?'

राहुल की इस टिप्पणी के खिलाफ गुजरात के सूरत में एक आपराधिक मानहानि के मामले की दरज की गई. इस मामले की अदालती प्रक्रिया के दौरान शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी, जो कि सूरत पश्चिम सीट से भाजपा विधायक हैं, ने मामले को कोर्ट तक पहुंचाया. उन्होंने आरोप लगाए कि राहुल ने अपने बयान से पूरे मोदी समाज का अपमान किया है. इस मामले में राहुल पर भारतीय पीनल कोड (IPC) की धारा 499 और 500 के तहत दोषी ठहराने का आरोप लगा दिया गया.

सुनवाई की प्रक्रिया के दौरान मामला मीडिया में बड़े चर्चे में आया, लेकिन समय के साथ मामले की जटिलता से धीरे-धीरे लोगों की रुचि कम हो गई. फिर आया 2022 का मार्च, और एक अद्वितीय घटना घटी. पूर्णेश मोदी गुजरात हाईकोर्ट में गए और वहां अपनी मांग पर खड़े हुए कि वे मामले की अदालती रिकॉर्डिंग पर आधारित सबूतों को देख सकें, जिन्हें अदालत ने संज्ञान में लिया था। उन्होंने कहा कि राहुल से उन सबूतों के संबंध में सवाल-जवाब कराया जाए, और उनके बयान की सामग्री को आपराधिक दंड संहिता (CrPC) की धारा 313 के तहत पेश किया जाए, जिसके तहत आरोपी से उसके बयान की सामग्री को लेकर सवाल-जवाब करने का अधिकार होता है।

यह आदान-प्रदान के बाद भी मामले की वकीलों द्वारा बढ़ाई गई मांग को अदालत ने खारिज कर दिया। इसके बाद पूर्णेश के वकील गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगाकर कहे कि सबूतों की कमी होने के कारण राहुल को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दिया जाए, तब तक सुनवाई की प्रक्रिया रुकी रहे। उनकी इस याचिका को मान लिया गया और मामले की सुनवाई 16 फरवरी 2023 को फिर से शुरू हो गई, लेकिन इस बार सुनवाई के प्रारंभिक दिन पर हाईकोर्ट ने मामले को फिर से ख़त्म करने का फैसला किया।

2023 के मार्च के दूसरे हफ्ते में, दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गईं और 23 मार्च को फैसला आया. इसमें राहुल गांधी को 2 साल की सजा हुई. जानकारी के लिए, कोर्ट ने राहुल को 30 दिनों की अपील समय दिया था। इसके बाद, राहुल को सजा के साथ-साथ महीने भर की जमानत भी मिली थी। हालांकि, सजा की सुनाई जाने के दिन, यानी 24 मार्च को, उनकी सांसदी की सीट रद्द कर दी गई, क्योंकि जनप्रतिनिधित्व कानून के अनुसार, यदि किसी सांसद को 2 साल से अधिक की सजा होती है, तो उनकी सदस्यता ख़त्म हो जाती है।

इसके पश्चात्, 3 अप्रैल को राहुल ने सूरत की सेशन कोर्ट में दो अर्जियां दी। पहली अर्जी में उन्होंने सजा के खिलाफ़ अपील की और दूसरी अर्जी में उन्होंने खुद को दोषी ठहराने के खिलाफ़ अपील की। राहुल ने कहा कि उन्हें अधिक सजा दी गई है, ताकि उनकी सदस्यता समाप्त हो सके।

आज के फैसले के बाद, राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस आयोजित की और उन्होंने कहा,

"कर्तव्य वही है, सवाल पूछते रहेंगे।"

जब भी आपने सुना होगा कि राहुल को राहत मिल गई है, तो पहला सवाल जो आपके मन में आया होगा, वह यह होगा कि अब कांग्रेस का कोर्स ऑफ एक्शन क्या होगा? आगला सवाल यह है: क्या राहुल गांधी को सजा मिली, फिर सांसदी की जिम्मेदारियों से अलग होना होगा, और अब सुप्रीम कोर्ट से राहत मांगनी होगी। इस पूरे सिलसिले में, एक राजनीतिक दल राहुल गांधी की छवि को एक योद्धा के रूप में प्रस्तुत कर रहा है। हालांकि, कांग्रेस ने इस आपत्तिकरण मामले का कैसे समाधान किया है, यह जानने के लिए विचारकों और विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस ने इस "संकट" का विभिन्न तरीकों से समाधान किया है। हालांकि राहुल पर मानहानि का मुक़दमा दायर किया गया, लेकिन उनकी मानसिकता कुछ मायनों में बढ़ गई लगती है।

मानहानि के नियम का इतिहास कैसा है?

