निम्न वर्ग की चिंताओं और पर्यावरणीय परिणामों का समीक्षात्मक अध्ययन!
आइए "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-
भारत का निम्न और मध्यम वर्गीय समाज प्रकृति और संसाधनों का दोहन करने वाला समाज होता है.. इस समाज को मैं परजीवी या पैरासाइट कहता हूं.. ये पैदा ही हुआ है प्रकृति और पृथ्वी का दोहन करने के लिए
ये समाज खूब शोर करता है, खूब नैतिकता की बात करता है, खूब उधम मचाता है, खूब प्रदूषण फैलता है और ज़ोर ज़ोर से इसी सब को समाप्त करने के लिए चिल्लाता है
ये अमीरों को कोसता है, और स्वयं अमीर बनने में लगा होता है.. फैक्ट्री मालिकों को कोसता है और फैक्ट्री में नौकरी पाने के लिए जान दिए रहता है.. अमीरों की शादियों के बड़े बड़े खर्चे को कोसता है और स्वयं लोन लेकर बड़ी से बड़ी और भव्य शादी करने की कोशिश करता है.. अमीरों के स्विमिंग पूल के पानी को देखकर उन्हें ज्ञान देता है और स्वयं सबमर-सिब्बल लगा कर अपने घर की बाहर की सड़क रोज़ धोता है और अपनी थकी हुई सड़ी कार को रोज़ धुलता है.. इसके घर के नीचे जल का क्या स्तर है इसका इसे होश नहीं होता है.. इनके घरों के आसपास पन्नी और प्लास्टिक के ढेर होते हैं और सबसे थर्ड क्लास की प्लास्टिक ये इस्तेमाल करते हैं और किसी बड़े होटल या रिजॉर्ट को प्लास्टिक और प्रदूषण का ज्ञान दे कर कोसते हैं.. जाली और सबसे घटिया ज़हर जैसे प्रोडक्ट बनाने में ये माहिर होते हैं.. दूध और दवा से लेकर हर जगह ये ज़हर घोलते हैं और इनके हाथ में जो व्यापार आता है उस से ये प्रकृति का सर्वनाश कर देते हैं
इनके रिश्ते और रिश्तेदारी घिनौनेपन की हद तक सड़े होते हैं मगर ये इसी की दुहाई देकर एक दूसरे का खून चूसते हैं और एक दूसरे का जीवन नर्क किए रहते हैं.. इनके तीज, समारोह और त्योहार सिवाए कुंठा, जलन और दिखावे के कुछ नहीं होते हैं और ये उसे "एंटरटेनमेंट" और "प्रेम" बोलते हैं.. ये अपनी शादियों में सिर्फ़ एक दूसरे को देखकर जलते हैं, चिढ़ते हैं, हंसी उड़ाते हैं और राजनीति खेलते हैं और फिर डीजे पर चार ठुमके लगा कर कहते हैं कि इन्हें बड़ा मज़ा आया.. मज़ा क्या होता है ये सारी उम्र कभी समझ ही नहीं पाते हैं क्योंकि ये भीड़ में रहने वाले डरे हुवे कुंठित लोग होते हैं और संपन्न लोगों को अकेले घूमते और असल मज़ा करते देख अपने सड़े हुवे रिश्ते, नाते और परिवार का वास्ता देकर स्वयं को बहुत लकी और स्पेशल घोषित करते रहते हैं
ये भारत का परजीवी समाज है.. दूसरों को सुखी देखकर उनसे चिढ़ने वाला समाज.. भारत में नदियों नालों, हवा और भूमि में जितना भी प्रदूषण है इसका 99% श्रेय निम्न वर्ग और मध्यम वर्ग को जाता है.. इन्होंने सारे जंगल हर लिए अपने अनगिनत बच्चों के पेट भरने के लिए.. सारी जमीन जोत डाली अपनी बेलगाम आबादी को खिलाने के लिए.. ये दिन रात बस बच्चे पैदा करते हैं और भूखे नंगे बने रहते हैं और सम्पन्न लोगों और सरकार को कोसते हैं.. ये दस एकड़ में लगी फैक्टरी के मालिक को कोसते हैं पेड़ काटने, और पर्यावरण प्रदूषित करने के लिए और स्वयं करोड़ों बीघा जंगल काट के खेत बनाते हैं अपनी बेलगाम भूखी नस्लों का पेट भरने के लिए और दिन रात उन खेतों को सींच सींच के पृथ्वी का जलस्तर पाताल में लिए जा रहे हैं
ये सबसे कुंठित और अनैतिक समाज है और स्वयं को सबसे बड़ा नैतिकतावादी घोषित करता रहता है.. चूंकि ये बहुत बड़ी भीड़ है इसलिए इसका शोर सबसे अधिक होता है और इनका शोर सुनकर हर किसी को ये लगता है कि उसकी या सरकार या इस प्रकृति की जिम्मेदारी है इस बेलगाम आबादी वाली परजीवी भीड़ को पालने, पोसने और अधिकार देने की.. ये जन्मते ही हैं प्रकृति का दोहन करने के लिए और प्रकृति को एक रत्ती भी कुछ वापस लौटाए बिना ये मर जाते हैं
~सिद्धार्थ ताबिश
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