इस्लाम का इतिहास – भाग 19
ख़दीजा से शादी मुहम्मद के जीवन को एक नया मोड़ देने वाली घटना थी.. ख़दीजा ने मुहम्मद को एक स्थिरता प्रादान की और उन्हें आत्मविश्वास दिया.. ख़दीजा चूँकि उम्र में पंद्रह साल बड़ी थीं इसलिए उनको दुनिया का अनुभव भी मुहम्मद से अधिक था.. वो जब तक रहीं मुहम्मद के लिए एक दोस्त जैसी रहीं.. उनकी सलाहकार और उनका मार्ग प्रशस्त करने वाले कि भूमिका में
मुहम्मद से ख़दीजा को छह बच्चे हुवे.. जिनमे से दो लड़के थे और चार लड़कियां.. सबसे बड़ा लड़का “कासिम” हुवा.. क़ासिम के बाद मुहम्मद को अबू अल-क़ासिम के नाम से जाना जाने लगा था.. यानी क़ासिम के पिता.. मगर अपने दुसरे ही जन्मदिन से पहले क़ासिम कि मौत हो गयी.. उसके बाद हुई “ज़ैनब”.. और उसके बाद लगतार तीन और लड़कियां.. “रुकय्यिया”, “उम्मे कुलसूम” और “फातिमा”.. ऊसके बाद एक और लड़का हुवा “अब्दुल्लाह” मगर वो भी ज्यादा दिनों तक जिंदा न रहा
मुहम्मद के घर में सबसे ज्यादा अगर किसी रिश्तेदार का आना जाना था तो वो थी “सफिया”.. मुहम्मद कि सबसे छोटी बुवा.. जो कि उम्र में भी मुहम्मद से छोटी थी.. साफिया का एक छोटा बेटा जुबैर था जो मुहम्मद कि बेटियों के साथ बहुत घुला मिला था.. वो सब आपस में बहुत खेलते थे.. साफिया के साथ उसकी एक कामवाली भी आती थी जिसका नाम था सलमा.. सलमा ने ही ख़दीजा के सारे बच्चों का जन्म करवाया था इसलिए सलमा परिवार के सदस्य के जैसी ही थी..
हलीमा, मुहम्मद की दूध माँ भी अक्सर ख़दीजा और मुहम्मद के घर आती थीं.. ख़दीजा उनकी बहुत इज्ज़त करती थी और माँ जैसा ही प्यार उन्हें देती थी..
मुहम्मद जब पैंतीस के हुवे तो एक बार बहुत ज़बरदस्त सूखा पड़ा और हलीमा के बहुत से मवेशी उस सूखे कि भेंट चढ़ गए.. ऐसे समय में हलीमा जब ख़दीजा के घर आयीं तो ख़दीजा ने उन्हें चालीस भेड़ें और ऊंट पर लगाने वाली एक बग्घी भेंट में दिया..
इस सूखे ने बहुत परिवारों कि रोज़ी रोटी पर बहुत बुरा असर डाला था.. और अबू तालिब, मुहम्मद के चाचा और अभिभावक, भी इस सूखे कि वजह से बहुत परेशानियों से गुज़र रहे थे.. उनकी आमदनी के ज़रिये बंद हो गए थे.. मुहम्मद ये देख कर बहुत विचलित हुवे और उन्होंने तय किया कि अपने चाचा के लिए उन्हें ही कुछ करना होगा अब.. मगर मुहम्मद अकेले इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी लेने कि हालत में नहीं थे क्यूंकि अबू तालिब के कई बच्चे थे.. मुहम्मद अकेले अपने व्यापार के मालिक नहीं थे बल्कि व्यापार और दौलत तो सब ख़दीजा कि थी.. उस समय मुहम्मद के चाचाओं में जो सबसे अधिक पैसे वाले वो थे अबू लहब.. मगर अबू लहब थोडा दूरी पर रहते थे और वैसे भी अबू लहब कि माँ और अबू तालिब और अब्दुल्लाह कि माँ एक नहीं थी, इसलिए वो सगे चाचा नहीं थे.. वो अपनी माँ कि एकलौती संतान थे
इसलिए मुहम्मद ने अपने दुसरे चाचा “अब्बास” से मदद लेने कि सोची क्यूंकि अब्बास से मुहम्मद का बहुत ही गहरा रिश्ता था.. अब्बास लगभग मुहम्मद की ही उम्र के थे, सिर्फ तीन साल बड़े, और उन्ही के साथ पले बढ़े थे इसलिए अब्बास से मुहम्मद आसानी से मदद के लिए बिना झिझक बोल सकते थे.. और अब्बास कि हैसियत भी थी कि वो कुछ मदद कर सकते.. अब्बास से ज्यादा घनिष्ट सम्बन्ध मुहम्मद के अब्बास की पत्नी “उम्मे अल-फज़ल” से थे.. वो मुहम्मद को बहुत अधिक प्यार और सम्मान देती थीं और अपने घर में हमेशा उनका बहुत ही गर्म जोशी से सवागत करती थीं.. मुहम्मद अब्बास के पास जाते हैं और अब्बास उनकी बात से सहमत हो जाते हैं
मुहम्मद और अब्बास अबू तालिब के पास जाते हैं.. अबू तालिब कहते हैं कि कुछ भी करो मगर मेरे दो बेटे “अक़ील’ और “तालिब” को मेरे पास छोड़ दो.. अबू तालिब का छोटा बेटा “जफ़र” अब पंद्रह साल का हो गया था.. मगर अब वो अब सबसे छोटा नहीं था क्यूंकि जफ़र के पांच साल के बाद अबू तालिब के एक और बेटा हुवा था जिसका नाम उन्होंने “अली” रखा था.. अली अब दस साल का था
अब्बास ने जफ़र कि ज़िम्मेदारी संभालने का निर्णय लिया और मुहम्मद ने “अली” को लिया.. मुहम्मद का आखिरी बेटा “अब्दुल्लाह” एक साल का भी नहीं हो के मर गया था इसलिए “अली” ने मुहम्मद और ख़दीजा को उसकी कमी पूरी कर दी थी.. अली अपनी भतीजियों रुकय्यिया और उम्मे-कुलसूम के लगभग बराबर थे और ज़ैनब से थोड़े छोटे और फातिमा से थोड़े बड़े थे.. इन पांचों बच्चों ने “ज़ैद” (मुहम्मद के दत्तक पुत्र) के साथ मिलकर मुहम्मद का परिवार पूरा कर दिया था और आने वाले समय में इस्लाम के आने के बाद ये पाँचों अपनी एक अहम् भूमिका निभाने के लिए तैयार हो रहे थे
क्रमशः ..
~ताबिश