Best of Nida Fazli…. (Poetry in Hindi) (Part – 1)

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अपना ग़म लेके कहीं और न जाया जाये

घर में बिखरी हुई चीज़ों को सजाया जाये

जिन चिराग़ों को हवाओं का कोई ख़ौफ़ नहीं

उन चिराग़ों को हवाओं से बचाया जाये

बाग में जाने के आदाब हुआ करते हैं

किसी तितली को न फूलों से उड़ाया जाये

ख़ुदकुशी करने की हिम्मत नहीं होती सब में

और कुछ दिन यूँ ही औरों को सताया जाये

घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें

किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाये

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अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं

रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है

अपने ही घर में किसी दूसरे घर के हम हैं

वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों तक

किसको मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं

चलते रहते हैं कि चलना है मुसाफ़िर का नसीब

सोचते रहते हैं कि किस राहगुज़र के हम हैं

गिनतियों में ही गिने जाते हैं हर दौर में हम

हर क़लमकार की बेनाम ख़बर के हम हैं

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अब खुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला

हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला

हर बेचेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा

जिस तरफ़ देखिए आने को है आने वाला

उसको रुखसत तो किया था मुझे मालूम न था

सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला

दूर के चांद को ढूंढ़ो न किसी आँचल में

ये उजाला नहीं आंगन में समाने वाला

इक मुसाफ़िर के सफ़र जैसी है सबकी दुनिया

कोई जल्दी में कोई देर में जाने वाला

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कच्चे बखिए की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

हर नए मोड़ पर कुछ लोग बिछड़ जाते हैं

यूँ, हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों

रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत

धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में

बेख़्याली में कई शहर उजड़ जाते हैं

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कभी कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है

जिन बातों को ख़ुद नहीं समझे औरों को समझाया है

हमसे पूछो इज़्ज़त वालों की इज़्ज़त का हाल कभी

हमने भी इस शहर में रह कर थोड़ा नाम कमाया है

उससे बिछड़े बरसों बीते लेकिन आज न जाने क्यों

आँगन में हँसते बच्चों को बे-कारण धमकाया है

कोई मिला तो हाथ मिलाया कहीं गए तो बातें की

घर से बाहर जब भी निकले दिन भर बोझ उठाया है


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Comments
bishu baba (allahabad) [ Reply ] 2013-03-17 03:17:49
very nice
deepak jain (morena) [ Reply ] 2013-02-26 23:13:47
kal mili fursat to teri zulf ko suljha dunga aaj uljha hun apni uljhi hui taqdir ko suljha ne mai
hemendra (jaipur) [ Reply ] 2013-02-20 15:25:22
itni khoobsoorat shayari padh k yakeen aa gaya maa Saraswati ne aashirwad dena kam kiya h band nahi
vivekdahayat (jabalpur) [ Reply ] 2013-01-30 17:49:54
nice
sabir khan (agra) [ Reply ] 2012-11-08 06:23:23
very nice poetry
Rizwan (Indore) [ Reply ] 2012-10-22 11:52:56
Dard Hota Hai Magar Shikwa Nahi Karte Kon Kehta Hai Ki Hum Wafa Nahi Karte Aakhir Kyu Nahi Badlti Taqdeer ‘Ashiqeâ €™ Ki Kya Mujhko Chahne Wale Mere Liye Dua Nahi Karte


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