क्या आप सचमुच आतंकवाद या बलात्कार ख़त्म करने में रूचि रखते हैं?

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How to eradicate terrorism, rape and other social evils from our society - Tabish Siddiqui


हम में से ज़्यादातर भारतियों की फेसबुक वाल एक न्यूज़ पोर्टल भर होती है.. सिर्फ करंट टॉपिक पर लिखना और बढचढ कर लिखना बस यही एक मात्र सोच और समझ होती है ज़्यादातर हम भारतियों में.. और युवक हमारे इस से इतने सम्मोहित रहते हैं कि उन्हें भी लगता है कि फेसबुक वाल न्यूज़ लिखने की जगह है.. इसलिए दिन भर मुझे मेसेज कर के के करंट टॉपिक बताया करते हैं कि इस पर लिखिए.. लीजिये बलात्कार हो गया आप चुप हैं.. एक छोटी बच्ची के साथ ऐसे किया लोगों ने आप चुप हैं.. आपको तो बस इस्लाम पर लिखना आता है और कुछ नहीं

मेरे एक मित्र हैं.. बहुत प्यारे मित्र हैं.. राकेश जी.. अच्छी भली बड़ी नौकरी थी उनकी.. अच्छा भला कमा रहे थे.. मगर जीवन की इसी उठापटक के बीच उनके मन में एक दिन बिजली कौंध गयी जब वो अपने आसपास होते बलात्कार से आहात हुवे और सोचा कि कैसे आखिर कोई किसी का बलात्कार कर सकता है.. क्या सोच होती है एक बलात्कारी के मन में और कैसे ये सोच पनपती है आखिर.. ये बात उनको इतने भीतर तक चुभ गयी कि अपनी नौकरी छोड़ कर, साइकिल उठा कर निकल पड़े सम्पूर्ण भारत की यात्रा पर.. ये यात्रा उन्होंने इसलिए शुरू की ताकि वो युवाओं को जागरूक कर सकें, उनसे बात कर सकें और जान सकें कि कैसे बचपन से उनके भीतर एक स्त्री को लेकर इतनी कुंठाएं पनपती है.. कई साल हो चुके हैं उनकी इस यात्रा को.. और उनकी साइकिल यात्रा अभी भी जारी है.. सैकड़ों हज़ारों युवाओं को उन्होंने जागरूक किया.. जाने कितने दिल बदले और जाने कितने लोगों के भीतर से उस कुंठा को निकाला उन्होंने और आज भी लगे हुवे हैं.. तमाम मुसीबतों के बीच उनकी यात्रा जारी है और मेरी उनकी अक्सर बात होती रहती है उनकी यात्रा को लेकर

राकेश भाई ने समझा कि समस्या क्या है.. उन्होंने चिंतन किया कि ये बलात्कारी आखिर आते कहाँ से हैं.. ये किसी दूसरी दुनिया से तो आते नहीं है बल्कि इसी समाज का हिस्सा होते हैं हमारे.. हमारे और आपके घर के ही लोग बलात्कारी बनते हैं.. हमारे आपके बच्चे बलात्कारी बनते हैं.. जब उनको ये समझ आ गया कि ये सब अपने ही आसपास का मामला है.. अपने ही घर का मामला है तब उन्होंने इसके बारे में चर्चा करने की सोची और लग गए युवाओं से बात करने में

अब देखिये कि आप के साथ प्रॉब्लम है क्या.. आपके लिए रेप एक न्यूज़ है.. और उस न्यूज़ को हम जैसे न लिखें तो आपको लगता है कि क्रान्ति में कमी आ रही है और हम लोग रेस्पोंसिबिलिटी से भाग रहे हैं.. आप एक दो दिन रेप रेप चिल्लाते हैं और फिर उसके बाद आप जुट जायंगे किसी और मुद्दे पर.. और आप भूल जायेंगे उस बलात्कार को और फिर आ कर हमसे कहेंगे कि अब इस पर लिखो.. फिर दुसरे दिन कुछ और लिखो.. आपके हिसाब से रोज़ रोज़ एक नयी समस्या पर लिख देने से वो समस्याएं ख़त्म हो जाती हैं.. जैसे ही न्यूज़ चैनल पर बलात्कार की न्यूज़ बंद होती है आपके लिए बलात्कार ख़त्म हो जाता है और नया मुद्दा शुरू हो जाता है


जब आप बिजी होते हैं मोदी, राहुल, अमित शाह, केजरीवाल करने में.. और इसी बीच में अगर मैं आ कर आपसे कहूँ कि देखो एक अधिकारी ने, जो निर्भया के रेप का केस देख रहा है, उसने कहा है "कि निर्भया की माँ इतनी सेक्सी है तो निर्भया कितनी सेक्सी रही होगी.. इस बारे में आप क्या कहेंगे?" तो आप इस पर कोई ख़ास इंटरेस्ट नहीं लेंगे क्यूंकि अब निर्भया का मामला बहुत पुराना हो चुका है और उसकी कोई ख़ास TRP बची नहीं है.. आप इस समय माल्या, और नीरव मोदी पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और देश का पैसा लूटे जाने से बचा रहे हैं 

तो आपको क्या लगता है कि आप किसी समस्या के निदान के लिए लिखते हैं? कोई समस्या हल की है आप लोगों ने आज तक अपने समाज की? 

