बदमाशों से पूछा, इनाम रखा, और 1000 सीसीटीवी खोजे: उज्जैन रेप केस की अंदरूनी कहानी-
रेप पीड़ित बच्ची ने लोगों से मदद मांगते हुए 8 किलोमीटर तक चलकर यात्रा की, लेकिन किसी ने भी उसकी मदद नहीं की। फिर वह एक आश्रम के दरवाजे पर पहुंची, जहां के पुजारी ने उसे कपड़ों से ढंका और उसे अस्पताल में भर्ती करवाया।
"रविवार को मैं रोड के पास बैठी थी, एक अनजान आदमी पास आया. मेरा मुंह दबाया, फिर गला दबा दिया. मेरी कुर्ती फाड़ दी. मेरे साथ गलत काम किया. प्राइवेट पार्ट से खून निकलने लगा. मैं चिल्लाई, तो उसने मेरा फिर मुंह दबा दिया. इसके बाद वो भाग गया. मैं बेहोश हो गई. सुबह हुई तो मुझे होश आया. मैं पैदल-पैदल मंदिर के पास बड़नगर रोड पर जा रही थी, तब आसपास के लोगों ने मुझे कपड़े दिए. पुलिस को बुलाया."
यह बयान 12 साल की बच्ची का है, जिसके साथ रेप किया गया। जब वह सड़क पर मदद मांगती फिर रही थी, तो किसी ने उसकी मदद नहीं की। इस घटना की तारीख 25 सितंबर है और मदद मांगती बच्ची की वीडियो CCTV कैमरे में कैद हो गई है।
हम उज्जैन केस की चर्चा कर रहे हैं, जिसमें एक बलात्कार के बाद खून से लथपथ होने वाली एक नाबालिग लड़की ने 8 किलोमीटर तक सड़क पर चलते हुए कोई सहायता नहीं पाई। उसने अनगिनत बेहेन्त स्थितियों में अपने आप को संभालते हुए इस दरिद्र यात्रा पर निरन्तर बढ़ते जाने का सामना किया। उसे कहीं से भी किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिली। इस 8 किलोमीटर के रास्ते पर, जो पहाड़ों से गुजरता था, वह घरों के सामने पड़े, दुकानों के पास पड़ी, खाने-पीने की जगहों के पास पड़ी, लोगों के पास पड़ी, लेकिन कोई भी उसकी दिशा में नजर नहीं डाला। वह हर तरह से खुद को डिप्लोमेटिक तरीके से बचाने की कोशिश करती रही, कई बार अपने बाल सुधारती, कई बार अपनी नाक साफ करती, चेहरे को खुजलाती, आंसू पोंछती और कभी-कभी लड़खड़ाकर चलती रही। फिर उठकर फिर खड़ी होती, और चलने लगती। उस बच्ची को उसके 8 किलोमीटर के सफर में कई बार यह लगा कि शायद हमारे समाज में कुछ दिलवाले लोग हैं, जो उसकी मदद कर सकते हैं, लेकिन उसकी आशाएँ उसके दुखभरे मन को नहीं सुकून दे सकती थी कि शायद कोई ऐसा ही इंसान हो, जो उसे सहारा देता।
बच्ची मदद के लिए जब भी आवाज दे रही थी, तो वह कुछ ठीक से कह नहीं पा रही थी। उसकी आवाज में कराह बरबस उठ रही थी।
फिर बच्ची एक आश्रम के दरवाजे पर पहुंच जाती है। आश्रम का एक पुजारी उसे बाहर ही देख लेता है। पुजारी उसे अपना अंगवस्त्र पहनाता है और नाम और समस्या के बारे में पूछता है, लेकिन बच्ची चुप रहती है। बच्ची केवल एक ही सवाल का जवाब दे पाती है - 'हां, भूख लगी है'। फिर उसे नमकीन दलिया खिलाया जाता है, जिससे उसके शरीर में थोड़ी जान आती है।
इसके बाद बच्ची को अस्पताल ले जाया जाता है, और वह वहाँ भर्ती की जाती है। चिकित्सकों द्वारा मेडिकल जांच की जाती है, जिसमें उसके बलात्कार की पुष्टि हो जाती है। पुलिस को इसकी सूचना मिलती है, और जब पुलिस अधिकारियों ने उससे पूछताछ की, तो वह कुछ स्पष्ट नहीं बता सकती। वह बेहद डरी हुई थी और अपने घर का पता भी नहीं बता सकती थी।
