इस्लाम का इतिहास - भाग 7
मक्का से दो मील पहले अब्राहा अपना पड़ाव डालता है और उसके कुछ सैनिक घोड़ों से आसपास का जायज़ा लेने निकलते हैं.. लौटते समय उन सैनिकों के हाथ जो कुछ भी लगता है वो वो उसे साथ ले आते हैं जिनमे अब्दुल मुत्तलिब के दो सौ ऊंट भी होते हैं
अब्राहा का एक दूत क़ुरैश लोगों के पास जाता है और कहता है कि "अब्राहा का मकसद सिर्फ काबा को नेस्तोनाबूद करना है.. और कोई भी खून ख़राबा नहीं होगा अगर क़ुरैश का मुखिया अब्राहा से जा कर उनके तम्बू में मुलाक़ात कर ले तो"
उस समय तक क़ुरैश का कोई मुखिया नहीं था.. इसलिए क़ुरैश के लोग आपस में सलाह करके अब्दुल मुत्तलिब को मुखिया के तौर पर एक अन्य आदमी के साथ भेजते हैं.. अब्दुल मुत्तलिब का व्यक्तित्व इतना रोबीला और शानदार था कि अब्राहा उनका स्वागत करने के बाद अपने सिंघासन से उतर कर उनके साथ क़ालीन पर नीचे आ बैठता है
वो एक दुभाषिये के द्वारा उनसे बात करता है और पूछता है "बोलिये आप क्या कहना चाहते हैं हमारे इरादे के बारे में?"
अब्दुल मुत्तलिब उस से कहते हैं कि "आपके आदमी हमारे दो सौ ऊंट उठा लाये हैं.. वो हमे वापस चाहिए"
अब्राहा बहुत आश्चर्यचकित होता है और कहता है "आपको अपने ऊंट की पड़ी है और मैं आपने काबा को मिटाने की बात कर रहा हूँ.. क्या आपको काबा से ज़्यादा अपने ऊंटों से लगाव है?"
जिसके जवाब में अब्दुल मुत्तलिब कहते हैं "अपने ऊंटों का मालिक मैं हूँ और काबा का मालिक अल्लाह.. मैं अपने ऊंटों की हिफाज़त करूँगा और अल्लाह अपने घर की.. आपको जो करना है कीजिये.. बस मुझे मेरे ऊंट दे दीजिये"
अब्राहा इस बात से बहुत प्रभावित होता है और अब्दुल मुत्तलिब को उनके ऊंट वापस कर देता है और दूसरे दिन काबा पर चढ़ाई का एलान कर देता है
अब्दुल मुत्तलिब अपने ऊंटों को लेकर अपने लोगों के पास आते हैं और कहते हैं कि हम सब लोग पहाड़ी पर चल के रहेंगे और वहीँ दूर से देखेंगे कि अब्राहा काबा का क्या करता है.. इसके बाद अब्दुल मुत्तलिब अपने परिवार और कुछ लोगों के साथ काबा में जाते हैं "हबल" देवता के पास और फिर बाहर निकालकर काबा के दरवाज़े पर लगे गोल छल्ले को पकड़कर कहते हैं "या अल्लाह अब तेरा घर तेरे हवाले है.. हम तो खुद तेरे नौकर है.. अब तू अपने घर की हिफाज़त करना"
और ये प्रार्थना कर के वो अपने परिवार के साथ पहाड़ी पर चले जाते हैं जहाँ क़ुरैश कबीले के अन्य लोग भी पहले से अब्राहा का तमाशा देखने के लिए मौजूद होते हैं
क्रमशः...
~ताबिश