इस्लाम का इतिहास - भाग 23
मुहम्मद अब लगभग चालीस के हो चुके थे.. चालीस वर्षों के पहले के उनके जीवन के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है.. जो थोड़ा बहुत कुछ इतिहासकारों ने लिखा था वो बाद के लोगों ने मिटा दिया या पूरी तरह ख़त्म करने की कोशिश की.. इसलिए ज़्यादातर इतिहास चालीस वर्ष के बाद का ही उपलब्ध है
अरब के कबीलों में एक परम्परा थी एकांतवास की.. और हर वंश में दो चार लोग ऐसे निकल ही आते थे जो साल के कुछ महीनो में गुफाओं में एकांतवास और ध्यान के लिए जाते थे.. चालीस के होते होते मुहम्मद का ध्यान अपने समाज, उसकी बुराईयाँ, अनैतिकता और सामाजिक भेदभाव के प्रति जागा.. मुहम्मद सामाजिक भेदभाव, औरतों और गुलामों के प्रति उनके और दुसरे क़बीले के लोगों के रवैय्ये को लेकर काफी परेशान रहने लगे थे और धीरे धीरे वो ज़्यादा से ज़्यादा समय अपना एकांतवास में बिताने लगे थे
एकांतवास के लिए मुहम्मद मक्का में ही पहाड़ियों पर स्थित "हिरा" नाम की एक गुफा में जाते थे.. वो अपने साथ खाने पीने का सामान ले जाते थे और जब सामान ख़त्म हो जाता तो वापास आकर और अधिक सामान ले जाते थे.. चालीस बरस का होने पर उनका ये एकांतवास बहुत अधिक हो गया था क्यूंकि और उनको अलौलिक सपने आने लगे थे.. मुहम्मद ने अपने इन सपनो के बारे में बताया है कि ये ऐसे होते थे जैसे रात के बाद सुबह होती है.. शुरुवात के सपने उनको "रौशनी" और आवाज़ों वाले होते थे.. इन दिव्य स्वप्नों ने मुहम्मद का मन समाज से दूर करना शुरू कर दिया था और वो अब ज़्यादा से ज़्यादा समय हिरा गुफा में ही बिताते थे
रमज़ान का महीना अरब के लोगों के लिए एकांतवास और इबादत का खास महीना होता था.. रमज़ान के महीने के ही दौरान जब मुहम्मद एक दिन गुफ़ा में थे तो उन्हें एक दिव्य स्वप्न आया.. किसी इतिहासकार ने इसे स्वप्न बताया है और किसी ने जागते हुवे बताया है.. मुहम्मद बताते हैं कि जब उनकी आँख लगी तो उन्होंने एक आदमी को अपने पास देखा.. ये एक फरिश्ता था जो इंसान की शक्ल में मुहमद के पास आया था.. इसका नाम जिब्राईल था
जिब्राईल ने आते ही मुहम्मद से कहा "पढ़ो".. मुहम्मद ने कहा "मुझे पढ़ना नहीं आता है".. जवाब में जिब्राईल ने मुहम्मद के सीने को ज़ोर से दबाया.. ये दबाव इतना ज़ोर का था कि मुहम्मद को लगा की शायद अब उनका अंत समय नज़दीक है.. दबाने के बाद जिब्राईल ने फिर कहा "पढ़ो".. मुहम्मद ने फिर वही जवाब दिया कि मुझे पढ़ना नहीं आता है.. जिब्राईल ने ऐसे ही तीन बार उनकी छाती को बहुत ज़ोर से दबाया.. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि सीना दबाया और कुछ कहते हैं कि फ़रिश्ते ने मुहम्मद को बाँहों में ले कर भींचा
और फिर तीसरी बार छोड़ते हुवे कहा
"पढ़ो, अपने रब के नाम से जिसने तुम्हे पैदा किया है,
जिसने इंसान को खून के लोथड़े/बूँद से बनाया,
पढ़ो, और तुम्हारा रब बहुत दयावान है,
जिसने क़लम द्वारा लिखना सिखाया,
इंसानो को वो सिखाया तो वो जानते नहीं थे"
इतना कह कर फरिश्ता चला गया.. मुहम्मद कहते हैं कि ये शब्द जैसे उनके ह्रदय पर छप गए.. मगर इस सारे वाक़ये को लेकर मुहम्मद बहुत अधिक विचलित हो गए.. ये उनके लिए एकदम नया अनुभव था और वो समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें.. उन्हें लगा कि शायद किसी जिन्न ने उन्हें अपने कब्ज़े में ले लिया है.. उनके क़बीले में ऐसे लोग थे जो जिन्न और भूत प्रेतों के वश में रहकर ऐसी आलौकिक बातें बोलते थे.. मुहम्मद को वो लोग कभी नहीं भाते थे और वो उन जैसे कभी नहीं होना चाहते थे..मगर अब उन्हें लगता था कि शायद उन्हें इसी तरह जीना पड़ेगा अपने क़बीले के लोगों के सामने.. एक ऐसा आदमी बनकर जो जिन्नों के कब्ज़े में है.. क्यूंकि ऐसे दिव्य स्वप्न उनको महीनो से आ रहे थे और आज तो ये प्रामाणित हो गया था कि ये जिन्नों का ही मामला है
इस बात से व्यथित होकर मुहम्मद ने स्वयं को मारने का सोचा और पहाड़ से नीचे कूदकर जान देने के लिए वो और ऊंचाई पर बढे.. जब वो ऊंचाई पर बढ़ रहे थे तो उन्हें कुछ आवाज़ें सुनाई दी.. जब उन्होंने ऊपर निगाह उठा कर देखा तो दूर क्षितिज पर एक आकृति दिखाई दी जो उनसे कह रही थी "ए मुहम्मद.. मैं अल्लाह का फरिश्ता हूँ जिब्राईल और तुम अल्लाह के पैग़म्बर हो"
मुहम्मद को ये भी एक स्वप्न जैसा ही लगा मगर फिर पहाड़ पर कुछ देर खड़े रहने के बाद उन्होंने वापस घर जाने का निर्णय किया और ख़ुदकुशी का इरादा त्याग दिया
हिरा गुफा की ये घटना कुरआन की पहली आयात नाज़िल/अवतरित होने की घटना थी.. जिब्राईल ने जो उन्हें पढ़वाया था वो सूरह "इक़रा" के नाम से जानी जाती है.. मुहम्मद के लिए ये घटना व्यथित कर देने वाली और पीड़ादायक थी मगर यही शुरुवात थी इस्लाम की.. एक ऐसे धर्म के नींव की जो आने वाले समय में अरब समेत पूरी दुनिया का नक्शा बदलने वाला था
क्रमशः..
~ताबिश