इस्लाम का इतिहास - भाग 12
उस घटना के बाद हारिस और हलीमा काफ़ी डर गए और हारिस ने हलीमा को बोला कि वो मुहम्मद को फ़ौरन उनकी माँ आमिना के पास ले जाएँ.. हलीमा जब आमिना के पास पहुंची और उस घटना का ज़िक्र किया तो आमिना को कुछ ख़ास अचरज नहीं हुवा.. आमिना ने हलीमा से कहा "मेरे बेटे का भविष्य बहुत उज्जवल है".. और हलीमा को बोला कि अब वो मुहम्मद को अपने पास ही रखेंगी.. और हलीमा मुहम्मद को उनकी माँ आमिना के पास छोड़ कर वापस चली गयीं
अब मुहम्मद को अपना भरा पूरा परिवार मिल गया था.. जहाँ उन्हें दादा का प्यार और चाचाओं का दुलार खूब मिलता था.. चाचा लोग अपने भाई के इस बच्चे को बहुत प्यार दे रहे थे और अब्दुल मुत्तलिब (दादा) तो अब्दुल्लाह का सारा प्यार अब मुहम्मद पर उड़ेलते थे.. अब्दुल मुत्तलिब के दो बच्चे, लड़का "हमज़ा" और लड़की "सफ़िया" मुहम्मद के जोड़ीदार ही थे.. हमज़ा, मुहम्मद के बराबर था और सफ़िया थोड़ी छोटी.. बाप अदुल्लाह, की तरफ के रिश्ते से ये दोनों मुहम्मद के चचा और बुवा थीं और माँ आमिना के रिश्ते से भाई बहन.. इन तीनो का सम्बन्ध एक उम्र का होने की वजह से बहुत प्रगाढ़ था और अंत तक रहा
जब मुहम्मद छः साल के हुवे तो आमिना उन्हें मदीना ले कर गयीं अपने रिश्तेदारों के पास.. दो ऊंटों पर ये लोग एक काफ़िले के साथ गए.. एक ऊंट पर आमिना थीं और दुसरे पर मुहम्मद और उनके बाप की "गुलाम लड़की" "बरकह".. बरकह का भी मुहम्मद से बहुत घनिष्ट सम्बन्ध था और उसने मुहम्मद को बहुत प्यार दिया था.. मदीना में मुहम्मद ने अपने रिश्तेदारों के यहाँ खूब मज़े किये और वहीँ उन्होंने अपने एक रिश्तेदार के तालाब में तैराकी सीखी और अन्य बच्चों से पतंग उड़ाना
मदीना से वापस लौटते समय "अबवा" नाम की जगह पर आमिना बीमार पड़ गयीं इसलिए इन लोगों को वहां अपना डेरा डालना पड़ा और काँरवां इनके बिना वापस मक्का चला गया.. वहीँ आमिना की मौत हो गयी और मुहम्मद को संभालने के लिए अगर कोई वहां था तो वो थी ग़ुलाम लड़की बरकह.. आमिना को वहीँ दफन करके बरकह मुहम्मद को वापस लेकर मक्का आ गयी
अब मुहम्मद पूरी तरह से अनाथ हो चुके थे.. इसलिए अब्दुल मुत्तलिब ने अब मुहम्मद की पूरी ज़िम्मेदारी संभाली.. वो लगभग हर समय अब मुहम्मद को अपने साथ रखते थे.. अब्दुल मुत्तलिब को काबा से बहुत लगाव था और वो दिन का अधिकतर समय काबा के पास ही बिताते थे.. वहीँ "हिज्र इस्माइल" पर उनके लिए एक बिस्तर सुबह लगा दिया जाता था जहाँ वो दिन भर बैठे रहते थे.. अब्दुल मुत्तलिब की इतनी अधिक इज़्ज़त थी कि उस बिस्तर पर उनके अलावा और किसी को बैठने का हक़ नहीं था यहाँ तक की उनके सबसे छोटे बेटे हमज़ा को भी.. मगर मुहम्मद को अब्दुल मुत्तलिब अपने साथ ले कर बैठते थे.. जब एक बार उनके चाचा ने मुहम्मद को वहां बैठने से मना किया तो अब्दुल मुत्तलिब ने टोका और कहा "इसका भविष्य बहुत उज्जवल है.. इसे मत रोको"
अस्सी साल के अब्दुल मुत्तलिब अपने सात साल के पोते के हाथ में हाथ डाल चला करते थे.. यहाँ तक की बड़ी से बड़ी सभाओं में उन्हें साथ ले जाते थे और सात साल के मुहमद से हर मसले पर उनकी राय पूछते थे
जब अब्दुल मुत्तलिब का अंतिम समय आया तो उन्होंने मुहम्मद की सारी ज़िम्मेदारी अपने बेटे और मुहम्मद के सगे चाचा "अबू तालिब" को सौंप दी.. अबू तालिब और उनकी बीवी फातिमा ने मुहम्मद को बहुत प्यार से स्वीकार किया और उनका लालन पालन अपने बच्चों से भी अधिक अच्छे तरीके से करने लगे.. जिसे आने वाले समय में मुहम्मद ने हर मौके पर स्वीकार किया था
क्रमशः..
~ताबिश