तीखी सास - एक कपटपूर्ण रिश्ते की कहानी
एक समय की बात है, एक छोटे से शहर में एक जोड़े दम्पति प्रिया और रवि रहते थे। वे बहुत ही सुखी और समृद्ध थे। वे एक-दूसरे से बड़े ही प्रेम से रहते थे।
रवि बहुत ही सीधा-साधा व्यक्ति था, और वह मन में हमेशा यह सोचता रहता कि काश वह अपनी मां, जो दूर एक शहर में अपने पुराने बड़े मकान में रहती थी, उन्हें अपने पास ले आए, लेकिन वह इस बात को करने से पहले अपनी पत्नी प्रिया से बोलना चाहता था। एक दिन उसने अपनी मन की बात प्रिया से कही कि क्या वह अपनी मां को यहीं अपने पास बुला ले तो वह उसकी देखभाल आसानी से कर सकेगा। प्रिया बहुत अच्छे से अपनी सासु मां को जानती थी वह शादी के 1 साल उनके साथ रही थी, लेकिन उन्होंने प्रिया को थोड़ा सा भी प्यार और सम्मान नहीं दिया था। तो वह यह सोचने लगी अगर वह मना करेगी तो रवि को दुःख पहुंचेगा, इसलिए उसने रवि को बोला कि वह अपनी मां को ले आए।
बस फिर क्या था, रवि की मां शीला देवी आ गईं अपने बेटे और बहू के पास। फिर अदात से मजबूर शीला देवी ने बहुत प्रयास किया कि कुछ दिन अपनी तीखी ज़बान न चलाएं लेकिन हर बार की तरह फिसल ही जाती। कितना भी रोकने की कोशिश करती लेकिन ताने अपने आप निकल ही जाते। क्या करें बहुत ही सीधी जो ठहरी, बिल्कुल जलेबी की तरह!
अब रोज़ घर में नए-नए ताने, तीखी बातें होते रहती, और सुखी रहने के सारे रास्ते बंद हो गए! अब रोज़ उठकर जब तक कोई ये न पुकारे, "अरे सब कहाँ मर गए," तब तक दिन शुरू ही नहीं होता जैसे मुर्गे ने बांग करने की जगह बड़बड़ाना सीख लिया हो। अब रवि की सारी मनोकामना पूरी हो गई। अब वह ये सोचने लगा कि अगर एक हफ्ते में घर में तूफान आ सकता है तो आगे कुछ दिनों में बाढ़ और तेज़ हवाओं के साथ आंधी बारिश न हो जाए!!
अब तो रवि ऑफिस से आकर माँ से बचने की कोशिश करने लगा। लेकिन फिर वह सोचने लगा कि पूरा दिन उसकी पत्नी का क्या हाल होता होगा। वह कैसे उनकी तीखी बातों से बचती होगी और कुछ कह भी नहीं पाती होगी। उसे अपनी पत्नी पर बहुत दया आई और वह अब कोई तरीका ढूंढ़ने लगा कि वह अपनी माँ को वापस छोड़ के आ जाए। एक दिन वह यही सोच में बैठा था कि सब कुछ कैसे सही हो जाए...
तभी अचानक से दरवाजे की घंटी बजी और एक अनजान सा बूढ़ा आदमी खड़ा था और प्रिया से पूछ रहा था कि क्या शीला देवी जी यहीं रहती हैं? तब तक मेरी माँ अंदर से आकर उन्हें देखते ही खुशी से झूम उठी और उन्हें अंदर बुलाया।
मैं और प्रिया ये सोच में पड़ गए अंत में ये आदमी है कौन जिसे हम नहीं जानते और माँ जानती हैं। फिर माँ ने मुझे याद दिलाते हुए ये बताया कि अरे तुमने नहीं पहचाना ये तो तुम्हारे दूर के मामा हैं। बड़े सालों बाद कनाडा से आए हैं। फिर तो उनकी बातें खत्म ही नहीं हुई रात के 10 बज गए। सुबह होते ही मंदिर की घंटी की आवाज़ से मेरी आंख खुली तो देखा मेरी माँ अपने सामान पैक करने में लगी हैं और प्रिया टेबल पर नाश्ता लगा रही थी। मैंने ये सब देखकर थोड़ा घबराया कि अचानक से क्या हो गया कुछ गलत तो नहीं हो रहा। फिर मैंने इशारे से प्रिया को पूछा कि क्या हुआ? उसने मुझे एक आंख मारते हुए इशारा किया सब ठीक है। मैंने थोड़ी राहत की सांस ली। शाम तक माँ का सारा सामान तैयार था अपने भाई के साथ अपने पुराने वाले घर जाने के लिए......
फुलधमाल प्रेरणा श्रोत-
"बेशक, मां का प्यार अनमोल है, लेकिन कभी-कभी यह प्यार भी कपटपूर्ण हो सकता है। इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि समाज में परिवारिक संबंधों में विश्वास, समझदारी, और सही संवाद का महत्व होता है। यह भी दिखाया जाता है कि सच्चे प्रेम और ईमानदारी की शक्ति हमेशा विजयी होती है।"
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