इस्लाम का इतिहास - भाग 5
इस्लामिक इतिहास पढ़ने में पाठको को जो सबसे बड़ी समस्याएं आती हैं वो हैं लोगों के नाम, उनके आपस के सम्बन्ध और उनके क़बीले और वंश का नाम
एक ही नाम के कई कई आदमी होते थे और इस वजह से बहुत अधिक भ्रम पैदा होता है..दादा का भी वही नाम और पोते का भी और इसके बाद भी और लोगों का भी
जैसे.. मुत्तलिब अपने भाई हाशिम की मौत के बाद अपने भतीजे, जिसका नाम शयदह को मक्का ले कर आते हैं.. मक्का में पहुँचने पर लोग "शयदह" को मज़ाक में पुकारते हैं "अब्द उल मुत्तलिब" मतलब "मुत्तलिब का सेवक".. और यहीं से शयदह का नाम "अब्दुल मुत्तलिब" पड़ जाता है.. तो अगर अब्दुल मुत्तलिब को लेखक कहीं मुत्तलिब लिख देता है तो ये समझ नहीं आता कि बात चचा की हो रही है या भतीजे की.. और ज़्यादातर इतिहासकार शार्ट फॉर्म में लिखते हैं इसलिए लोग बहुत कंफ्यूज हो जाते हैं
जो दूसरी सबसे बड़ी समस्या इस्लामिक इतिहास के साथ आती है वो है संबंधों की.. जैसा कि लोग जानते हैं कि इस्लाम में एक ही घराने और वंश में शादी की इजाज़त है इसलिए मक्का के इस्लामिक इतिहास का लगभग हर एक व्यक्ति किसी न किसी का रिश्ते में कुछ न कुछ लगता ही है
जैसे.. इसे ऐसे समझें.. कुरैश एक मुख्य क़बीला था अरब का.. जिसके अन्तर्गत कई और वंश भी आते हैं.. क़ुरैश कबीले की पांचवी पीढ़ी में दो भाई हुवे.. कुसय्य और ज़ुहरह..
फिर कुसय्य का बेटा हुवा मनफ, मनफ का हाशिम, हाशिम का अब्दुल मुत्तलिब, अब्दुल मत्तालिब का अब्दुल्लाह और अब्दुल्लाह से "मुहम्मद".. हाशिम के बाद से इस वंश को नया नाम मिला था "बनु हाशिम".. इसलिए मुहम्मद का क़बीला तो क़ुरैश था मगर वंश "बनू हाशिम"
ज़ुहरह के बाद का वंश "बनू ज़ुहरह" के नाम से जाना जाता है.. ज़ुहरह का पोता हुवा "वहब" और वहब की बेटी हुई "आमिना"
तो "बनु ज़ुहरह" वंश की आमिना की शादी "बनु हाशिम" वंश के अब्दुल्लाह से हुई.. मगर दोनों एक ही कबीले "क़ुरैश" से आते हैं.. दो भाईयों की ही संतानों के वंश में थे ये दोनों.. और इन दोनों का बेटा मुहम्मद (saw)
मैं सिर्फ मुख्य लोगों का नाम लिखता हूँ जो उस घटना से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं.. इसलिए कुछ भाई आके मुझे ये समझाने में फँस जाते हैं कि इनका बेटा वो था उनका वो और ये ऐसे हुवा वो वैसे.. मगर पाठकों की आसानी के लिए मैं इतनी डिटेल नहीं देता हूँ तो इसका मतलब ये नहीं कि मैं कुछ छिपा रहा हूँ या इतिहास में बदलाव कर रहा हूँ
इसलिए मैंने इतिहास सिर्फ पैग़म्बर के दादा से ही शुरू किया.. अगर मुझे इस्लाम की तारीफ लिखनी होती तो मैं इब्राहीम से शुरू करके इस्लाम को वहां से जोड़ता.. मगर मैं सिर्फ इतिहास लिख रहा हूँ.. जहाँ जो भी जैसा था वो और जो भी घटना जैसे हुई वो
आप भी इसे इतिहास की तरह पढ़ें.. धार्मिक पुस्तक की तरह नहीं
क्रमशः .......
~ताबिश