हयात मौत से टकरा गई तो क्या होगा
नई सहर के बहुत लोग मुंतज़िर हैं मगर
नई सहर भी कजला गई तो क्या होगा
न रहनुमाओं की मजलिस में ले चलो मुझको
मैं बे-अदब हूँ हँसी आ गई तो क्या होगा
ग़म-ए-हयात से बेशक़ है ख़ुदकुशी आसाँ
मगर जो मौत भी शर्मा गई तो क्या होगा
शबाब-ए-लाला-ओ-गुल को पुकारनेवालों
ख़िज़ाँ-सिरिश्त बहार आ गई तो क्या होगा
ये फ़िक्र कर कि इस आसूदगी के धोके में
तेरी ख़ुदी को भी मौत आ गई तो क्या होगा
ख़ुशी छीनी है तो ग़म का भी ऐतमाद न कर
जो रूह ग़म से भी उकता गई तो क्या होगा
(Nazar fareb-e-kaza kha gai to kya hoga
hayat maut se takra gai to kya hoga
nai sahar ke bahut log muntzir hain magar
nai sahar bhi kajla gai to kya hoga
na rahnumaoon ki majalis main le chalo mujhko
mai be-adab hoon hansi a gai to kya hoga
ghum-e-hayat se beshaq hai khudkushi asan
magar jo maut bhi sharma gai to kya hoga
shabab-e-lala-o-gul ko pukarnewaloo
khiza-sirisht bahar a gai to kya hoga
ye fikr kar ki is asodagi ke dhoke main
teri Khudi ko bhi maut a gai to kya hoga
hoshi chini hai to Ghum ka bhi aitmad na kar
jo rooh Ghum se bhi ukta gai to kya hoga)
सिर्फ़ अश्क-ओ-तबस्सुम में उलझे रहे
हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ़
रात ढलते जब उनका ख़याल आ गया
टिक-टिकी बँध गई चाँदनी की तरफ़
कौन सा जुर्म है,क्या सितम हो गया
आँख अगर उठ गई, आप ही की तरफ़
जाने वो मुल्तफ़ित हों किधर बज़्म में
आँसूओं की तरफ़ या हँसी की तरफ़
(sirf ashq-o-tabassum main uljhe rahe
humne dekha nahi zindgi ki taraf
rat Dhalte jab unka Khayal aa gaya
tik-tiki bandh gai chandni ki taraf
kon sa jurm hai kya sitam ho gaya
ankh agar uth gai, aap hi ki taraf
jane wo multafit ho kidhar bazm main
aansoon ki tarf ya hansi ki taraf.)
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यूँ न मिल मुझ से ख़फ़ा हो जैसे
साथ चल मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूँ देख कर हँस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क़ को शिर्क की हद तक न बड़ा
यूँ न मिल हमसे ख़ुदा हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझपे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे
ज़िन्दगी बीत रही है "दानिश"
एक बेजुर्म सज़ा हो जैसे
(Yun na mil mujh se khafa ho jaise
sath chal mauj-e-saba ho jaise
log yun dekh kar hans dete hain
tu mujhe bhool gaya ho jaise
ishq ko shirk ki had tak na bara
yun na mil humse khuda ho jaise
maut bhi aai to is naz ke sath
mujhpe ehsan kiya ho jaise
aise anjan bane baithe ho
tum ko kuch bhi na pata ho jaise
hichkiyan rat ko ati hi rahi
tu ne phir yad kiya ho jaise
zindgii bit rahi hai "danish"
ek bejurm saza ho jaise.)
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कभी मुझ को साथ लेकर, कभी मेरे साथ चल के
वो बदल गये अचानक, मेरी ज़िन्दगी बदल के
हुए जिस पे मेहरबाँ, तुम कोई ख़ुशनसीब होगा
मेरी हसरतें तो निकलीं, मेरे आँसूओं में ढल के
तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के, क़ुर्बाँ दिल-ए-ज़ार ढूँढता है
वही चम्पई उजाले, वही सुरमई धुंधलके
कोई फूल बन गया है, कोई चाँद कोई तारा
जो चिराग़ बुझ गये हैं, तेरी अंजुमन में जल के
मेरे दोस्तो ख़ुदारा, मेरे साथ तुम भी ढूँढो
वो यहीं कहीं छुपे हैं, मेरे ग़म का रुख़ बदल के
तेरी बेझिझक हँसी से, न किसी का दिल हो मैला
ये नगर है आईनों का, यहाँ साँस ले सम्भल के
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न सियो होंट, न ख़्वाबों में सदा दो हम को
मस्लेहत का ये तकाज़ा है, भुला दो हम को
हम हक़ीक़त हैं, तो तसलीम न करने का सबब
हां अगर हर्फ़-ए-ग़लत हैं, तो मिटा दो हम को
शोरिश-ए-इश्क़ में है, हुस्न बराबर का शरीक
सोच कर ज़ुर्म-ए-मोहब्बत की, सज़ा दो हम को
मक़सद-जीस्त ग़म-ए-इश्क़ है, सहरा हो कि शहर
बैठ जाएंगे जहां चाहे, बिठा दो हम को
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पुरसिश-ए-ग़म का शुक्रिया, क्या तुझे आगही नहीं
तेरे बग़ैर ज़िन्दगी दर्द है, ज़िन्दगी नहीं
दौर था एक गुज़र गया, नशा था एक उतर गया
अब वो मुक़ाम है, जहाँ शिकवा-ए-बेरुख़ी नहीं
तेरे सिवा करूँ पसंद क्या तेरी क़ायनात में
दोनों जहाँ की नेअमतें, क़ीमत-ए-बंदगी नहीं
लाख ज़माना ज़ुल्म ढाए, वक़्त न वो ख़ुदा दिखाए
जब मुझे हो यक़ीं कि तू हासिल-ए-ज़िन्दगी नहीं
दिल की शगुफ़्तगी के साथ राहत-ए-मयकदा गई
फ़ुर्सत-ए-मयकशी तो है, हसरत-ए-मयकशी गई
ज़ख़्म पे ज़ख़्म खाके जी, अपने लहू के घूँट पी
आह न कर, लबों को सी, इश्क़ है दिल्लगी नहीं
देख के ख़ुश्क-ओ-ज़र्द फूल, दिल है कुछ इस तरह मलूल
जैसे तेरी ख़िज़ाँ के बाद, दौर-ए-बहार ही नहीं
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Thanks Safia for this wonderful post
From: Admin
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