इस्लाम का इतिहास – भाग 20
ये बात 610 AD कि है, जब मुहम्मद पैंतीस साल के थे.. काबा जो कि अरबों कि आस्था का मुख्य केंद्र था हर साल आने वाली बाढ़ से कमज़ोर हो चला था.. और कुछ दिन पहले लगी आग ने सोने पर सुहागा कर दिया था.. इसलिए कुरैश के लोगों को अपने मंदिर कि चिंता हो गयी थी.. और वो इसे दुबारा बनाने का सोच रहे थे.. मगर पैसे की कमी सबसे बड़ी बाधा थी
उस समय काबा कि ऊँचाई एक आम आदमी कि ऊँचाई से थोड़ी ही अधिक थी.. और ये सिर्फ एक चार दीवारों वाला बिना छत का खाली कमरा ऐसा था.. काबा में उस समय तक कोई छत नहीं थी इसलिए कुरैश इस बात को लेकर भी चिंतित थे क्यूंकि कुछ दिनों पहले ही चोरी भी हो चुकी थी.. और काबा कि ऊँचाई इतनी कम थी कि अक्सर बकरियां भी कूद कर उस पर चढ़ जाती थीं..
चार खाली दीवारों के साथ काबा पर एक मोटा “तम्बू” वाला मैरून और लाल रंग का कपड़ा ओढाया हुवा था जो उसकी छत का भी काम करता था.. अंदर सबसे बड़े सीरियन चन्द्र देवता हुबल थे, उनके साथ ताकतवर मिस्री देवी अल-उज्ज़ा, ग्रीक के भविष्य बताने वाले देवता अल-कुत्बा और जीसस और उनकी माँ मेरी कि मूर्तियाँ थीं.. एक कुरैश का आदमी सफ़ेद कपड़ों में दिन के कई समय इन मूर्तियों के सामने लोबान कि धूनी देता रहता था और मोमबत्तियां और जलाता था
कुछ दिनों पहले ग्रीस से आये हुवे एक व्यापारी का जहाज़ समुन्द्र किनारे क्षतिग्रस्त हो गया था.. लकड़ी से बने हुवे उस जहाज़ में अच्छी मात्र में लकड़ियाँ थी जो कि काबे के निर्माण में काम आ सकती थीं.. उसी जहाज़ पर “बकूम” नाम का एक “इसाई” बढ़ई भी था जो कुरैश के लिए काबे कि छत का निर्माण कर सकता था.. उस से जब कुरैश के लोगों ने बात की तो वो तैयार भी हो गया
मगर अब सबसे बड़ी मुसीबत ये थी कि काबे को गिराने कि हिम्मत कौन करे? अब्राहा कि सेना का जो हाल हुवा था उसे मक्का के लोग देख ही चुके थे.. इन्ही सब के बीच जबकि कुरैश के लोग काबा दुबारा बनाने की सोच रहे थे, एक सांप ने काबे के भीतर कुछ दिनों से अपना डेरा जमा रखा था.. सांप काबे के भीतर बने छोटे से तहखाने में रहता था.. कुरैश के लोग इस बात से अब और डर गए थे कि शायद अल्लाह ये नहीं चाहता है कि काबा तोड़ के दुबारा बनाया जाय..
मगर तभी एक दिन जब सांप काबे कि दीवार से लगकर धूप सेंक रहा था, एक बाज़ झपट्टा मार के उसे उड़ गया.. और कुरैश के लोगों ने इसे अल्लाह कि तरफ से एक इशारा समझा और काबे के पुनर्निर्माण के लिए जुट गए
क्रमशः ..
~ताबिश