इस्लाम का इतिहास - भाग 6
अरब के आस पास के शासकों और कबीलों के लिए काबा सिरदर्द और ईर्ष्या की एक बड़ी वजह बन चुका था.. वजह सिर्फ और सिर्फ एक थी और वो उसकी लोकप्रियता और सम्मान.. जो सम्मान काबा को प्राप्त था वो अन्य किसी इबादत घर को नहीं
अब्राहा, जो की यमन का उप-शासक था उसने सना शहर में एक अभूतपूर्व चर्च का निर्माण करवाया.. शीबा की महारानी के यहाँ से सफेद पत्थर आये और बहुत अन्य जगहों से हीरे जवाहरात.. चर्च में सोने और चांदी से बना हुवा बहुत विशाल "क्रॉस" बनाया गया.. इस चर्च को बनवाने के पीछे अब्राहा का सिर्फ एक ही मकसद था और वो था काबा जाने वाले सारे तीर्थयात्रियों को यमन की तरफ मोड़ना.. और उसने इस बात का एलान भी खुल्लम खुल्ला किया कि वो आने वाले समय में काबा को ख़त्म कर देगा
क़ुरैश कबीले के वंशजों के पास जब ये खबर पहुंची तो उनमे से कई वंश ले लोग भड़क उठे और फिर "बनु किनानह" वंश, जो की क़ुरैश कबीले की ही एक शाखा थी, का एक व्यक्ति "सना" जा कर चर्च को अपवित्र करके मक्का वापस आ जाता है
जब "अब्राहा" इसे सुनता है तो काबा को मिटाने की सौगंध खा लेता है.. जब वो "सना" से निकलता है तो अरब के कुछ कबीले उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं मगर वो उन्हें हरा के उनके एक सेनापति "नुफैल" को बंदी बना लेता है और नुफैल अपनी जान के बदले में उसका मार्गदर्शक बनने को तैयार हो जाता है
जब काफिला ताइफ़ पहुँचता है तो ताइफ़ के लोग जो "अल-लत" देवी के उपासक होते हैं अब्राहा के पास जाते हैं क्योंकि उन्हें डर होता है की अब्राहा काबा समझ के कहीं उनकी देवी का मंदिर न गिरा दे.. इसलिए वो उसे बताते हैं कि ये हमारी देवी का मंदिर है और जिस काबा को तुम्हे गिराना है वो आगे है.. अल-लत के उपासकों के लिए काबा वैसे ही उनकी आँख की किरकिरी होता था... इसलिए ताइफ़ के लोग अपना एक आदमी अब्राहा को मार्गदर्शक के तौर पर देते हैं मगर अब्राहा के पास पहले से "नुफैल" होता है मगर फिर भी वो ताइफ़ के लोगों द्वारा दिए गए मार्गदर्शक को भी साथ ले लेता है
मक्का पहुँचने से दो मील पहले ही अल-मुग़म्मिस में ताइफ़ लोगों द्वारा दिया गया मार्गदर्शक मर जाता है और अब्राहा के आदमी उसे वहीँ दफ़्न कर देते हैं.. अरब के लोग जो वहां रहते हैं उस घटना के बाद से आज तक उस की कब्र पर पत्थर मारते हैं
क्रमशः .....
~ताबिश