ये ज़ुर्म अगर है तो बता सोच समझकर
कब की मुहब्बत ने ख़ता सोच समझकर
कब दी ज़माने ने सज़ा सोच समझकर
वो ख़्वाब जो ख़ुशबू की तरह हाथ न आए
उन ख़्वाबों को आंखो में बसा सोच समझकर
कल उम्र का हर लम्हा कही सांप न बन जाए
मांगा करो जीने की दुआ सोच समझकर
आवारा बना देंगे ये आवारा ख़यालात
इन ख़ाना बदोशों को बसा सोच समझकर
ये आग जमाने में तेरे घर से न फैले
दीवाने को महफ़िल से उठा सोच समझकर
भर दी जमाने ने बहुत तलख़ियां इसमें
'साग़र' की तरफ़ हाथ बढा सोच समझकर
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ख़ुद अपने ज़र्फ का अन्दाज़ा कर लिया जाए
तुम्हारे नाम से इक जाम भर लिया जाए
ये सोचता हूं कि कुछ काम कर लिया जाए
मिले जो आईना तुझ-सा संवर लिया जाए
तुम्हारी याद जहां आते-आते थक जाए
तुम्ही बताओ कहा ऐसा घर लिया जाए
तुम्हारी राह के काटे हो, गुल हो या पत्थर
ये मेरा काम है दामन को भर लिया जाए
हमारा दर्द न बाटो मगर गुज़ारिश है
हमारे दर्द को महसूस कर लिया जाए
ये बात अपनी तबीयत की बात होती है
किसी के बात का कितना असर लिया जाए
शऊरे-वक़्त अगर नापना हो ए `साग़र'
ख़ुद अपने आप को पैमाना कर लिया जाए
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बात बनती नहीं ऐसे हालात में
मैं भी जज़्बातमें, तुम भी जज़्बात में
कैसे सहता है मिलके बिछडने का ग़म
उससे पूछेंगे अब के मुलाक़ात में
मुफ़लिसी और वादा किसी यार का
खोटा सिक्का मिले जैसे ख़ैरात में
जब भी होती है बारिश कही ख़ून की
भीगता हूं सदा मैं ही बरसात में
मुझको किस्मत ने इसके सिवा क्या दिया
कुछ लकीरें बढा दी मेरे हाथ में
ज़िक्र दुनिया का था, आपको क्या हुआ
आप गुम हो गए किन ख़यालात में
दिल में उठते हुए वसवसों के सिवा
कौन आता है `साग़र' सियह रात में