जानिये औरत के त्याग और उसकी महत्ता को
बुद्ध अपने दूध पीते बच्चे को छोड़कर सत्य की यात्रा पर आसानी से निकल लिए थे.. अगर सत्य को जानने की बुद्ध जितनी जिज्ञासा यशोधरा के भीतर भी होती तो भी वो कभी बुद्ध ना बन पाती क्यूंकि मां के लिए सत्य खोजने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी होता है अपना दूध पीता बच्चा.. माँ अपने नवजात के लिए अपने भीतर की सारी जिज्ञासा को दांव पर लगा सकती है.. यशोधरा चाह कर भी बुद्ध नहीं बन सकती थी क्योंकि उसकी गोद मे उसका नौनिहाल था.. यशोधरा के लिए अपने बालक को ही संजोना सत्य था
मां किसी भी रूप किसी भी वेश भूषा में हो..वो बस माँ होती है
~ताबिश