जानिए एर्तरुल गाज़ी वेब सीरीज का इस्लामिक इतिहास

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Does dirilis ertugrul has anything to do with Islamic history?

Image Credit: FullDhamaal.com

एर्तरुल ग़ाज़ी, तुर्की की एक टीवी/वेब सिरीज़ है.. 2014 में शुरू हुवे इस वेब सिरीज़ के 400 से अधिक एपिसोड आ चुके हैं.. तुर्की में ये सिरीज़ बहुत ही ज़्यादा हिट हुई और लोग दीवाने हो गए इसके.. ये सीरियल पूरी तरह से तुर्की गवर्नमेंट की देखरेख में बना.. सरकार ने इसके लिए मोटी रकम दी.. राष्ट्रपति एर्दोआन का परिवार अक्सर इस सीरियल के सेट पर जाता था और कलाकारों के साथ समय बिताता था.. इसे पूरी तरह से तुर्की राष्ट्रपति के सरकारी संरक्षण में एक विशेष रणनीति के तहत बनाया गया है


एर्तरुल तुर्की की ओस्मानिया (उस्मानिया) सल्तनत की नींव रखने वाले ओस्मान (उस्मान) प्रथम के पिता थे.. एर्तरुल के बारे में ऐतिहासिक जानकारी नगण्य है.. पुरातत्व वालों को एर्तरुल समय का एक सिक्का मिला था जिस पर उनका नाम लिखा था.. एर्तरुल के बारे में अगर पूरे इतिहास की बात करें तो बस इतनी ही जानकारी अब तक मिली है जो पांच या छः पन्नो में समा जाय.. इतनी कम और नगण्य ऐतिहासिक जानकारी को लेकर तुर्की के सैंतीस साल के डायरेक्टर और लेखक "मेहमत बोज़दा" ने चार सौ से अधिक एपिसोड बना डाले


इसलिए जहां तक इसकी कहानी के ऐतिहासिक होने का प्रश्न है तो ये पूरी तरह से काल्पनिक है.. मगर लेखक ने तेरहवीं सदी के तुर्की के समकालीन बड़ी बड़ी हस्तियों को अपनी कहानी में ऐसे जोड़ा है जिसकी वजह से ये काल्पनिक होते हुवे भी सत्य लगती है.. इस सीरियल के ज़्यादातर चरित्र इतिहास से जुड़े हैं और उनके बारे में अच्छा ख़ासा इतिहास उपलब्ध है, सिवाए इसके मूल चरित्र एर्तरुल को छोड़कर


जैसे सूफ़ी विचारधारा की एक तरह से नींव रखने वाले "इब्न अरबी".. वो उसी दौर में थे जब एर्तरुल थे मगर इसका कोई ऐतिहासिक सबूत नहीं है कि इब्ने अरबी से एर्तरुल की कोई भी मुलाक़ात हुई थी कभी.. मगर अगर आप ये सीरियल देखेंगे तो आपको इब्ने अरबी का बहुत ही बड़ा रोल और एर्तरुल को एर्तरुल बनाने में उनका बड़ा ही योगदान दिखाया जाएगा


दरअसल एर्तरुल ग़ाज़ी पूरी तरह से तुर्की राष्ट्रपति एर्दोआन की बड़ी सोची समझी साज़िश का नतीजा है.. तुर्क और अरब के बीच मे चली आ रही बड़े पुराने  राजनैतिक मतभेद को नज़र में रखते हुवे इसका निर्माण किया गया है.. उस दौर को महिमामंडित करने की कोशिश की गई है जब इस्लाम की "ख़िलाफ़त" तुर्कों के हाथ मे आयी थी.. इब्ने अरबी के ज़रिए एर्तरुल को ऐसा दिखाया गया है जैसे वो "अल्लाह" द्वारा चुने गए कोई ग़ाज़ी थे और जिनको ये वरदान मिला था कि इस्लाम के ख़लीफ़ा की बागडोर उनका बेटा उस्मान संभालेगा और वो अल्लाह द्वारा चुना हुवा ख़लीफ़ा बनेगा.. ये सब मनगढ़ंत बातें हैं.. उस्मानिया सल्तनत को “अल्लाह” द्वारा चुनी सल्तनत बताने के लिए


