इस्लाम का इतिहास - भाग 13

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History of Islam


इस्लाम का इतिहास – भाग 13


अब्दुल मुत्तलिब (मुहम्मद के दादा) के पास आखिरी समय में कुछ ख़ास धन संपत्ति नहीं बची थी.. उनके ज़्यादातर बच्चे व्यापार में लगे हुवे थे.. उनमे से जिस बेटे के पास सबसे अधिक धन था वो था अबू-लहब.. अबू तालिब, जो कि मुहम्मद के अभिभावक की भूमिका में थे, काफी गरीब थे.. इसीलिए घर की आर्थिक सहायता के लिए मुहम्मद ने बकरियां चराना शुरू किया.. उस समय उनकी उम्र नौ से बारह वर्ष के बीच बतायी जाती है.. इतनी उम्र के लड़के के लिए आमदनी या यही सबसे अच्छा स्रोत था उस समय

बकरियां चराने के लिए मुहम्मद अपने बकरियों के झुण्ड को मक्का कि पहाड़ियों में ले जाते थे.. यहीं से उनका एकांत और पहाड़ियों से रिश्ता शुरू हुवा.. पूरे दिन एकांत में बकरियों के साथ सूनसान पहाड़ियों पर रहना आने वाले समय में उनके लिए एक धर्म और व्यवस्था का नया आयाम खोलने वाला था

मक्का और उसके आस पास के अरब में उस समय कोई न्याय व्यवस्था नहीं थी.. और न्याय के लिए वहां कोई भी संस्था नहीं थी.. अरब के कुलीन लोग जब सीरिया या एबीसीनिया (इथोपिया) के भ्रमण पर जाते थे तो वहां की न्याय व्यवस्था देख उन्हें अरब में ऐसा कुछ न होने पर दुःख होता था..

एक बार येमन का एक व्यापारी मक्का आता है और कुछ बेशकीमती जवाहरात “सहम वंश” के एक व्यक्ति के हाथ बेचता है.. सहम "कुरैश क़बीले" का ही एक वंश है.. वो व्यक्ति येमनी व्यापारी को तय कीमत की रकम नहीं देता है जिस से वो व्यापारी इन्साफ के लिए कुरैश के कुलीन लोगों के पास जाता है और न्याय की गुहार लगाता है.. सहम वंश का व्यक्ति ऐसे कुरैश के अन्य वंशों के लोगों कि बात नहीं मान रहा था.. कुरैश के लोगों को इस बात से बड़ा दुःख होता है और उन्हें अपने यहाँ कोई न्याय व्यवस्था न होने पर बड़ी शर्म आती है.. इसलिए वो लोग तुरंत एक न्याय संस्था गठित करने के लिए आपस में इकठ्ठा होते हैं.. चूँकि कुरैश क़बीले के अपने बहुत से वंश थे और एक वंश दूसरे की बात नहीं सुनता था इसलिए एक सन्धि कि ज़रूरत थी जिसके परिणाम स्वरुप किसी भी वंश द्वारा किया गया अन्याय एक न्याय व्यवस्था के अंतर्गत सबके लिए मान्य हो

ये सभा अब्दुल्लाह-इब्न-जद्दान के घर होती है.. जो उस समय कुरैश के सबसे धनी और प्रभावशाली व्यक्ति होते हैं.. वहां कुरैश के प्रतिष्ठित लोग एक न्याय व्यवस्था का खाका बनाते हैं जिसमे हर किसी के साथ न्याय करने कि सौगंध खायी जाती है.. अब्दुल्लाह-इब्न-जद्दान का घर बहुत बड़ा होता है इसलिए आगे की सारी सभाएं उनके ही घर में होगी इसका निर्णय लिया जाता है

इस सौगंध को अमली जामा पहनाने के लिए अंत में सारे प्रतिष्ठित लोग काबा में इकठ्ठा होते हैं और काबा में लगे हुवे “काले पत्थर” पर रीति के अनुसार पानी डाला जाता है.. और फिर वो पानी, जो पत्थर से बह कर नीचे एक “पात्र” में इकठ्ठा होता है, उसे प्रत्येक व्यक्ति चुल्लू से पीता है और अपना हाथ ऊपर उठा कर निष्पक्ष न्याय करने कि सौगंध खाता है

अरब की इस पहली न्याय व्यवस्था को “हिल्फ़ अल-फुज़ूल” के नाम से जाना जाता है.. मुहम्मद भी इस संस्था का हिस्सा बने थे और उन्होंने ने भी इस न्याय व्यवस्था को चलाने कि सौगंध खायी थी.. इस्लाम लाने के बाद भी मुहम्मद ने इस सन्धि को जारी रखा था, ये जानते हुवे कि ये सन्धि जिन कुरैश के वंशों के बीच हुई थी वो सब मूर्ति पूजक थे.. अबू बकर भी इस सन्धि के दौरान मौजूद थे.. कुरैश कबीले के जो जो वंश इस सन्धि में शामिल हुवे थे वो थे बनू हाशिम, बनू जुहरा, बनू तयम, बनू सहम.. बनू नवफल और सबसे शक्तिशाली बनू उमय्याह ने इस सन्धि में हिस्सा नहीं लिया था


क्रमशः ...


~ताबिश




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