इसके बाद, जब उसे थोड़ी सी जान की आस हुई, तो उसने एक इलाके का नाम 'जीवन खेरी' बताया, जो ऑटो ड्राइवर द्वारा उसके साथ घटित बलात्कार की जगह की थी। यह नाम पुलिस को दिया गया, जिसके बाद पुलिस द्वारा उस इलाके की जाँच शुरू की गई। सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई, और कुछ फुटेज में उसको ऑटो में बैठते हुए दिखाया गया, जिससे ऑटो की पहचान हो सकी। ऑटो का नंबर MP13 R5204 था और ड्राइवर का नाम भरत सोनी था। पुलिस ने इस ऑटो की जांच की, जिसमें खून के धब्बे पाए गए। भरत सोनी को पुलिस द्वारा पकड़ लिया गया, लेकिन उसने भागने की कोशिश की। उसके दौरान उसने अपनी घुटना तोड़ दी, जिसके बाद उसकी तस्वीर वायरल हो गई। उसका मामला कोर्ट में पेश किया गया, और उसे 7 दिन की न्यायिक हिरासत मिली।
लेकिन इसके साथ ही, पुलिस एक और टास्क पर काम कर रही थी - बच्ची को उसके घरवालों से मिलवाना। केस दर्ज किए जाने के बाद, पुलिस को लग रहा था कि बच्ची प्रयागराज की निवासी है। फिर बच्ची ने अपने घर का पता बताया - सतना। जब सतना पुलिस से संपर्क किया गया, तो पता चला कि वहां 24 सितंबर को बच्ची के घरवालों ने उसकी गुमशुदगी की FIR भी दर्ज कराई थी। यह क्यों हुआ? क्योंकि लड़की अपने घर से स्कूल जाने के लिए निकली थी और घर वापिस नहीं आई थी।
बच्ची के घरवालों से संपर्क किया गया, और उन्होंने कहा कि वो बच्ची कक्षा 8 में पढ़ रही हैं। उस दिन स्कूल में छात्रवृत्ति की परीक्षा होनी थी। लेकिन न वो स्कूल गई और न ही वापिस घर आई। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, वह सतना स्टेशन से ट्रेन में सवार होकर उज्जैन चली आई। उसने ऐसा क्यों किया? यह किसी को नहीं पता चला। बच्ची के पास भी इसके कारण कोई जानकारी नहीं थी।
लेकिन जब घरवाले मिल गए, तो पूरी कहानी खुल गई। खबरों के मुताबिक, बच्ची जब उज्जैन स्टेशन पहुंची, तो वह स्टेशन के बाहर मौजूद एक ऑटो में बैठी थी। ऑटो वाले ने पूछा कि कहां जाना है। बच्ची ने कहा कि सीधे चलो। पैसे भी नहीं थे, इसलिए ड्राइवर ने उसे उतार दिया। फिर बच्ची थोड़ी दूर चलकर एक और ऑटो में बैठी। इस ऑटोवाले ने भी उसे उठाया और उसे थो
इस मुद्दे पर राजनीति भी हो रही है, और हम सभी जानते हैं कि न्याय और न्याय की भाषा कितनी महत्वपूर्ण है। हम चाहते हैं कि उस बच्ची को न्याय मिले, और उसके साथ ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले को सजा मिले। और इसके साथ ही, हमें अपने समाज और मानवता के प्रति सद्बुद्धि मिले। हमें यह सिखना चाहिए कि अगर कोई हमारे दरवाजे पर आकर मदद मांग रहा है, तो हमें उसकी मदद करनी चाहिए, और हमें यह नहीं पूछना चाहिए कि किसी की दिक्कत में हो क्या।
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