एर्तरुल ग़ाज़ी में तुर्की का अपना "गढ़ा" हुवा इस्लाम दिखाया गया है.. जो सूफ़ी और अन्य पंथों को मिलाकर बना था.. इस इस्लाम का अरब के इस्लाम से दूर दूर तक कोई नाता नहीं था.. मगर तुर्की और ईरान से फैला इस्लाम का ये "कोमल" रूप सारी दुनिया पर छा गया था.. इब्ने अरबी से शुरू होकर "रूमी" तक जाता हुवा सूफ़ी पंथ का ये इस्लाम दुनिया में आज इस्लाम का एक अलग चेहरा बनाता है.. और इसी इस्लाम को भुनाने की राष्ट्रपति एर्दोआन और उनकी टीम ने पूरी कोशिश की है.. ये इस्लाम इनके घर की खेती थी और पूरी तरह से इनके अपने यहां ये गढ़ा हुवा मज़हब था.. जो था तो इस्लाम नहीं मगर इसे इन्होंने इस्लाम बना लिया था


ज्ञात हो कि इब्ने अरबी ही वो पहले सूफ़ी थे जिन्होंने "वहदतुल वजूद" यानि "कण कण में ईश्वर है" की विचारधारा को अपनाया था.. ये विचारधारा इस्लाम की नहीं थी, ये भारत से गयी थी.. मगर इब्ने अरबी ने इस विचारधारा को अपना कर इसे इस्लाम मे शामिल कर लिया था.. इसके लिए उनका विरोध भी ख़ूब हुवा था.. क्यूंकि सिर्फ़ इसी विचारधारा को अगर आप गहराई से समझेंगे तो पाएंगे कि इसी एक विचारधारा से अरब के मूल इस्लाम की सम्पूर्ण विचारधारा धराशायी हो जाएगी.. इस विचारधारा का इस्लाम से कोई लेना देना ही नहीं है और ये पूरी तरह से इस्लाम की विचारधारा के विपरीत है.. और इसी सिलसिले में आगे "रूमी" आये जिन्होंने इब्ने अरबी से दो हाथ और आगे जाते हुवे कई ऐसी विचारधाराओं को सूफ़ी पंथ में सम्मिलित कर लिया जो इस्लाम के बिल्कुल विपरीत थीं.. जैसे पुनर्जन्म और ऐसी कई चीजें जिनका सिमेटिक धर्म, यानि यहूदी, ईसाईयत और इस्लाम से कोई लेना देना ही नहीं था.. इन विचारधारों को अगर आप इस्लाम से जोड़ते हैं तो अरब के इस्लाम का मूल ही धराशायी हो जाएगा और इस्लाम कि सारी किताबें, क़ुरान से लेकर हदीसें, सब बेमानी हो जायेंगी 


तो तुर्की का ये अपना इस्लाम था जो उन्होंने अरब के इस्लाम के समानांतर खड़ा कर दिया था.. और ये बहुत ज़्यादा लोकप्रिय भी हो गया.. लोकप्रियता इसकी इतनी ज़्यादा हो गयी कि अरब वाले भी इसे न मानते हुवे भी इसको लेकर हमेशा खामोश रहे क्यूंकि जो कुछ भी चल रहा था उसका नाम तो "इस्लाम" ही था.. भले वो इस्लाम नहीं था मगर लोग उसे इस्लाम समझ के हाथों हाथ ले रहे थे


इस प्रतिस्पर्धा और राजनैतिक चाल को आप ऐसे समझ सकते हैं कि ज़ाकिर नायक ने एर्तरुल ग़ाज़ी सीरियल को "हराम" बताया है और लोगों से इसे न देखने की अपील की है.. सऊदी अरब और यूएई ने इसे अपने यहां प्रतिबंधित कर दिया है.. और इस सीरियल के जवाब में सऊदी ने कई मिलियन डॉलर के ख़र्च पर एक नया सीरियल "मालिक-ए-नार" बनवाया है, इसके दस एपिसोड अभी तक आ चुके हैं.. जिसमें तुर्कों को विलेन की तरह पेश किया जा रहा है.. ज़ाकिर नायक सऊदी के वहाबी इस्लाम को मानता है और उसके लिए एर्तरुल कहीं से कहीं तक वहाबी इस्लाम के ढाँचे में फ़िट नहीं बैठेगा


