अप्रैल के इसी शुरुवाती दिनों ने फ्रांस ने अपने यहाँ से एक इस्लामिक इमाम दाउदी को अपने यहाँ से देश निकाला दे दिया है.. अल्जीरिया में पैदा हुवा और फ्रांस में रहने वाला इमाम दाउदी लगभग सैतीस साल से फतवा देने का काम करता था और फ्रांस का ये आरोप है कि इस बीच वो अपने भाषणों में औरतों, यहूदियों और आधुनिक समाज के लिए ज़हर उगलता था
फ्रांस जो की पहले काफ़ी नर्म था इस्लामिक कट्टरपंथियों पर अपने रवय्यिये को लेकर, वो अब इन कट्टरपंथियों पर सख्त क़दम उठा रहा है.. खासकर उन इमामों और मौलानाओं पर फ्रांस की जांच एजेंसी की निगाह रहती है जो इस्लाम की सलाफ़ी विचारधारा से जुड़े हुवे होते हैं
फ्रेंच राजनेता मैक्रॉन ने कहा कि "इस समय हमारी लड़ाई सिर्फ आतंकवादी संगठनो, और दायेश की सेना और उनके इमामों से ही नहीं हैं बल्कि इस वक़्त हमारी लड़ाई गुप्त और छिपे हुवे इस्लाम से है जो सोशल नेटवर्किंग के दौर में काफ़ी आधुनिक हो गया है और अपने कार्यों को बहुत ही गुप्त तरीक़े से अंजाम दे रहा है और ये बहुत गुपचुप तरीक़े कमजोरों पर काम करता है और उन्हें भी नहीं छोड़ता है जो इसके लिए काम करते हैं"
इमाम दाउदी ने कहा कि "मुझे पता है कि वो लोग मेरे भाषणों को सुन रहे थे, मैंने हमेशा सीधा सीधा बोला है.. पहले उन्हें इस से दिक्कत नहीं थी मगर अब अचानक वो कह रहे है कि सलाफ़ी इस्लाम फ्रांस के लिए ख़तरा है"
इमाम दाउदी फ्रांस के मार्से (Marseille) शहर, जो कि फ्रांसे का दूसरा सबसे बड़ा शहर है और वहां मुस्लिम आबादी काफ़ी मात्रा में है, वहां की जिस मस्जिद में इमाम दाउदी भाषण देता था उसे दिसम्बर में ही ख़ुफ़िया एजेंसी द्वारा ताला लगा दिया था.. सरकार ने अपने लम्बे इन्वेस्टीगेशन रिपोर्ट में ये कहा है कि इमाम दाउदी ने अपने भाषणों में यहूदियों को गन्दा कहा था और ये भी कहा था कि वो बंदरों और सुवरों के भाई होते हैं.. इमाम इस बात कर भी समर्थन करता था कि जो औरत किसी दूसरे मर्द के साथ सहवास करे उसे पत्थरों से मार डालना चाहिए.. इमाम का औरतों के बारे में ये भी विचार था कि उन्हें मर्दों की बिना अनुमति के घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए.. और नास्तिकों के बारे में इमाम कहता था कि उन्हें जान से मार देना चाहिए
सरकार ने आपनी जांच रिपोर्ट में आगे कहा कि इस इमाम ने नमाज़ के दौरान ये दुवा मांगी थी जिसमे इसने कहा था कि "या अल्लाह काफ़िरों को हराओ (शिकस्त दो) और उन्हें ज़लील करो.. या अल्लाह उन सबको नरक में भेजो जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ साज़िश रचते हैं"
सरकार के इस इलज़ाम पर इमाम के वकील ने कहा कि ये ऐसी दुवा है जो दुनिया की हर मस्जिद में मांगी जाती है.. मगर फ्रांस सरकार अब इस तरह की दलीलों को सुनने के मूड में नहीं है और उसने कहा कि इस तरह की दुवाएं और ऐसे धार्मिक भाषण फ्रांस की संस्कृति और मूल्यों से मेल नहीं खाते हैं.. और इसलिए अब इस तरह की दुवाएं और भाषण फ्रांस में बर्दाश्त नहीं किये जायेंगे
