राम के देश में राम स्वयं और राम का सेतु इतना उपेक्षित क्यूँ है?

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Ram Setu or Adams bridge

Image Credit: Fulldhamaal.com


हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के साथ हमेशा ये विरोधाभास रहा है कि जहाँ ये मान्यताएं एक बड़े जनमानस द्वारा मानी गयीं वहीँ दूसरी ओर उसी परिवेश और स्थान में उनके उतने ही विरोधी भी रहे.. ये सबसे बड़ी वजह रही है इस बात की कि हिन्दू पौराणिक कथाओं और मान्यताओं को बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू स्वयं आता के साथ साथ "कल्पनीय" मानता है.. भारत को श्रीलंका से जोड़ने वाला "आदम ब्रिज" यानि राम सेतु हिन्दू पौराणिक कथाओं की परस्पर विरोधी मान्यता का जीता जागता सबूत है

दो दिन पहले जब एक विदेशी  "साइंस चैनल" ने अपने एक प्रोग्राम "व्हाट ओन अर्थ" के एक प्रोग्राम का प्रोमो जारी किया तो भारत में खलबली मच गयी.. इस प्रोमो में ये साबित किया गया है कि भारत जिसे राम सेतु के नाम से जानता है और बाक़ी दुनिया "आदम ब्रिज" के नाम से, वो एक मानव निर्मित संरचना है.. जबकि पहले नासा और अन्य वैज्ञानिक खोज करने वाली संस्थाओं ने ये दावा कर रखा था कि ये सेतु प्राकृतिक रूप से निर्मित एक संरचना है.. इसलिए अब साइंस चैनल का दावा बहुत चौकाने वाला है और ऐसे दौर में जहाँ भारत धार्मिकता के तौर पर अपनी नयी परिभाषाएं गढ़ने को आतुर है, ये दावा इन नए धार्मिक संगठनों को एक नया बल देगा

हिन्दू धार्मिक मान्यता ये कहती है कि ये सेतु या पुल भगवान राम और उनकी वानर सेना द्वारा लंका पर चढ़ाई करने हेतु बनाया गया था.. साइंस चैनल की ताज़ा खोज ये बताती है कि जिस बालू या रेत पर आदम ब्रिज या राम सेतु के पत्थर रखे हैं वो रेत लगभग चार हज़ार (४०००) साल पुरानी है.. जबकि ये पत्थर जो पुल का निर्माण करते हैं और इन रेतों पर रखे हुवे हैं वो सात हज़ार (७०००) साल पुराने हैं.. इस तथ्य से वैज्ञानिक ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि ये पत्थर इंसानों द्वारा यहाँ ला कर रखे गए हैं.. जबकि पहले ये कहा गया था कि ये प्राकृतिक रूप से वहां इकठ्ठा हुवे पत्थर हैं



बहुत समय पहले से अक्सर गाहे बगाहे हिन्दू संस्थाओं द्वारा ऐसे दावे किये जाते रहे हैं मगर वो जनमानस द्वारा इस वजह से ख़ारिज कर दिए गए क्यूंकि उनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता था.. हिन्दू समाज ने अपनी इन मान्यताओं को कभी मुसलमानों या इसाईयों की तरह नहीं लिया.. इसाई इतनी उन्नति करने के बाद भी ये मान्यता आसानी से हज़म कर जाते हैं कि जीसस बिना बाप के पैदा हो गए और जीसस "के अस्तित्व" का स्वयं कोई भी वैज्ञानिक न होने के बाद भी इसाईयों का प्रचार तंत्र उनके अस्तित्व और उनसे जुडी धारणाओं और मान्यताओं को सदियों से प्रचारित कर रहा है और देशों और विदेशों में उनकी मान्य्तायं जनमानस के भीतर बहुत गहरी पैठ बना चुकी हैं और ज़्यादातर लोग उन मान्यताओं पर बिना कोई सवाल किये उसे स्वीकार कर लेते हैं

वैसे ही इस्लामिक मान्यताएं हैं.. इस्लाम की मान्यताओं के भीतर सिर्फ इस्लाम के प्रवर्तक मुहम्मद साहब का अस्तित्व ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित है मगर इस्लाम की अन्य  धार्मिक मान्यताएं और कहानियां जो इसाई और यहूदियों के धर्मों से आयातित हैं, उनका कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है.. यहाँ तक कि इस्लाम का मूल काबा, जिसकी परिक्रमा करने सारे विश्व के मुसलमान हज के दौरान इकठ्ठा होते हैं, एतिहासिक रूप से कोई ये प्रमाणित नहीं कर सकता है कि वो "पैगम्बर इब्राहीम" द्वारा बनाया गया था.. एतिहासिक रूप से काबा सिर्फ अरबों के मूर्ति पूजा के स्थल, यानि कि एक मंदिर के रूप में ही प्रामाणित किया जा सकता है बस

