जीवन की राह में यौवन से बुढ़ापे तक: एक अनमोल यात्रा

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जीवन को जीने का तरीका एक व्यक्ति के लिए व्यक्तिगत होता है और हर किसी का तरीका अलग होता है। फिर भी, कुछ सामान्य तत्व होते हैं जो खुश, संतुष्ट और सफल जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं:

इस दौर में पूर्ण जीवन जीना, संतोष पाना, और होश में जीना ही, सुखी जीवन का सार है!

आज के विचारों के कुछ मुख्य बिंदु:

क्या हम अपने जीवन से संतुष्ट हैं?

क्या हम वो गुजरा हुआ समय से संतुष्ट हैं?

क्या हम बीते हुए पलों में वापस जाना चाहते हैं?

क्या हमें बीते हुए पलों को याद करके उनसे जुड़े रहना चाहिए, या उनसे आगे बढ़ना चाहिए?

इन सभी सवालों के उत्तर हम "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-

Siddharth Tabish Writer

Image Credit: @SiddhartTabish FB

From Youth to Old Age: A Tale of Challenges of Life and Success

कल श्रीदेवी के पति बोनी कपूर ने, श्रीदेवी की मौत के पांच साल बाद मीडिया में बात बताई कि श्रीदेवी को फिट और जवान दिखने की बीमारी थी.. 54 साल की उम्र में वो अट्ठारह साल की लड़की जैसी दिखना चाहती थीं.. इस चक्कर में वो कुछ भी नहीं खाती थीं.. नमक और शक्कर बिल्कुल नहीं खाती थीं और इस चक्कर में जाने कितनी बार बेहोश हो कर गिर चुकी थीं.. एक बार तो ऐसे ही कमज़ोरी में वो बाथरूम में गिर गई थीं और उनके दांत टूट गए थे.. श्रीदेवी को ये भ्रम था कि नमक खाने से उनके डबल चिन हो जाएगा यानी वो मोटी हों जाएंगी.. और इस चक्कर में वो हमेशा निम्न रक्तचाप की शिकार रहती थीं

लोगों को अपनी उम्र से छोटा क्यों दिखना होता है, क्या आप जानते हैं? वो सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उन्होंने अपना जीवन जिया ही नहीं होता.. 30 से 40 साल की उम्र तक उन्होंने दूसरों के लिए जिया होता है.. पति पत्नी के लिए जी रही होती है.. पत्नी पति और बच्चों के लिए, बेटा मां के लिए, मां बेटे के लिए, बिजनेसमैन अपनी कंपनी के लिए, अभिनेता अपनी फिल्मों के लिए, कोई वी पी सिंह के लिए, कोई राहुल गांधी के लिए, कोई मोदी के लिए, कोई कबीर के लिए, कोई बुद्ध के लिए, कोई मुहम्मद के लिए, कोई किताबों के लिए, कोई नाटक के लिए, कोई पैसों के लिए, कोई गरीबों के लिए, कोई मार्क्स के लिए कोई लेनिन के लिए

अपने लिए इन सब लोगों ने कभी जिया ही नहीं होता है.. और जब उम्र थोड़ी बढ़ती है तब इन्हें ध्यान में आता है कि सारा जीवन तो ऐसे बीत गया जैसे सपना.. उस बीते जीवन की इनके पास जो यादें होती हैं वो सपनों जैसी होती हैं.. इसीलिए ये कहानियां लिखते हैं बीते पुराने दिनों की, स्कूल याद करते हैं, कॉलेज याद करते हैं.. कभी वर्तमान में जिए ही नहीं होते हैं इसलिए स्कूल, कॉलेज और पुराने दोस्त यार याद आते हैं.. फिर वही यौवन पाने की चाह क्योंकि वो सपने जैसा बीत गया.. मगर ये फिर भूल जाते हैं कि यौवन को याद करके और उसे पाने की चाह में वर्तमान फिर सपने जैसा ही जिया जा रहा है.. फिर जब अस्सी साल के हो जाएंगे तब 45 साल की उम्र यौवन लगेगी और उसे याद करेंगे.. ये जवान होने का अनवरत क्रम कभी रुकता नहीं है इंसानों का

45 की उम्र में आपकी किसी 18 साल के पुरुष या युवती से कोई तुलना ही नहीं हो सकती है.. 22 साल तक के लड़के लड़की तो किसी काम के नहीं होते हैं, भ्रमित, छोटी छोटी बेकार बातों से परेशान, जीवन में क्या करना है कुछ नहीं पता.. वो बेचारे कभी खुलकर "पाद" भी नहीं पाते हैं.. कोई "पाद" दे तो ये निब्बे निब्बी हंसते हैं और शरमा जाते हैं.. हर एक छोटी छोटी बेकार बातों के लिए इस उम्र के किशोर किशोरियां बड़े ही संवेदनशील होते हैं.. आप इस सब बेवकूफी को पार करके आगे आ चुके हो और फिर अब आपको उसी बेवकूफी भरी उम्र में क्यों वापस जाना है? 

जितना भी अभी तक बेहोशी में जी चुके हैं उस से आगे जीना शुरू कीजिए.. पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं होता है जीवन में.. जाने की कोशिश करेंगे तो बस निराशा के सिवा कुछ हाथ नहीं आएगा.. मृत्यु शाश्वत है.. उम्र बढ़ना शाश्वत है.. और 45 का या 80 का होना उतना ही सुंदर है जितना 18 या 22 का होना.. जिस दिन आपने ये दृष्टि पा ली, आप "पार" हो जाएंगे

~सिद्धार्थ ताबिश

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