सावन के कुछ भीगे भीगे दिन रखे हैं
और
मेरे इक खत मैं लिपटी रात पड़ी है
वो रात बुझा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो
पतझड़ है कुछ ... है ना ?
वो पतझड़ में कुछ पत्तों के गिरने की आहट
कानों मैं एक बार पहन के लौट आई थी
पतझड़ की वो शाख अभी तक काँप रही है
वो शाख गिरा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो
एक अकेली छतरी मैं जब आधे आधे भीग रहे थे
आधे सूखे आधे गीले,
सूखा तो मैं ले आए थी
गीला मन शायद बिस्तर के पास पड़ा हो
वो भिजवा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो
एक सौ सोला चाँद की रातें
एक तुम्हारे काँधे का तिल
गीली महेंडी की खुश्बू,
झूट मूठ के शिकवे कुछ
झूठ मूठ के वादे
सब याद करा दो
सब भिजवा दो,
मेरा वो सामान लौटा दो
एक इजाज़त दे दो बस,
जब इसको दफ़ना.उंगी
मैं भी वहीं सो जाउंगी
मैं भी वहीं सो जाउंगी