इस्लाम का इतिहास - भाग 16

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History of Islam


इस्लाम का इतिहास - भाग 16



मुहम्मद अब पच्चीस साल के हो चुके थे.. वो औसत शरीर के व्यक्ति थे.. बड़े सर के साथ शरीर दुबला तो नहीं मगर मांसल था.. चौड़े कंधे के साथ पूरा शरीर अच्छी तरह गठीला था.. बाल और दाढ़ी घने और काले थे और हलके घुंघराले थे.. सर के बाल आगे से कानों के बीच तक आते थे और पीछे के कन्धों तक..माथा चौड़ा और आँखें बड़ी.. भौं लंबी और खूबसूरत मगर आगे से आपस में मिली नहीं थी.. ज़्यादातर पुराने इतिहास में आँखें काली बतायी गयी हैं मगर एक या दो जगहों पर कुछ लोगों ने भूरी कहा है या हलकी भूरी.. नाक तीखी और खड़ी और मुँह चौड़ा और तराशा हुवा था.. मुहम्मद ने अपनी मूछों को कभी अपने ऊपरी होंट से निचे नहीं जाने दिया.. त्वचा का रंग गोरा था मगर अरब की धुप ने उसे हल्का झुलसा दिया था

मक्का में उस समय एक अमीर व्यापारी औरत थी.. नाम था ख़दीजा.. ख़दीजा "खुवयलिद" की बेटी थी जो कि असद वंश के थे.. वो वराक़ह और कुतैलह की चचेरी बहन लगती थी.. वही वराक़ह जो अब्दुल मुत्तलिब का दोस्त था और ईसाई बन गया था.. और वही कुतैलह जिसने मुहम्मद के पिता अब्दुल्लाह से शादी करने की इक्षा जताई थी

ख़दीजा चालीस वर्ष की थीं और उनकी दो बार शादी हो चुकी थी.. जबसे उसके दुसरे पति की मौत हुई तब से वो अपने व्यापार के लिए मक्का के अच्छे आदमियों को भाड़े पर रखकर उनसे अपना व्यापार करवाती थी.. हर कारवां से पहले वो एक आदमी को भाड़े पर रखकर उसे कारवां के साथ भेजती थी.. इधर मुहम्मद जब अल-अमीन के नाम से प्रसिद्ध हुवे तो ये बात उड़ते उड़ते ख़दीजा के कानों तक भी पहुंची.. ख़दीजा ने उन्हें बुलावा भेजा अपने व्यापार के लिए

ख़दीजा ने उन्हें दोगुना मेहनताना देने का वादा कर के नौकरी पर रखा और कारवाँ को सीरिया ले जाने को कहा.. सीरिया से व्यापार करके जब मुहम्मद वापस आये तो ख़दीजा के पास पहुंचे.. जो सामान वो सीरिया से लाये थे वो बहुत अच्छी कीमत के थे और ख़दीजा उन्हें आराम से दुगने दाम पर मक्का में दुसरे व्यापारियों को बेच सकती थी.. ख़दीजा इस सौदे से बहुत खुश हुई.. मुहम्मद उसे व्यापार और सफ़र के बारे बता रहे थे और ख़दीजा मुहम्मद की बातें सुन तो रही थी मगर उसके दिल में कुछ और ही चल रहा था.. ख़दीजा ने पहली बार मुहम्मद को ठीक से देखा था और अब उसका दिल व्यापार से आगे की सोच रहा था

मुहम्मद के जाने के बाद ख़दीजा ने अपने दिल की बात अपनी एक सहेली नुफैशह को बतायी और उस से कहा कि क्या उसकी और मुहम्मद की शादी हो सकती है? नुफैशह ने ख़दीजा से वादा किया कि वो इस बारे में मुहम्मद से बात करेगी..

नुफैशह मुहम्मद के पास जाती है और पूछती है कि उन्होंने अभी तक शादी क्यों नहीं की?

मुहम्मद कहते हैं "मेरी अभी इतनी हैसियत नहीं है कि मैं शादी कर सकूँ"
नुफैशह कहती है "अगर आपकी हैसियत हो जाए तो? और अगर आपको ख़ूबसूरती के साथ धन, दौलत इज़्ज़त और शोहरत मिले तो क्या आप करेंगे?"

मुहम्मद पूछते हैं कि "कौन है वो?"

और नुफैशह ख़दीजा का नाम लेती है.. जिस पर मुहम्मद थोड़ा अचंभित होते हैं क्योंकि अपनी हैसियत के हिसाब से उन्हें इस बात पर यक़ीन नहीं आता है.. फिर वो कहते हैं "मगर ये कैसे हो सकता है?"

नुफैशह कहती है "वो आप मुझ पर छोड़ दीजिये.. बस अपना जवाब बताईये"
मुहम्मद कहते हैं "मैं तैयार हूँ"

इसके बाद नुफैशह ख़दीजा को जाकर मुहम्मद के जवाब के बारे में बता देती है और ख़दीजा मुहम्मद को बुलावा भेजती है.. मुहम्मद के आने के बाद ख़दीजा उनसे अपने प्यार का इज़हार करती हैं और शादी की इच्छा जताती हैं.. मुहम्मद उनकी इच्छा को स्वीकार करते हैं और ख़दीजा से अपने घर वालों से बात के लिए बोलते हैं और ख़ुद अपने चाचा अबू तालिब से भी बात करते हैं

ख़दीजा अपने चाचा अम्र से बात करती है क्योंकि ख़दीजा के पिता मर चुके होते हैं.. अबू तालिब और बनु हाशिम (मुहम्मद का वंश) के लोग "हमज़ा" को इस शादी की ज़िम्मेदारी सौंपते हैं.. हमज़ा की बहन ख़दीजा के भाई अव्वाम से ब्याही होती है इसलिए हमज़ा उनके घर वालों को क़रीब से जानते हैं

हमज़ा ख़दीजा के चाचा अम्र के पास जाते हैं और ख़दीजा का हाथ मांगते हैं.. और दोनों पक्ष इस शादी पर तैयार हो जाते हैं इस समझौते के साथ कि मुहम्मद ख़दीजा को दहेज़ के तौर पर बीस उंटनियां देंगे


क्रमशः..


~ताबिश




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