Best of Shakeel Badayuni Ghazals… (in Hindi)

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ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया

जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया

यूँ तो हर शाम उम्मीदों में गुज़र जाती थी

आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

कभी तक़्दीर का मातम कभी दुनिया का गिला

मंज़िल-ए-इश्क़ में हर गाम पे रोना आया

जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'

मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया

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कैसे कह दूँ कि मुलाकात नहीं होती है

रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है

आप लिल्लाह न देखा करें आईना कभी

दिल का आ जाना बड़ी बात नहीं होती है

छुप के रोता हूँ तेरी याद में दुनिया भर से

कब मेरी आँख से बरसात नहीं होती है

हाल-ए-दिल पूछने वाले तेरी दुनिया में कभी

दिन तो होता है मगर रात नहीं होती है

जब भी मिलते हैं तो कहते हैं कैसे हो "शकील"

इस से आगे तो कोई बात नहीं होती है

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ग़मे-आशिक़ी से कह दो रहे–आम तक न पहुँचे

मुझे ख़ौफ़ है ये तोहमत मेरे नाम तक न पहुँचे

मैं नज़र से पी रहा था कि ये दिल ने बददुआ दी

तेरा हाथ ज़िंदगी-भर कभी जाम तक न पहुँचे

नयी सुबह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है,

ये सहर भी रफ़्ता-रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे

ये अदा-ए-बेनियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारिक,

मगर ऐसी बेरुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे

जो निक़ाबे-रुख उठी दी तो ये क़ैद भी लगा दी,

उठे हर निगाह लेकिन कोई बाम तक न पहुँचे

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तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री

मुख़ालिफ़ इक जहाँ था जाने बेचारों पे क्या गुज़री

सहर को रुख़्सत-ए-बीमार-ए-फ़ुर्क़त देखने वालो

किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री

सुना है ज़िन्दगी वीरानियों ने लूट् ली मिलकर्

न जाने ज़िन्दगी के नाज़बरदारों पे क्या गुज़री

हँसी आई तो है बेकैफ़ सी लेकिन ख़ुदा जाने

मुझे मसरूर पाकर मेरे ग़मख़्वारों पे क्या गुज़री

असीर-ए-ग़म तो जाँ देकर रिहाई पा गया लेकिन

किसी को क्या ख़बर ज़िन्दाँ की दिवारों पे क्या गुज़री

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बना बना के तमन्ना मिटाई जाती है

तरह तरह से वफ़ा आज़माई जाती है

जब उन को मेरी मुहब्बत का ऐतबार नहीं

तो झुका झुका के नज़र क्यों मिलाई जाती है

हमारे दिल का पता वो हमें नहीं देते

हमारी चीज़ हमीं से छुपाई जाती है

'शकील' दूरी-ए-मंज़िल से ना-उम्मीद न हो

मंजिल अब आ ही जाती है अब आ ही जाती है

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मेरी ज़िन्दगी पे न मुस्करा मुझे ज़िन्दगी का अलम नहीं

जिसे तेरे ग़म से हो वास्ता वो ख़िज़ाँ बहार से कम नहीं

मेरा कुफ़्र हासिल-ए-ज़ूद है मेरा ज़ूद हासिल-ए-कुफ़्र है

मेरी बन्दगी वो है बन्दगी जो रहीन-ए-दैर-ओ-हरम नहीं

मुझे रास आये ख़ुदा करे यही इश्तिबाह की साअतें

उन्हें ऐतबार-ए-वफ़ा तो है मुझे ऐतबार-ए-सितम नहीं

वही कारवाँ वही रास्ते वही ज़िन्दगी वही मरहले

मगर अपने-अपने मुक़ाम पर कभी तुम नहीं कभी हम नहीं

न वो शान-ए-जब्र-ए-शबाब है न वो रंग-ए-क़हर-ए-इताब है

दिल-ए-बेक़रार पे इन दिनों है सितम यही कि सितम नहीं

न फ़ना मेरी न बक़ा मेरी मुझे ऐ 'शकील' न ढूँढीये

मैं किसी का हुस्न-ए-ख़्याल हूँ मेरा कुछ वुजूद-ओ-अदम नहीं

All are by Shakeel Badayuni




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  Posted on Friday, July 3rd, 2009 at 6:35 PM under   Sher-o-shayari | RSS 2.0 Feed
Comments
khushboo (delhi) [ Reply ] 2013-02-28 16:35:51
jisko chaha wahi chhod deta, khushi toh nahi dard mera bada deta hai kehte hai umar bhar sath denge par wahi shaks raste main chhod deta
arun () [ Reply ] 2009-11-08 12:29:09
Relly these are great.......tou ching


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