फ्रांस ने 2012 से 2015 के बीच चालीस (40) इमामों को देश से बाहर निकाला है और सिर्फ़ पिछले अट्ठाईस महीनों में ही बावन (52) मुसलमानो, जिसमे ज़्यादातर इमाम और मौलाना ही थे, को देश से धक्के देकर बाहर कर दिया है
फ्रांस इस समय सलाफ़ी पंथ को लेकर बहुत चिंतित है और वो हर सलाफ़ी इमाम और उसके भाषणों पर नज़र रखता है.. ज्ञात हो कि सलाफ़ी विचारधारा को भारत में देवबंदी या वहाबी विचारधारा के नाम से जाना जाता है
अगर आपको याद हो कि कनाडा में रहने वाले तारिक फ़तेह ने भारत में अपने टीवी शो के दौरान मस्जिद में मांगी जाने वाली इसी तरह की दुवाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठायी थी और वो ये चाहते थे कि इस तरह की दुवाओं को नमाज़ का हिस्सा न बनाया जाय जिसमें काफिरों के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है.. ज्ञात हो कि "काफ़िर" उस व्यक्ति को कहते हैं जो "कुफ़्र" करता हूँ.. यानि जो अल्लाह के सिवा किसी और को अपना ख़ुदा मानता हो.. काफ़िर शब्द में लगभग सारे दुसरे धर्म के लोग सिमट जाते हैं और इस तरह की नफ़रत भरी दुवाएं उन सभी लोगों के ख़िलाफ़ होती हैं जो इस्लाम न मानते हों.. तारिक फ़तेह की इस मांग पर भारत के मुसलमानों ने उनके और उनके शो के ख़िलाफ़ कोर्ट में केस कर दिया था और जिस वजह से तारिक फ़तेह को अपना शो बंद कर के कनाडा वापस जाना पडा था.. मगर फ्रांस अब उसी तरह की दुवाओं के ख़िलाफ़ एक्शन ले रहा है और उन मस्जिदों पर ताला लगा रहा है जहाँ नमाज़ के दौरान इस तरह की दुवाएं मांगी जाती है
आम मुसलमान लगभग ये जानता ही नहीं है कि नमाज़ के दौरान वो जो कुछ भी पढता है या जिस तरह की भी दुवाएं वो अरबी भाषा में माँगता है उनका मतलब क्या होता है.. उन दुवाओं का मतलब ज़्यादातर आलिमों और मौलानाओं को पता होता है.. इसीलिए फ्रांस अब सीधा हमला आलिमों और मौलानाओं पर कर रहा है.. अगर ये दुवाएं आपकी अपनी लोकल भाषा में हों तो अब तक इन के ख़िलाफ़ दुनिया के अन्य देशों के मुसलमानों ने ही आवाज़ उठा दी होती.. क्यूंकि जो मुसलमान सेक्युलर देशों में रहता है और जो सेक्युलर संस्कृति में पला बढ़ा है वो कैसे हर जुम्मे को अपने आस पास रहने वाले काफ़िरों के लिए ऐसी दुवाएं कर सकता?
फ्रांस के इस क़दम को सारी दुनिया देख रही है और हर प्रगतिशील देश इस बात का अब समर्थन कर रहा है.. हर जगह धीरे धीरे उन बातों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठने लगी है जिसे मुसलमान इस्लाम की बहुत बुनियादी और बेसिक चीज़ समझते थे.. मगर वो शायद ये नहीं जानते थे कि आने वाले समय में सभ्य समाज धीरे धीरे इन्ही बुनियादी बातों के ख़िलाफ़ हो जाएगा.. ये किसी मज़हब की बुनियाद हो ही नहीं सकती.. क्यूंकि नफ़रत कभी बुनियाद नहीं होती है