गौरी लंकेश के हत्या पर जहां पूरे देश में अलग-अलग जगह प्रदर्शन हो रहे हैं और लोगों में लगातार हो रही हत्याओं के ख़िलाफ़ गुस्सा भी है।
गौरी लंकेश के पहले भी दाभोलकर,पंसारे और कालबुर्गी की हत्या हुयी थी। लेखक कालबुर्गी की हत्या पर सबसे पहले उदय प्रकाश जी ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिया था और फिर देश के लेखकों,आर्टिस्टों और वैज्ञानिकों ने अपने अवार्ड वापस कर दिये थे। और उसी समय दादरी की सबसे भयावह घटना जिसमें 200 लोगों की भीड़ ने अख़लाक़ को पीट-पीट कर मार दिया था और इसी के बाद से गौ हत्या के नाम पर जगह-जगह मारा जाने लगा।
उस वक्त भी फेसबुक पर इस पूरे प्रोटेस्ट को फर्ज़ी बताया गया और 'आवार्ड वापसी गैंग' नाम दे दिया। उस वक्त भी हमारे देश के सम्मानित लेखकों,वैज्ञानिक और आर्टिस्टों को गाली दी गयी और उस प्रोटेस्ट को दबा दिया गया।
और इस प्रोटेस्ट के ख़िलाफ़ अनुपम ख़ेर,मालिनी अवस्थी,अक्षय कुमार और मधुर भंडारकर ने बीजेपी और आर एस एस के लोगों के साथ दिल्ली में मार्च किया।
ये तो बीते समय की बात हो गयी लेकिन उसी समय को आज गौरी लंकेश की हत्या करके फिर से दोहराया गया और फिर से जब लोगों ने प्रोटेस्ट करना शुरू किया है तो फेसबुक पर फिर से इस प्रोटेस्ट को दबाने के लिये वही काम करा जा रहा है। गौरी लंकेश को कुतिया,रंडी,छिनाल,नक्सलवादी,आतंकवादियों की समर्थक बताया जा रहा है और इसमें सिर्फ पुरूष ही नहीं महिलायें भी हैं जो इस तरह की पोस्ट कर रही हैं। गौरी लंकेश की झूठी छवि तैयार करके उनकी हत्या को क्रान्तिकारी कदम बताया जा रहा है।
और फेसबुक पर तमाम पत्रकार तक ये लिख रहे हैं कि इस मामलें में राजनीति की जा रही है। राजनीतिक मामला बनाया जा रहा है और विरोधी दल मौके का फ़ायदा उठा रहे हैं।
लेकिन क्या जब कांग्रेस की सरकार थी तो बीजेपी हर चीज़ में राजनैतिक फ़ायदा नहीं उठाती थी फिर वो चाहे दामिनी रेप केस हो या लोकपाल बिल को लेकर कांग्रेस को घेरना। तो अब बीजपी की सरकार आते ही ऐसा क्या हो गया कि राजनीति करना ग़लत हो गया। जब बीजेपी सरकार बहुत से राज्यों में जहां उसकी सरकार नहीं हैं वहां की छोटी सी छोटी चीज़ को राजनैतिक मुद्दा बनाती है और कभी-कभी उनके नेता तक झूठ फैलाते हैं। तब उसको ग़लत क्यों नहीं ठहराया जाता?
क्या बीजेपी सरकार देश से बढ़कर है? ये सवाल हर उस आदमी से है जो किसी की हत्या का जश्न मनाते हैं।