इमरान खान जब तुर्की गए तब एर्दोआन ने उनसे "एर्तरुल" सीरियल का ज़िक्र किया और उन्हें बताया कि किस तरह से ये उनके यहां ब्लॉक बस्टर सीरियल बन गया.. इमरान ने कहा कि वो इसे पाकिस्तान में उर्दू में डब करा के पाकिस्तान टीवी पर प्रसारित करने चाहेंगे.. उन्हें इजाज़त मिली और फिर पाकिस्तान टीवी ने इसे डब करके प्रसारित करने शुरू किया.. आज पाकिस्तान में इस सीरियल की लोकप्रियता का ये हाल है जैसा कभी भारत मे रामायण का था.. लोग दीवाने हैं और सारे साउथ एशिया में उर्दू समझने वालों में इसकी दीवानगी बढ़ती ही जा रही है


तुर्की के राष्ट्रपति का ये प्रयोग बहुत हद तक  कामयाब हो रहा है.. क्यूंकि सूफ़ी के तड़के के साथ जिहाद और खून खराबा परोस के एर्दोआन अपने जिदाही मंसूबे पर कामयाब  होने की कोशश कर रहे हैं.. वो इस वक़्त तुर्की समेत समूचे साउथ एशिया के मुस्लिम नौजावनों को जिहाद के लिए उकसाने की कोशिश पर आमादा हैं और जाने कितने इस सीरियल से आकर्षित हो कर उस राह पर चलने का मन बना भी चुके हैं.. सुफ़िस्म इस में जो दिखाया जा रहा है, वो बस जाल है.. इसका मुख्य उद्देश्य और मूल “जिहाद” परोसना है सुफ़िस्म की आड़ ले कर


इसलिए इमरान खान भी राष्ट्रपति एर्दोआन के साथ मिलकर इस जिहादी मुहीम में कूद पड़े हैं और उन्होंने बाक़ायदा twitter पर लोगों को सन्देश दिया कि लोग इस सीरियल को देखें और इस्लाम के इतिहास को जानें.. जबकि ये सरासर झूठ है.. ये कोई इतिहास नहीं बल्कि पूरी तरह से एक काल्पनिक गाथा है.. मगर ये इमरान खान समेत एर्दोआन के मंसूबे को आगे बढाता है. इसलिए इसका इन्हें भरपूर समर्थन है.. ध्यान रखिये जब कोई राजनैतिक व्यक्ति आपसे कुछ देखने या अनुसरण करने को बोले तो उसे बड़े ध्यान से समझने की कोशिश कीजिये.. क्यूंकि राजनैतिक व्यक्ति का एजेंडा गूढ़ और दूरगामी होता है  



तो अगर आप ये सोचते हैं कि एर्तरुल ग़ाज़ी इस्लाम धर्म का कोई सीरियल है तो आप ग़लत हैं.. ये तुर्की के अपने बनाये इस्लाम का प्रचार है जिसे एर्दोआन सारे विश्व मे आने नाम से लेकर चलना चाहते हैं और इस्लाम के नए ख़लीफ़ा बनना चाहते हैं.. इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसका लेखन और निर्देशन कमाल का है.. और इसे हर किसी को देखना चाहिए.. मगर ये सोचकर कि मात्र एक दिमाग़ी उपज है राष्ट्रपति एर्दोआन और उनकी टीम की.. आप उस दौर में नहीं हैं और न ही अब आपको उस दौर में वापस जाना है 


~ सिद्धार्थ ताबिश 


( एर्तरुल को अगर आप उर्दू में देखना चाहते हैं तो youtube पर TRT Ertagrul by PTV के चैनल पर जाईये.. ये सबसे अच्छा अनुवाद और डबिंग है.. और अभी तक इसके 58 एपिसोड ये चैनल रिलीज़ कर चुका है.. हफ़्ते में पांच दिन, बुधवार से लेकर रविवार तक रोज़ रात 9:30 पर यहाँ एक एपिसोड रिलीज़ होता है )






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