राजा राम मोहन राय से लोग ऐसे ही विरोध करते थे जब वो सती प्रथा को मिटाने में जुटे हुवे थे.. लोग उनसे कहते थे कि और भी बहुत समस्याएं हैं उन सब को भी देखो.. देखो मुसलमान अपनी औरतों के साथ क्या कर रहे हैं.. देखो उनके यहाँ चार चार औरतें रखी जाती हैं.. मगर राजा राम मोहन राय को समस्या पता थी और वो ये भी जानते थे कि ये जो लोग हैं ये बस इसलिए ये सब कह रहे हैं ताकि उनका ध्यान भटक जाए और इनकी अपनी पुरानी परंपरा, सती प्रथा, न खोने पाए

सोचिये अगर राजा राम मोहन राय दलित के लिए भी लड़ रहे होते, मुस्लिम औरतों के लिए भी लड़ रहे होते, गरीबों को भी न्याय दिला रहे होते, किसानों को उनके गन्ने का मूल्य दिला रहे होते, बलात्कारियों के पीछे लगे होते, पूंजीपतियों के ख़िलाफ़ धरने कर रहे होते.. तो आप बताईये कि कोई समस्या उन्होंने हल की होती? क्या सती प्रथा ख़तम हो पायी होती?

इस्लाम को मानने वाले मेरी बातों से बहुत बेचैन रहते हैं.. उनके कमेंट अप देखिये मेरी वाल पर.. वो मुझे दिन रात यही बताते रहते हैं कि देखो दलित मर रहा है, मोदी किसानो को मारे दे रहे हैं, गरीबी अपने चरम पर है, गंगा जमुनी तहज़ीब दांव पर लगी है, बलात्कार हो रहे हैं, कल बस खायी में गिर गयी कितने बच्चे मर गए, देखिये मदरसे वाले तिरंगा ले कर निकल रहे हैं, देखिये मदरसों में राष्ट्रगान गाया जा रहा है.. आप इस सब पर लिखिए.. आप तो बस इस्लाम की बुराई और उसकी कुरीति पर ही लिखा करते हैं.. आप पत्रकार बन जाईये और दिन भर में कम से कम दस मुद्दों पर लिखिए फिर देखिये हम सब आपको कितना निष्पक्ष कहेंगे.. आपकी वाह वाह करेंगे.. असल समस्या इस्लाम नहीं है असल समस्या ये सब है इस पर लिखिए

इन लोगों को दरअसल किसी मुद्दे से कोई मतलब नहीं होता है.. न तो इनको दलित की रत्ती भर फ़िक्र होती है और न बलात्कार की.. इन्हें चूँकि मेरे लेख बेचैन करते हैं और ये चाहते हैं कि बस किसी तरह इस आदमी का ध्यान भटका दिया जाए तो हमे दिन रात सोचने पर मजबूर न होना पड़े.. हम चैन से सो सकें ये देखकर कि देखो हिन्दू आपस में अब लड़ मर रहे हैं.. कितने गंदे हैं ये लोग.. हमे चैन मिल सके कि हमारा खूनखराबा ही अकेला खूनखराबा नहीं है.. ये हिन्दू भी वैसे ही हैं.. और फिर हमे सुकून मिल जाए कि आतंकी हमारे यहाँ ही नहीं है.. इनके यहाँ भी हैं

आप गौर से देखिये इन चिंतकों की फेसबुक वाल को.. आपनी वाल पर, अपने लेखों में ये दिन रात ये यही प्रूव करते मिलेंगे आपको कि आरएसएस और उन जैसे संगठन आतंकी हैं और हिन्दू भी आतंकी हो चुके हैं.. दरअसल जब कोई हिन्दू अब बलात्कार करता है या कोई आतंकी काम करता है तो इन्हें दुःख नहीं होता है बल्कि ये भीतर से संतुष्ट हो जाते हैं कि चलो अब हिन्दुवों को भी हम टारगेट कर पायेंगे.. और फिर ये जुट जाते हैं पत्रकार बनकर पीड़िता के पक्ष में लिखने.. आपको लगता है कि इन्हें दुःख हवा है? ज़्यादातर को कोई दुःख नहीं होता है बल्कि इनके भीतर पीड़िता के अपने धर्म का होने की वजह से गुस्सा होता है.. पीड़िता किसी और धर्म की होती तो शायद इनके कान पर जूं भी न रेंगती