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बिना किन्हीं एतिहासिक आधारों के बावजूद इस्लाम और इसाईयत से जुडी लगभग सभी किवदंतियों को सारे विश्व में मान्यताएं मिल गयीं मगर भारत के हिन्दू धर्म से जुड़ी किवदंतियां और पौराणिक कहानियां समूचे विश्व के लिए "परिकल्पनाएं" और "किवदंतियां" ही बनी रहीं.. ये ऐसा इसलिए हुवा क्यूंकि हिन्दू मानस तमाम आस्थाओं और अंध श्रधाओं के बावजूद तार्किक बना रहा.. वो राम को मानता भी है और उनकी आलोचना भी सुनने को तैयार रहता है.. इसीलिए अब तक भारत में इस आलोचना की मान्यता वाले बहुसंख्यक रहे हैं जो ये मानते थे कि कैसे वानर सेना किसी सेतु का निर्माण कर सकती है भला? और इन्ही मान्यताओं के चलते भारत में राम सेतु और उस से जुडी चीज़ों पर ध्यान कम दिया गया.. और केवल रामसेतु ही नहीं, बल्कि राम को ही इतनी अधिक मात्रा में धार्मिक मान्यता इसलिए भी नहीं दी गयीं क्यूंकि भगवान् के रूप में हिन्दुवों के पास करोड़ों अन्य देवी देवता हैं जिन्हें पूजा जाता है जबकि इसाईयों के पास अकेले जीसस हैं और मुसलमानों के सिर्फ एक अल्लाह.. कम ईष्ट होने से मुसलमानों और इसाईयों की मान्यताएं बिखराव से बच जाती हैं और मुसलमानों, यहूदियों और इसाईयों की साझा धार्मिक किवदंतियां और मान्यताएं होने से वो कभी उनके एतिहासिक रूप से प्रमाणिक न होने पर भी कोई सवाल नहीं उठाते हैं

राजनेता कह रहे हैं कि रामसेतु को पहले की सरकारों ने उपेक्षित किया और इसकी वैज्ञानिक खोज नहीं की.. जबकि रामसेतु की बात क्या करी जाय यहाँ तो राम की अयोध्या भी उपेक्षित ही रही है.. इतने आंदोलनों के बावजूद अयोध्या को मक्का या येरुसलम जैसी मान्यता नहीं मिल पायी है और न हिन्दू मानस इसे लेकर उतना उत्साहित हुवा है कभी.. इसकी दो प्रमुख वजह हैं.. पहली तो विरोधाभास की विचारधारा को व्यापक समर्थन और दूसरा प्रत्येक हिन्दू को अपना ईष्ट चुनने की आज़ादी.. राम भारतीय जनमानस के ह्रदय में भगवान् के रूप में स्थापित हैं मगर वो अकेले भगवान् या ईष्ट नहीं हैं.. अनेकों के लिए राम से ऊपर कृष्ण आते हैं और अनेकों के लिए राम से ऊपर शंकर.. इसलिए अकेले राम और उनकी अयोध्या या उनके सेतु पर सभी हिन्दुवों की निगाह नहीं रहती है 

भारत में कोई भी एक भगवान् कभी भी समूचे जनमानस का भगवान् नहीं हो सकता है.. और अगर इसे कोई ज़बरदस्ती करना भी चाहे तो इसे हिन्दू मान्यताओं के विरुद्ध ही कहा जाएगा.. मौजूदा सरकार और इस से जुड़े संगठन निरंतर राम को अकेला और सर्वमान्य भगवान बनाने की कोशिश में लगे हैं और उनकी ये कोशिश किसी आस्था से प्रेरित नहीं है बल्कि मौजूदा सरकार और उसके संगठनो ने ये समझ लिया है कि उन्हें भी इसाईयों, यहूदियों और मुसलमानों की भांति एक "ईष्ट" चाहिए जिस से समस्त हिन्दुवों की मान्यताओं को एक किया जा सके और आस्था के बिखराव को बचाया जा सके.. मगर इन संगठनों और पार्टियों की ये पहल पूरी तरह से राजनैतिक है इसलिए ये कितना भी कोशिश करें आस्था के नाम पर ये इसे कुछ ही दिन संभाल पायेंगे और बाद में लोग फिर अपने अपने रास्ते चल निकलेंगे.. क्यूंकि हिन्दू मन स्वतंत्र है और यही हिन्दू धर्म की सुन्दरता है

मौजूदा सरकार और उसके मंत्रियों ने अगर रामसेतु की इस नयी खोज को राजनैतिक बना के एक दूसरे पर इलज़ाम लगाना शुरू कर दिया तो ये पार्टी का मुद्दा बन जाएगा और फिर इसके विरोधाभास में तमाम ऐसे रिसर्च हो जायेंगे जो आम जनमानस को फिर वहीँ पर पहुंचा देंगें जहाँ वो पहले खडा था.. और तार्किक बहस शुरू हो जायेगी जो अंत में साइंस चैनल को भी कहीं न कहीं से बायस्ड साबित कर देगी

इसलिए अगर आप चाहते हैं कि आपकी मान्यताओं के एतिहासिक तथ्य हासिल हों तो इनको लेकर उग्र मत होईये.. जै श्री राम के उद्घोष क साथ कोई जंग नहीं जीतनी है.. क्यूंकि उग्रता बहुत भयानक विरोध को जन्म देती है और चूँकि भारत का जनमानस शरिया पर नहीं चलता है इसलिए यहाँ इस तरह की उग्रता से आपको कुछ हासिल नहीं होगा और अंत में कानून और रिसर्च पर आ कर बात टिक जायेगी.. रामसेतु पर और रिसर्च हो.. ASI इस पर ठीक से शोध करे और तथ्य इकठ्ठा करे ताकि हिन्दू आस्थाओं और परिकल्पनाओं को थोड़ा मौलिक बल मिले और वो स्वयं को दूसरों से कम महसूस करना बंद कर दें  





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