मानहानि परियोजना रोमन सम्राटों ने प्रारंभ की, जिसमें निर्दिष्ट आरोप के बिना किसी के खिलाफ दुर्विपथ आरोप नहीं लगाया जाएगा। बिना प्रमाण के किसी की बेइज्जती नहीं की जाएगी। अन्यथा दंडन प्राप्त होगा। रोमन साम्राज्य के बाद, विभिन्न साम्राज्य आए और गए। अंग्रेज़ी शासन के आने तक कई पुराने नियम बदले गए, लेकिन यह नियम नियमित रहा। यह नियम क़ायदे की शक्ल में बदल गया, जिसे हम मानहानि के नियम या आपत्तिकरण के नाम से जानते हैं। इस नियम के पीछे जो सिद्धांत रोमन्स ने आविष्कार किया, वही अंग्रेज़ों ने प्रागत्य किया। और उसे हमने भी अपनाया। ताकि लोग केवल बोलने से नहीं बल्कि जाँच-परख के साथ बोलें। जब भी किसी के बारे में बोलें, तो यह सुनिश्चित करने के लिए कि उसके पास सत्यापन के साक्ष्य हैं। कोई ऐसा बयान, कोई ऐसा दस्तावेज़, कोई ऐसा प्रकाशित सामग्री, जिससे किसी व्यक्ति या संस्था की छवि को क्षति पहुंचती है, गलत जानकारी प्रसारित होती है... तो मानहानि के तहत मुकदमा दर्ज हो सकता है। न्यायालय और संविधान, दोनों ही इंसान या संस्था की मान-सम्मान को उनकी संपत्ति के समान मानते हैं। इसलिए मान-सम्मान की क्षति को संपत्ति की क्षति के तरीके से माना जाता है। व्यक्ति और संस्था को यह अधिकार होता है कि वे अदालत में जा सकें। हाँ, उन्हें यह सिद्ध करने के लिए कि उनकी मान-सम्मान में क्षति हुई है, आवश्यक होता है।

इस मामले में अदालत ने निर्णय किया कि राहुल गांधी की टिप्पणी पूरे मोदी समाज की भावनाओं को आहत करती है। इसके परिणामस्वरूप, उन्हें दंडित किया गया। हालांकि, कांग्रेस ने पहले ही दिन से यह प्रतिष्ठा लिया कि क्या अधिकतम सजा होनी चाहिए? आज, सुप्रीम कोर्ट ने भी यह आवश्यकता प्रकट की। दोषी ठहराए जाने के अगले दिन, सुप्रीम कोर्ट के वकील शादान फरासत ने भी द व्हील बताया कि राहुल गांधी पहली बार अपराधी माने गए हैं, और उन पर पहले कोई दोषसिद्धि नहीं हुई है। probation act and rules के अनुसार, आप पहली बार अपराधी को अधिकतम सजा नहीं दे सकते। फिर राहुल को अधिकतम सज़ा क्यों देनी चाहिए?

राहुल अब लोकसभा में प्रतिवेदन प्रस्तुत करेंगे, वायनाड के लोगों की प्रतिष्ठा को प्रतिनिधित्व करेंगे, लोकसभा की बहसों में भाग लेंगे, लेकिन इस सवाल का जवाब अब भी अधूरा है: अधिकतम सज़ा क्यों? और अधिकतम सजा क्या होनी चाहिए?

Read Also: यूपी में पुलिस इंस्पेक्टर की बीच रास्ते गोली मारकर हत्या, एक मामले की जांच करके लौट रहे थे



Author Social Profile:


Latest Posts

Start Discussion!
(Will not be published)
(First time user can put any password, and use same password onwards)
(If you have any question related to this post/category then you can start a new topic and people can participate by answering your question in a separate thread)
(55 Chars. Maximum)

(No HTML / URL Allowed)
Characters left

(If you cannot see the verification code, then refresh here)