इस्लाम का इतिहास - भाग 14
अब्दुल मुत्तलिब के छोटे लड़के हमज़ा और अब्बास का साथ मुहम्मद लिए दोस्तों जैसा था.. रिश्ते में दोनों मुहम्मद के चाचा लगते थे मगर हमउम्र का होने की वजह से उनका रिश्ता भाई और दोस्तों जैसा ज़्यादा था.. इन तीनो में सबसे शक्तिशाली हमज़ा थे..अब्बास और हमज़ा दोनों ही युद्ध कौशल के गुर सीख रहे थे मगर हमज़ा के लक्षण एक कुशल योद्धा के थे और अबू तालिब को दिख रहा था कि आने वाले समय में हमज़ा एक कुशल योद्धा बनेगा
मुहम्मद एक औसत लंबाई के साथ औसत शक्ति के इंसान थे.. मगर उनकी निगाहें बहुत तेज़ थी और ये गुण उन्हें एक कुशल तीरंदाज़ बनाते थे.. तीरंदाज़ी में उनकी निपुणता किसी से छुपी नहीं थी
क़ुरैश के लोगों का उस समय लगभग किसी के साथ भी कोई झगड़ा नहीं होता था.. एक बार "नज्द कबीले" के एक व्यक्ति की मृत्यु "किनानह" क़बीले के एक व्यक्ति द्वारा हो जाती है.. किनानह के लोगों पर जब नज्द वाले हमला करते हैं तो क़ुरैश के लोग किनानह का साथ दे देते हैं.. और यही से एक दुश्मनी की शुरुवात हो जाती है और जाने अनजाने क़ुरैश के लोग नज्द के दुश्मन बन जाते हैं.. तीन से चार साल ये दुश्मनी चली थी मगर इन तीन चार सालों में सिर्फ पांच दिन ही असल लड़ाई हुई थी.. बाकी समय मामला शांत ही रहता था
उस समय बनु हाशिम वंश (जिस वंश में मुहमद का जन्म हुवा) के मुखिया ज़ुबैर थे, जो कि मुहम्मद के सगे चाचा थे.. अबू तालिब और ज़ुबैर उन पांच लड़ाईयों की पहली लड़ाई में मुहम्मद को साथ ले कर गए थे.. मुहम्मद उस समय बहुत छोटे थे और इनका काम दुश्मन के उन तीरों को इक्कठा करना था जो निशाने से चूक जाते थे.. मुहम्मद उन तीरों को इक्कठा कर के अपने चाचा को देते थे और चाचा उन तीरों को वापस दुश्मनो पर छोड़ते थे
उन्ही एक लड़ाई में जब एक बार क़ुरैश के लोगों की हालात अच्छी नहीं थी तब मुहम्मद को भी अपनी तीरंदाज़ी दिखाने का मौक़ा मिला और सभी को उनकी तीरंदाज़ी बहुत पसंद आई
धीरे धीरे.. सिखते सिखाते मुहम्मद जवानी की दहलीज़ पर बढ़ रहे थे.. अपने रिश्तेदारों और उनके व्यापार के सिलसिले में कभी एक कारवाँ तो कभी दुसरे कारवां के साथ अरब और उसके आस पास के इलाकों का चक्कर लगाते हुवे वो व्यापार के गुर सीख रहे थे.. और बीस साल की उम्र तक पहुँचते पहुँचते उनके व्यापार कुशलता की इतनी प्रसिद्धि हो चुकी थी कि ज़्यादातर व्यापारी रिश्तेदार और दुसरे प्रसिद्ध व्यापारी उन्हें अपने कारवाँ का हिस्सा बनने के लिए बुलाने लगे थे
व्यापर कुशलता का जो सबसे बड़ा गुर मुहम्मद के पास था वो था "ईमानदारी".. पूरे मक्का में मुहम्मद को "अल-अमीन" के नाम से जाना जाने लगा था.. जिसका मतलब होता है भरोसेमंद और यक़ीन के क़ाबिल
क्रमशः ..
~ताबिश