आपने कितने मुस्लिम संगठनों और जमातों को देखा है निर्भया या अन्य रेप केस पर रैलियां निकालते? जो मुझ से कहते हैं कि दलितों पर आप लिखिए मैं उनसे पूछता हूँ कि आज़ादी से लेकर आज तक आप लोगों ने अपने आस पास के दलितों के उत्थान पर कितना काम किया है? कितने दलितों में आपने सऊदी से आये हुवे मदरसों के चंदों को बांटा है? कब कब आपने दलितों के उत्थान के लिए चन्दा इक्कठा किया है बताईये? जैसे आप मस्जिदों के लिए चंदे मांगते हैं वैसे आपने किसी दलित का घर बसाने के लिए कोई चन्दा माँगा है किसी से?

मेरा इस्लाम पर लिखना आपको बेचैन करता है वो मैं बहुत अच्छी तरह समझता हूँ.. और मेरा मदरसों से लेकर हदीसों तक के ऊपर बोलना आपको बेचैन करता है और आप सोचते हैं कि जैसे बाक़ी दुनिया के लोग बस आतंकवाद पर हाय हाय करते हैं और मुसलमानों को सूफी तालीम देते हैं और उन्हें अच्छी अच्छी हदीसें और जातक कहानियां सुना कर अच्छे काम के लिए प्रेरित करते हैं वैसा कुछ मैं क्यूँ नहीं कर रहा हूँ.. मैं तो सीधा सीधा सारी  जड़ पर चोट कर रहा हूँ और जाने क्या क्या बेतुके टॉपिक उठा लाता हूँ.. क्यूँ नहीं मैं पैगम्बर के अच्छे काम लोगों को बताता हूँ, क्यूँ नहीं मैं अच्छी अच्छी इस्लामिक स्टोरी सुनाता हूँ जिस से आप दुखी भी न हों और आपको ये भी लगे कि आतंकवाद ऐसे ख़त्म हो जाएगा.. मैं ऐसा कुछ क्यूँ नहीं करता हूँ जैसा आपके थोड़े से सेक्युलर मौलाना और आलिम करते हैं?

जैसे आप रोज़ बलात्कार ख़त्म कर देते हैं, दलित समस्याओं को सुलझा देते हैं फेसबुक पर, गरीबों को उनका हक़ दिला देते हैं.. वैसे ही आपको ये लगता है कि चार हदीसें अच्छी सी आपने शेयर कर दी, दो चार कुरान की अच्छी सी आयतें शेयर कर दी, फलाने रहमतुल्लाह अलयेह और ढिमाके रहमतुल्लाह अलयेह की बात लोगों को बता दी.. दाग़ और मीर के कुछ शेर जो इस्लामिक कट्टरता पर हैं उनको लिख दिया.. अच्छी सी कविता लिख दी.. तो आतंकवाद ख़त्म हो गया

ऐसे आतंकवाद और मज़हबी कट्टरता आपके लिए ख़त्म होती है मेरे लिए नहीं.. मुझे पता है कि आपके जितने भी सेक्युलर मौलाना हैं वो सलाफ़ी/वहाबी/सुन्नी पंथ से निकालकर लोगों को बरेलवी बना लेते हैं तो उन्हें लगता है कि अब वो सलाफ़ी, सूफ़ी हो गया.. उन्हें ये पता नहीं चलता है कि अब यहाँ वो उसे मारेगा जो रसूल के शान में गुस्ताखी करेगा या अली और हसन हुसैन की तुलना किसी इंसान से कर देगा.. ये सूफ़ी भी वही सब करेगा जो पहले से सलाफी या वहाबी बन कर कर रहा था.. बस अब इसको मुद्दा दूसरा मिल जाएगा और कुछ नहीं.. रहेगा ये उतना ही उग्र और बारबेरिक 

