रिश्तों में भय, 'अपने' और 'पराये' का निर्माण, और रिश्तों के सही अर्थ.!
क्या रिश्ते-नाते सचमुच हमारी जरूरत होती हैं? क्या हम उनके बिना सचमुच जिंदा नहीं सकते? या क्या हम इनसे इसलिए बंधे रहते हैं कि वे अंदर के डर को छुपाए रहते हैं?
आइए "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-
जितने भी लोग जो रिश्ते, रिश्तेदारों और परिवार की अहमियत की बहुत बात करते हैं उनसे अगर आप इसकी वजह पूछेंगे और गहराई तक बात को खोदेंगे तो अंत में उनका यही जवाब होगा कि “अकेले रहे और बीमार पड़ गए तो क्या होगा, मर गए तो क्या होगा?”.. तो रिश्तों के पीछे लोगों का अपना “डर” होता है न कि “प्रेम”.. रिश्तों में कोई प्रेम नहीं होता है, रिश्ते बस डर की वजह से चलते हैं.. भीड़ में रहने की सुरक्षा और अकेले रहने का डर रिश्तों को जन्म देता है.. तभी ज़्यादातर जो लोग बहुत संपन्न हो जाते हैं उनके भीतर रिश्तों की अहमियत ख़त्म हो जाती है
मेरी एक मित्र एक बार मुझ से कहा था कि “सिद्धार्थ अगर गरीब होने का “डर” न हो तो मैं अपने पति से आज ही तलाक ले लूं”.. रिश्ते बने रहने की यही हकीक़त है.. सबको कोई न कोई डर है तभी रिश्ते बने रहते हैं
और ये “डर” हमारे भीतर इसलिए पैदा होता है क्यूंकि हम इस संसार को “अपने और पराये” की दृष्टि से देखते और समझते हैं.. हमारा घर और परिवार हमें “अपने लोग और पराये लोग” की धारणा में फंसाए रहता है क्यूंकि उन सबको मरने और बीमार होने का डर दिन रात सताता है.. ये डर बिनावजह का है और समाज का बनाया होता है.. जिस दिन आप “अपने और पराये” की धारणा से मुक्त होते हैं, आपको देखने वाले, आपकी देखभाल करने वाले, आपको प्रेम करने वाले बीस गुनी से भी अधिक संख्या में आपके आसपास इकठ्ठा हो जाते हैं.. सारी उम्र आप अपने और अपने रिश्तेदारों पर ही “भरोसा” करके अपना ब्रह्माण्ड “छोटा” कर लेते हैं.. और इसीलिए आप सारी उम्र डरते रहते हैं और रिश्तों का महिमामंडन करते रहते हैं
~सिद्धार्थ ताबिश
Read Also: आपका साप्ताहिक राशिफल: सभी राशियों के लिए यहाँ ज्योतिषीय भविष्यवाणी देखें।