जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार: सरल जीवन का महत्व

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अगर आपके लिए अपनी सब्ज़ी बोने से ज्यादा ज़रूरी जगराता है.. प्रेम से ज़रूरी शादी है.. अपने हाथ से खाना बनाने से ज़रूरी बच्चे को पढ़ाना है.. जंगल से जरूरी शौपिंग मॉल है.. खेत से ज़रूरी 3-BHK  फ्लैट है ?

तब थोड़ा ठहर जाइए! क्या हम सही दिशा में हैं?

आज के विचारों के कुछ मुख्य बिंदु:

  • संतुलन और खुशियों के बीच समझौता 
  • जीवन के सच्चे मूल्यों का खोजना
  • प्राकृतिक और सरल जीवन जीना

 आइए "Siddharth Tabish" के Facebook वॉल से जाने-

Siddharth Tabish Writer

Image Credit: @SiddhartTabish FB

आप सुबह उठते हैं और क्या करते हैं? तैयार होते हैं ऑफिस भागते हैं.. या कहीं और काम से जाते हैं.. या घर में रहते हैं तो फ़ोन मिला लेते हैं किसी को “और बताओ क्या कर रहे हो.. अच्छा ज़ुकाम हो गया, ओह हो.. नमक पानी का घोल पी लो.. और सुनो ये कर लो.. उनसे मिले थे.. वहां गए थे, ये किया था.. याद है हम लोग स्कूल में कैसे थे, क्या करते थे.. मौसी आई थीं, उनके बेटे का मेडिकल में हो गया.. वगेरह वगैरह”

आप ये सब इसलिए करते रहते हैं क्यूंकि आपके यहाँ सब्ज़ी, सब्ज़ी वाला दे जाता है, या आप जा कर बाहर से खरीद लाते हैं.. कामवाली आ कर आपके सारे काम कर देती है.. खाना पीना जो कुछ भी है वो सब आपको बाहर से मिल जाता है.. और फिर आप रिश्ते, नाते, तीज त्यौहार मनाते रहते हैं सारी ज़िन्दगी और अवसाद और दुःख से भरे रहते हैं

इन रिश्ते नातों, तीज त्यौहार, सारी उम्र की दुनिया भर की बकवास को आप “जीवन” समझते हैं

और गर मैं आप से कहूँ कि जब आप अवसाद में हों, या परेशान हों, और आप छुट्टी लें और सब्ज़ी बोयें, एक छोटा सा खेत खरीद लें वहां जाएँ और थोड़ी मोड़ी खेती.. बिलकुल हलकी फुल्की करें.. कोशिश करें कि कम से कम अपने खाने की सब्जियां ही उगा सकें आप.. तो आप मेरी बात बिलकुल नहीं मानेंगे.. आप कहेंगे कि नौकरी है, ये है, वो है, इसलिए हमें दिल्ली में रहना है, हम ये सब नहीं कर सकते हैं.. मगर अगर आपका बेटा कल को किसी दूर दराज़ के इलाके में “अप्राकृतिक” पढाई करने जाएगा तो आप तुरंत उसके साथ शिफ्ट हो जायेंगें किसी न किसी तरह से.. अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए आप चाँद पर जा कर खेती कर लेंगे मगर इस दुनिया में आप ये सब कुछ नहीं करेंगे.. अपने बच्चे को पढ़ाने के लिए आप पहाड़ और नदी छोड़कर दिल्ली जैसे नरक में रह लेंगे मगर स्वयं के  लिए कहीं दूर खेत में फार्म बना कर नहीं रहेंगे

सोच कर देखिये कि क्या प्राकृतिक है.. ये मौसी, मौसा, भाई बहन, ईद, दिवाली, नवरात ये सब प्राकृतिक है या सब्ज़ी बोना, अपना खाना अपने हाथ से तैयार करना, अपने पशु और अपने मवेशी पालना, अपने हाथ से अपना घर और अपनी सारी चीज़ें तैयार करना?

मगर ये सब आप नहीं मानेंगे.. आप पॉलिटिकली करेक्ट बात करेंगे.. कहेंगे ये भी ज़रूरी है, वो भी ज़रूरी है.. बैलेंस बनाना ज़रूरी है.. रिश्ते भी निभाने ज़रूरी है.. जगराता भी करना ज़रूरी है.. ध्यान भी ज़रूरी है मौसी के साथ सारी उम्र रिश्ता रखना भी ज़रूरी है

तो आप जब बेहतर समझते हैं कि तनी रस्सी पर बैलेंस बना कर कैसे जीवन जिया जाता है तब परेशान क्यूँ होते हैं? अवसाद में क्यूँ जाते हैं? आश्रमों में क्यूँ भागते हैं? सद्गुरु के चक्कर क्यूँ लगाते हैं? बैलेंस तो आपको आता ही है बनाना, प्यार में, रिश्तों में, बच्चे की शिक्षा में, यहाँ वहां.. फिर काहे अवसाद है जीवन में?

आपके लिए अपनी सब्ज़ी बोने से ज्यादा ज़रूरी जगराता है.. प्रेम से ज़रूरी शादी है.. अपने हाथ से खाना बनाने से ज़रूरी बच्चे को पढ़ाना है.. जंगल से जरूरी शौपिंग मॉल है.. खेत से ज़रूरी 3-BHK  फ्लैट है.. कितना भी आप झूठ बोलें.. यही सच है.. और यही आपका अवसाद है

~सिद्धार्थ ताबिश

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