तो आप ये जो दो मिनट में सूफ़ी बन जाते हैं, दो सेकंड में सनातनी हो जाते हैं, ये दरअसल होता कुछ नहीं है.. आप रहते वही हैं.. बस मौक़े के हिसाब से चला बदलते रहते हैं.. आप निर्भया के लिए मोमबत्ती ले कर चल देते हैं तो आपको लगता है कि आपके अपने भीतर का बलात्कारी ख़त्म हो गया है तो ऐसा कुछ होता नहीं है.. आप इंच भर भी नहीं बदलते हैं भीतर से उलटा वो मोमबत्ती लेकर चलना आपको और अहंकार और दंभ से भर देता है और आपको लगने लगता है कि बलात्कारी दूसरे लोग होते हैं और आप और आपका परिवार तो दूध का धुला है.. और फिर पूरी उम्र कभी आप अपने ख़ुद के बेटे से बैठकर नहीं पूछते हैं कि "बेटा तू क्या कभी किसी लड़की का रेप करने का सोचता है कि नहीं?".. क्यूंकि आप ये मान लेते हैं कि जैसे आप दूध के धुले हैं वैसे आपका बेटा भी है

इसलिए मुझे अपने मूल पर टिके रहने दीजिये.. मेरे जैसे कम से कम एक लाख ताबिश आयेंगे तब जा कर कुछ हो पायेगा इन खलीफ़ाओं के इस्लाम का वरना कोई उम्मीद नहीं है.. इनके लाखों लाखों इदारे और जमातें दिन रात नौजवानों में ज़हर घोलती रहती हैं और दिन रात कैंसर की तरह अपने धर्म को फैलाने में जुटी रहती हैं.. और आप लोग (कम्युनिस्ट/सेकुलर्स और दुसरे लोग) आज तक इनको इसलिए नहीं सुधार पाए क्यूंकि आप सोचते हैं कि आपने एक आर्टिकल लिख दिया तो आपने इन्हें सुधार दिया.. फिर आप दूसरे  मुद्दे के दुसरे आर्टिकल पर जुट जाते हैं.. जबकि इनके लाखों स्कूल, इदारे, मदरसे और जमातें दिन रात चौबीसों घंटे लोगों को कट्टर, उग्र, बारबेरिक, नफरती और जेहादी बनाया करते हैं.. इनमे से कुछ एक दो जो अच्छे निकल जाते हैं अपने घर और परिवार की सोच की वजह से वो अलग होते हैं मगर इनके इदारों की पूरी कोशिश यही रहती है कि उन्हें एकदम अंधा और बहरा बना कर वो जो चाहें इनसे करवाते रहें

आप लोग किसी भी समस्या का समाधान नहीं चाहते हैं कभी.. आपको दरअसल रेपिस्ट चाहिए ताकि आप एक दुसरे को कोस सकें.. आपको आतंकी, उग्र लोग चाहिए एक दुसरे के धर्मों में ताकि आप एक दुसरे पर निशाना साध सकें.. सोच के बताईये मुझे कि क्या हिन्दुवों में जो उग्रवादी पैदा हो रहे हैं उन्हें आपने सुधारने के लिए कुछ कोशिश की है? या आप बस मज़े लेकर उछल उछल कर उन्हें कोसते रहते हैं? एक दूसरे को कोसने से आपके हिसाब से समस्या हल हो जायेगी?

ऐसे ही बलात्कार है.. इसे आपको गहराई से समझना होगा.. इसके पीछे का मनोविज्ञान समझना होगा.. जब निर्भया के साथ बलात्कार हुवा था तो उस वक्त के गूगल सर्च में करोड़ों की संख्या में लोग उसके बलात्कार की क्लिप और विडियो सर्च कर रहे थे.. करोड़ों की संख्या में.. ये कौन लोग थे? हम और आपके घरों के बच्चे और बूढ़े ही थे.. उनको देखना था कि कैसे बलात्कार हुवा और उसे देखकर उन्हें दरअसल मज़े लेना था और हस्तमैथुन करना था.. और फिर इन्ही सर्च करने वालों में जाने कितने मोमबत्ती ले कर जंतर मंतर गए होंगे

जब एक अधिकारी ये कहता है कि निर्भया की मां का फिगर इतना अच्छा है तो निर्भाया का कितना अच्छा रहा होगा.. तो आपको क्या लगता है? कहीं मार्स से आ कर कोई युवक या प्रौढ़ किसी और लड़की का बलात्कार कर जाएगा? आप इस मानसिकता पर संज्ञान कब लेंगे? कब आप अपने घर और परिवार से बलात्कारितों को ख़त्म करने की शुरुवात करेंगे? या सिर्फ हम जैसों को हमारे असल मुद्दे से ही भटकाते रहेंगे?

आपके लिए कट्टर इस्लाम के आतंकवाद की समस्या ख़त्म हो जाती होगी दो चार लेख लिख कर.. मगर मेरे लिए नहीं होगी कभी.. मुझे जड़ पता है.. और वो जड़ जब तक नहीं मिटाई जायेगी कुछ भी नहीं बदलेगा.. मुझे आप लोगों के साथ की ज़रूरत है 



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