5 सितम्बर को रात 8 बजे वरिष्ठ महिला पत्रकार गौरी लंकेश की उनके निवास स्थान जो कि बैंगलोर के राजाराजेश्वरी नगर में है उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गयी। गौरी अपने ऑफिस से लौट कर आयी थी और घर का दरवाज़ा खोल रही थीं तभी तीन आदमियों ने ताबड़तोड़ सात गोलियां मारी और फरार हो गये।
गौरी लंकेश ने हमेशा से ही दक्षिणपंथियों की फासीवादी राजनीति के ख़िलाफ़ थीं। बीजेपी के ख़िलाफ़ लिखती और बोलती थीं।
दाभोलकर,पन्सारे और कालबुर्गी के बाद गौरी को भी अज्ञात हमालावरों ने मारा।
फेसबुक पर गौरी लंकेश की कन्हैया कुमार और उमर ख़ालिद की फोटो चस्पा कर उनकी हत्या को जस्टीफाई करा जा रहा है। बहुत से लोग तो उनकी मौत का जश्न तक मनाते दिख रहे हैं।
अब आप ही सोचिये कि किस तरह लोकतांत्रिक देश में लगातार हमले किये जा रहे हैं। कभी पत्रकारों,लेखकों और कभी छात्रों पर और सबसे आश्चर्यजनक सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों का हत्या को जस्टीफाई करना। क्या ये सही है? हम कहां पहुंच गये हैं?
ये उसी तरह की मानसिकता है जब चार्ली आब्दो पर हमला किया जाता है फ्रांस में तब बहुत से मुस्लिम संगठन और मुस्लिम इसको सही ठहरा रहे थे।
उसी तरह भारत के हिन्दू संगठन और उनको सपोर्ट करने वाले लोग भी हत्या का जश्न मनाते हैं मौत को सही ठहराते हैं।
बीजेपी की सरकार बनते ही जिस ख़तरे की आहट को बहुत से प्रगतिशील लोगों और संगठनों ने भांप लिया था। वो अब सच साबित होता दिख रहा है। बांग्लादेश और पाकिस्तान में जिस तरह प्रगतिशील राजनेताओं,पत्रकारों और लेखकों की हत्यायें की गयी थीं। आज लगभग वही स्थिति हमारे देश की है।
राजनीति के हिन्दूवाइजेशन से तमाम संकट खड़े होते जा रहे हैं जिसे रोकने के लिये सरकार भी कु़छ नहीं कर रही है और ये दिन पर दिन विकराल रूप लेता जा रहे है।