इस्लाम का इतिहास - भाग 1

  Religion » History of Islam You are here
Views: 2541

History of Islam


इस्लाम का इतिहास - भाग 1


अब्दुल मुत्तलिब, जिनका काम अपने पूर्वज हज़रात इब्राहीम के "काबे" की देखभाल और तीर्थयात्रियों सुविधाएं प्रदान करना था, को पहले सिर्फ एक लड़का था.. इतना धन दौलत और क़ुरैश (अरब का एक घराना) में रुतबे के बावजूद ये बात उनको बहुत खलती थी.. उस समय ज़्यादा लड़के होने का मतलब था ज़्यादा रुतबा और ज़्यादा दबदबा.. इसी दर्द को लेकर अब्दुल मुत्तलिब ने ख़ुदा से दुवा की और ये वादा भी किया कि अगर उनके दस लड़के हो जाएंगे तो वो अपने एक बेटे को जवान होने के बाद अल्लाह के लिए कुर्बान (बलि) कर देंगे.. जवान होने की शर्त इसलिए रखी क्योंकि ज़्यादातर बच्चे उस समय बिमारी की वजह से बचपन में ही मर जाते थे

साल बीते और अल्लाह ने उनकी दुवा क़ुबूल कर ली.. उनके नौ लड़के और हुवे और अब कुल दस हो गए थे.. सारे जवान हो गए.. और जब सबसे छोटा बेटा "अब्दुल्लाह" जवानी की दहलीज़ पर पहुंचा तो अब्दुल मुत्तलिब की चिंता बढ़ने लगी.. उन्होंने जो वादा अल्लाह से किया था वो उन्हें परेशान करने लगा.. मगर वो अपनी बात और इरादे के पक्के थे... अपने बेटों को बुलाया और उनके सामने अपनी प्रतिज्ञा रखी.. बेटे तैयार हो गए परीक्षा के लिए

अब्दुल मुत्तलिब ने अपने बेटों से एक एक तीर माँगा और कहा कि अपने नाम का निशान लगा दो तीर पर.. सारे तीरों को पवित्र करने के बाद काबा के भीतर स्थित "हबल" देवता की मूर्ति के सामने उन तीरों को रेत में गाड़ा गया.. और जब मन्त्र पढ़के एक तीर निकाला गया तो वो उनके सबसे प्यारे और छोटे बेटे अब्दुल्लाह का तीर था.. और उन्होंने अब्दुल्लाह की बलि देने का निश्चय किया
काबा से निकालकर अब्दुल मुत्तलिब अपने बेटे अब्दुल्लाह को लेकर कुर्बानी की जगह (बलि वेदी) की ओर बढ़े.. कहते हैं दोनों बाप बेटों के चहरे सफ़ेद पड़ चुके थे और अब्दुल मुत्तलिब बुझे दिल से धीरे धीरे आगे बढ़ रहे थे.. रास्ते में पूरा हुजूम इक्कट्ठा हो गया था.. परिवार के लोग रो रहे थे.. सारे भाईयों ने अंत में अपने बाप अब्दुल मुत्तलिब के पांव पकड़ लिए और प्रार्थना की कि उनके भाई अब्दुल्लाह की जान बख्श दें और बलि का कोई अन्य विकल्प तलाश करें.. और अंत में अब्दुल मुत्तलिब इस बात के लिए तैयार हो गए कि वो एक "आध्यात्मिक" औरत से इस बारे में राय लेंगे

वो अब्दुल्लाह को लेकर उस औरत के पास गए और अपने प्रतिज्ञा की बात उसे बतायी.. उस औरत ने दूसरे दिन इन्हें आने को कहा और जब दूसरे दिन गए तो उसने कहा कि उसे देवताओं से जवाब मिल गया है.. और वो ये है कि अपने दस बेटों को एक तरफ खड़ा करो और दूसरी तरफ दस ऊंट खड़े करो.. और बीच में एक तीर उछालो.. अगर तीर लड़कों की तरफ गिरे तो समझो अभी ख़ुदा ने कुर्बानी क़ुबूल नहीं की.. और दस ऊंट और बढ़ा दो.. फिर तीर उछालो
अब्दुल मुत्तलिब ने यही किया और हर बार तीर लकड़ों की तरफ ही गिरता.. होते होते जब सौ ऊंट हो गए तब तीर जाके ऊंट की तरफ गिरा और अब्दुल मुत्तलिब ने राहत की सांस ली कि ख़ुदा ने उनकी कुर्बानी क़ुबूल तो की.. और फिर सौ से अधिक ऊंटों की कुर्बानी दी गयी काबे की बलि वेदी में

अपने जिस सबसे प्यारे बेटे "अब्दुल्लाह" को अब्दुल मुत्तलिब कुर्बान करने जा रहे थे, इस प्रथा के कुछ दिनों बाद ही पच्चीस साल की उम्र में उन्होंने "अब्दुल्लाह" की शादी "आमिना" से करवा दी और बाद में उन दोनों के एक बेटा हुवा जिसे आज दुनिया "मुहम्मद" (s.a.w) के नाम से जानती है


क्रमशः .......


~ताबिश




Latest Posts

Start Discussion!
(Will not be published)
(First time user can put any password, and use same password onwards)
(If you have any question related to this post/category then you can start a new topic and people can participate by answering your question in a separate thread)
(55 Chars. Maximum)

(No HTML / URL Allowed)
Characters left

(If you cannot see the verification code, then refresh here)