है दुनिया जिस का नाम मियाँ.. By Nazeer Akbarabadi

  Sher-o-shayari You are here
Views: 2139
Great poetry by Nazeer Akbarabadi!!!!!!!!!

है दुनिया जिस का नाम मियाँ ये और तरह की बस्ती है

जो महँगों को तो महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है

याँ हरदम झगड़े उठते हैं, हर आन अदालत कस्ती है

गर मस्त करे तो मस्ती है और पस्त करे तो पस्ती है

कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल पर्स्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बदस्ती है

जो और किसी का मान रखे, तो उसको भी अरमान मिले

जो पान खिलावे पान मिले, जो रोटी दे तो नान मिले

नुक़सान करे नुक़सान मिले, एहसान करे एहसान मिले

जो जैसा जिस के साथ करे, फिर वैसा उसको आन मिले

कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल परस्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बदस्ती है

जो और किसी की जाँ बख़्शे तो तो उसको भी हक़ जान रखे

जो और किसी की आन रखे तो, उसकी भी हक़ आन रखे

जो याँ कारहने वाला है, ये दिल में अपने जान रखे

ये चरत-फिरत का नक़शा है, इस नक़शे को पहचान रखे

कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल परस्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बद्स्ती है

जो पार उतारे औरों को, उसकी भी पार उतरनी है

जो ग़र्क़ करे फिर उसको भी, डुबकूं-डुबकूं करनी है

शम्शीर तीर बन्दूक़ सिना और नश्तर तीर नहरनी है

याँ जैसी जैसी करनी है, फिर वैसी वैसी भरनी है

कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल परस्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बद्स्ती है

जो ऊँचा ऊपर बोल करे तो उसका बोल भी बाला है

और दे पटके तो उसको भी, कोई और पटकने वाला है

बेज़ुल्म ख़ता जिस ज़ालिम ने मज़लूम ज़िबह करडाला है

उस ज़ालिम के भी लूहू का फिर बहता नद्दी नाला है

कुछ देर नही अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल परस्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बद्स्ती है

जो और किसी को नाहक़ में कोई झूटी बात लगाता है

और कोई ग़रीब और बेचारा नाहक़ में लुट जाता है

वो आप भी लूटा जाता है औए लाठी-पाठी खाता है

जो जैसा जैसा करता है, वो वौसा वैसा पाता है

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल परस्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बदस्ती है

है खटका उसके हाथ लगा, जो और किसी को दे खटका

और ग़ैब से झटका खाता है, जो और किसी को दे झटका

चीरे के बीच में चीरा है, और टपके बीच जो है टपका

क्या कहिए और 'नज़ीर' आगे, है रोज़ तमाशा झटपट का

कुछ देर नहीं अंधेर नहीं, इंसाफ़ और अद्ल परस्ती है

इस हाथ करो उस हाथ मिले, याँ सौदा दस्त-बदस्ती है


Latest Posts

Start Discussion!
(Will not be published)
(First time user can put any password, and use same password onwards)
(If you have any question related to this post/category then you can start a new topic and people can participate by answering your question in a separate thread)
(55 Chars. Maximum)

(No HTML / URL Allowed)
Characters left

(If you cannot see the verification code, then refresh here)