इस्लाम का इतिहास - भाग 10
मुहम्मद (saw) के पैदा होने से पहले ही उनके पिता अब्दुल्लाह का देहांत हो चुका था.. अब्दुल्लाह का व्यापार नया नया था इसलिए अपने पीछे वो जो दौलत छोड़ के गए थे वो थी पांच ऊंट और कुछ बकरियां और एक ग़ुलाम लौंडी.. अब्दुल मुत्तलिब (मुहम्मद के दादा) की उम्र भी काफी हो रही थी.. इसलिए उनसे किसी बड़े सहारे की अपेक्षा नहीं हो सकती थी.. अब्दुल मुत्तलिब के बाक़ी नौ लड़के अपने अपने व्यवसाय में व्ययस्त थे.. इसलिए ले दे के जो कुछ अब्दुल्लाह अपने पीछे छोड़कर गए थे वही मुहम्मद और उनकी माँ की जमा पूँजी थी
"बनु साद" वंश की औरतें बहुत समय से कुरैश घराने के नवजात बच्चों को दूध पिलाती थीं और लालन पालन करती थी.. बच्चा पैदा होने के करीब आठ दिन के बाद इन औरतों को दे दिया जाता था और आठ से दस बरस तक वो इनके साथ मरुस्थल में पलता बढ़ता था..
बच्चों को इस तरह से देने के पीछे कई कारण थे.. पहला तो मरुस्थल में उनको मज़बूत बनाना और पुरातन अरब के रीति रिवाजों की शिक्षा देना.. दूसरा सबसे बड़ा कारण था उस दौर में होने वाली आपसी लड़ाईयां और लोगों की अकाल मृत्यु.. जब बच्चे के दो माँ बाप और दो परिवार बन जाते थे तो असल माँ बाप को अपने न होने के बाद उसके लालन पालन की चिंता नहीं सताती थी.. दूध का रिश्ता सगे भाई बहनों का रिश्ता माना जाता था और दूध माँ को अपनी असल माँ जितनी ही इज़्ज़त मिलती थी.. इस प्रथा से दो परिवार जुड़ते थे और उस ज़माने में बड़ा परिवार होने का मतलब अधिक सुरक्षा और दबदबा.. दूध का रिश्ता कितना असल रिश्ता होता है इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि दूध के रिश्ते के भाई बहन की आपस में शादी नहीं हो सकती.. वो सगे भाई बहन जैसे ही होते हैं
"बनु साद" वंश की औरते समय समय पर क़ुरैश के लोगों के पास आती थीं और बच्चों को अपने साथ ले जाया करती थीं.. एक साथ कई बच्चों को अपनी दाई मिलती थी क्योंकि एक पति की कई बीवियां होती थी और एक समय पर अक्सर कई नवजात होते थे ले जाने के लिए
जिस समय मुहम्मद पैदा हुवे, अकाल जैसी स्थिति थी.. "बनु साद" कबीले की औरतें बड़ी उम्मीद से अपने अपने लिए नवजात लेने आई थीं ताकि इसके बदले में उनकी भी अच्छी गुज़र बसर हो सके.. उनमे से एक औरत थी "हलीमा".. इतिहास में दर्ज है कि "हलीमा" ने उस समय की स्थिति बयान की थी.. वो कहती हैं कि "हमारे पास एक ऊंट और एक गधी थी.. सूखे की वजह से हालात ये थे कि न तो ऊंट को दूध उतरता था और न मुझे खुद, और गधी बिना चारे के सूख के हड्डी का ढांचा हो गयी थी".. क्योंकि हलीमा को भी कुछ ही दिन का एक बेटा था और वो रात भर रोता था दूध के लिए मगर हलीमा के दूध से उसका पेट नहीं भर पा रहा था
ज़्यादातर औरतें अच्छे पैसे वाले लोगों के ही बच्चे पहले लेना पसंद करती थीं.. और पैसे वाले कुलीन लोग भी अपना बच्चा थोड़ी अच्छी स्थिति के परिवार को ही देना पसंद करते थे.. इस हिसाब से मुहम्मद बनु साद की औरतों के लिए अच्छा सौदा नहीं थे और न हलीमा कुरैश की कुलीन औरतों के लिए.. हलीमा उनमे से सब से गरीब और नवजात मुहम्मद अपने लोगों में से सबसे गरीब
सब औरतों को अपने अपने हिसाब से बच्चे मिल गए.. और हलीमा ने भी चाहा कि कोई अच्छा मिल जाए मगर न मिला.. निराश हो कर हलीमा भी अपने कबीले वालों के साथ वापस चल पड़ीं.. मगर रास्ते में रह रह कर हलीमा को मुहम्मद का ख्याल आता रहा.. और आखिर में उन्होंने अपने पति "हारिस" से कहा "जाने क्यों मेरा दिल उस बच्चे में अटका हुवा है.. वो है तो घाटे का सौदा मगर उसका बाप नहीं है और उसे ऐसे छोड़कर जाने का मन नहीं कर रहा"
हारिस कहते हैं "हो सकता है कि वही हमारी किस्मत में हो.. ऊपर वाला जो करता है अच्छा ही करता है.. तुम जाओ और उसे ऊपर वाले की अमानत समझ के ले आओ"
हलीमा पति की सहमति पर खुश हो जाती हैं और रास्ते से वापस लौट जाती हैं और नवजात मुहम्मद को अपना दूध बेटा क़ुबूल कर लेती हैं
क्रमशः ..
~ताबिश